यह ख़बर 23 सितंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

उमाशंकर सिंह की कलम से : हामिद मीर के नाम एक चिठ्ठी

आदरणीय मीर साहब, आपने ट्वीट किया है कि 'न्यूयॉर्क में प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ और नरेन्द्र मोदी के बीच मुलाक़ात नहीं होगी, नवाज़ शरीफ़ यूएनजीए में इस साल फिर कश्मीरियों की आवाज़ उठाएंगे'

मीर भाई। आप न तो पाकिस्तान विदेश विभाग के अधिकारी हैं और न ही प्रधानमंत्री दफ्तर के प्रवक्ता। लेकिन आपने मुलाक़ात नहीं होगी का एक तरह से ऐलान सा कर दिया है। आप एक पत्रकार हैं और अगर आपको ये जानकारी आपके विश्वस्त सूत्रों से मिली है तो वो सूत्र कोई छोटा मोटा अधिकारी तो होगा नहीं। आप बड़े पत्रकार हैं और हो सकता है इस जानकारी के सूत्र ख़ुद नवाज़ शरीफ़ साहब हों। वैसे भी आपके उनके रिश्ते इतने नज़दीकी हैं कि उन्होंने हमारे तबके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेकर 'देहाती औरत' वाला चुटकुला भी आपके साथ शेयर किया था। फिर शायद उनके ही निर्देश पर आपने अपने शब्द वापस भी ले लिए थे। तब आपकी विश्वनीयता पर सवाल उठा था कि आपका पहले वाला बयान सही था या बाद वाली सफ़ाई।

ख़ैर। आपने 'प्रधानमंत्रियों की मुलाक़ात नहीं होगी' वाला ट्वीट जिस भरोसे के साथ किया उससे लगता है कि ये सीधे प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ से आपको मिली जानकारी पर आधारित है। उनके किसी ख़ासमख़ास ने भी अगर ऐसी 'पुख़्ता' जानकारी आपको दी है तो भी इसके कई मायने हैं। पहला तो यह कि आप पर गोली चलने के बाद (इस वारदात की हम निंदा करते हैं और प्रेस की आज़ादी का समर्थन करते हैं) जिओ टीवी और पाकिस्तानी सेना-आईएसआई के बीच जो तनातनी हुई उसमें मियां साहब आपके और जिओ के साथ खड़े हुए। ऐसा कर उन्होंने बड़ा अच्छा किया। लेकिन इससे सेना-आईएसआई के साथ उनके मतभेद बढ़े।

तो जिस मियां साहब ने जिओ के लिए एक तरह से अपनी कुर्सी दांव पर लगा दी, अब उनके लिए कुछ करने का वक्त है। इसलिए आपने एक पत्रकार के तौर पर अपनी विश्वसनीयता, अपना चेहरा और अपने ट्विटर का इस्तेमाल किया है। आपका ये ट्वीट पानी की गहराई मापने की कोशिश में छोड़ी गई तकनीकी तरंग लगती है। लेकिन आप पाकिस्तान के पत्रकार हैं, वहां की सरकार नहीं कि आपकी तरफ से हुए ऐलान पर भारत सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया आए। आपने बेशक ये भांपने की मंशा से ट्वीट किया हो कि देखते हैं, भारत में अंदरखाने से इस पर क्या रिएक्शन आता है, लेकिन माफ़ कीजिएगा, भारत की विदेश नीति में चाहे जो भी खामियां हो, वह इतनी उथली नहीं है।

दूसरी बात, आपकी वजह से सेना और सरकार के बीच खाई बढ़ी। तो अब इस खाई को पाटने की ज़िम्मेदारी भी आप पर है। इसलिए जहां ट्वीट का पहला हिस्सा अमेरिका रवानगी के पहले प्रधानमंत्री की तरफ से सेना-आईएसआई को भरोसे में लेने की कोशिश की तरह है कि प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ शपथ ग्रहण समारोह में शिरक़त कर प्रधानमंत्री मोदी से मिलने की 'पिछली ग़लती' को इस बार नहीं दोहराएंगे। नई दिल्ली आकर उन्होंने कश्मीर पर कोई कड़ा बयान नहीं दिया था और न ही हुर्रियत नेताओं से मिले थे।

वहीं, आपके ट्वीट का दूसरा हिस्सा मियां साबह की इसी 'ग़लती' की भरपाई की कोशिश में जुटा नज़र आ रहा है... 'नवाज़ शरीफ़ यूएनजीए में इस साल फिर कश्मीरियों की आवाज़ उठाएंगे'।


आपके इस ट्वीट को नई दिल्ली के कई चैनलों ने प्रमुखता से चलाया। इससे हो सकता है कि पाकिस्तान की तरफ से नकारात्मक सिग्नल मान हमारे भी कई कूटनीतिक पुरोधा 'मुलाक़ात नहीं तो नहीं' का रवैया अपनाने पर ज़ोर दें। ऐसे में मोदी-शरीफ़ मुलाक़ात नहीं होगी और आप पत्रकार के तौर पर इस स्कूप के लिए भी जाने जाएगें कि देखो मीर भाई ने हफ्ता पहले ही बता दिया था!

दूसरी तरफ आपकी सेना और आईएसआई में बैठे एक वर्ग को भी आपका यह ट्वीट पसंद आया होगा। उन्होंने इसका ज़रूर यह अर्थ निकाला होगा कि मियां साहब देर आए दुरुस्त आए। अब वे पाकिस्तान की सेना की इच्छा के अनुसार ही चलेंगे, बात कश्मीर से शुरू करेंगे और कश्मीर पर ही ख़त्म करेंगे। इस तरह से सेना और सरकार के बीच की खाई काफी हद कर कम हो जाएगी।

एक तीसरा पहलू भी है। प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण में आ कर मियां साहब ने जो 'पाप' किया था, आपका ट्वीट उसके प्रायश्चित की दिशा में पहला क़दम जैसा है। भारत के इस दौरे के शानदार फ़ैसले के बाद मियां साहब को पाकिस्तान में हाशिए पर धकेल दिया गया। वे कहां तो अपना स्टेट्समैनशिप दिखाने आए थे कि देखो में इतना ताक़तवर पीएम हूं कि सेना की नहीं सुनता।

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लेकिन जब घरेलु मीडिया में फज़ीहत हुई, कड़े सवाल पूछे गए तो उनको लगा कि ये क्या हो गया। क्या वाकई मैं कश्मीर की लड़ाई से दूर हो गया हूं। तभी उन्होंने एक बार फिर आपको नाश्ते या खाने पर बुलाया होगा। इस बार 'देहाती औरत' जैसा कोई जोक न सुना कर आपको ये 'जानकारी' दी गई होगी। इसे आपने अपने ट्वीट के माध्मय से रबड़ की गोली की तरह चलाया है। ताकि मियां साहब की कुर्सी लेने को आतुर भीड़ तितर-बितर भी हो जाए और कोई जानी नुक्सान भी न हो। आपके लिए ये पत्रकारिता होगी। मेरी नज़र में ये 'पे बैक जर्नलिज़्म' है। आप बड़े पत्रकार हैं। उबरिए इन सबसे। दोनों प्रधानमंत्री मिलेंगे या नहीं मिलेंगे, यह फैसला इन्हीं दोनों को करने दीजिए, और दोनों के अमेरिकी दौरे तक इंतज़ार कीजिए...