यूपी में विधानसभा चुनाव को लेकर अतिपिछड़े वोट बैंक पर टिकी सभी दलों की नजर

यूपी में विधानसभा चुनाव को लेकर अतिपिछड़े वोट बैंक पर टिकी सभी दलों की नजर

सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और बीएसपी चीफ मायावती की फाइल फोटो

लखनऊ:

एक दशक बाद उत्तर प्रदेश में फिर से 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का जिन बोतल से बाहर आ गया है। साल 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव को नजर में रखते हुए समाजवादी पार्टी ने इन अतिपिछड़ी जातियों का सम्मेलन कर अपनी चुनावी नैया पार करने का अभियान छेड़ दिया है।

बिहार में महागठबंधन की रणनीति पर मुलायम
अतिपिछड़ी जातियों की उत्तर प्रदेश में निर्णायक स्थिति को देखते हुए एसपी, बीएसपी, बीजेपी, कांग्रेस सहित दूसरे छोटे दलों की निगाहें अतिपिछड़े वोट बैंक पर लगी है। बिहार विधानसभा चुनाव में पिछड़ी, अतिपिछड़ी जातियों की मजबूत गोलबंदी से इस वोट बैंक का महत्व और बढ़ गया है। बिहार विधानसभा चुनाव में धुर विरोधी रहे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर अतिपिछड़ा का मुद्दा जोरदार ढंग से उठाया और राजनीतिक पंडितों के सारे आकलन को झुठलाते हुए महागठबंधन को अप्रत्याशित जीत दिलाई। मुलायम सिंह यादव ने ठीक वैसा ही प्रयोग करने की कोशिशें तेज कर दी है।

बिहार जैसा चमत्कार में यूपी में असंभव?
मुलायम सिंह ने अतिपिछड़े वर्ग के सम्मेलन में कहा कि पिछड़ों की आबादी 54 फीसदी है, पर 7-8 फीसदी वाले ही शासन करते आ रहे हैं। उनके इस कथन को पिछड़ों को उग्रकर अपने पाले में करने की कोशिश के तौर पर देखी जा रही। हालांकि जानकारों के मुताबिक, बिहार जैसा उत्तर प्रदेश में जातिगत व वर्गीय ध्रुवीकरण असंभव है और जब तक माया व मुलायम एक साझा गठबंधन नहीं बनाते, तब तक बिहार जैसा चमत्कार यूपी में संभव नहीं लगता।

यूपी में अति पिछड़ी जातियों का खासा महत्व
यूपी में बीजेपी, बीएसपी, एसपी को अच्छी तरह पता है कि पिछड़ों में अत्यन्त पिछड़े निषाद, मल्लाह, केवट, राजभर, कुम्हार, बिन्द, धीवर, कहार, गोड़िया, मांझी आदि जातियों की निर्णायक संख्या हैं और इन जातियों का झुकाव जिस दल की ओर होता है वह सबसे आगे निकल जाता है। अगर विधानसभा चुनाव-2002, 2007 व 2012 के परिणाम को देखा जाय तो 2 से 3.5 फीसदी मतों के हेर फेर से एसपी और बीएसपी की सरकारें बनती रहीं हैं। ऐसे में 17 अतिपिछड़ी जातियों की 17 फीसदी से अधिक संख्या उत्तर प्रदेश की राजनीति में अति महत्वपूर्ण है।

अतिपिछड़ी जातियों को अपने पाले में लाने की सभी पार्टियों में होड़
एसपी प्रमुख मुलायम सिंह यादव व बीएसपी प्रमुख मायावती को अच्छी तरह पता है कि 17 अतिपिछड़ी जातियों के पास सत्ता की चाबी है, इसलिए मुलायम मिशन-2017 के मद्देनजर एक बार फिर अतिपिछड़ी जातियों को अपने पाले में करने की कवायद में जुट गए है और बीजेपी, बीएसपी, कांग्रेस आदि ने भी तल्ख विरोध में जुबानी जंग शुरू कर दिए है। वहीं बीजेपी को भी पता है कि जब-जब अतिपिछड़ा बीजेपी के साथ रहा बीजेपी को सत्ता मिली। इसलिए बीजेपी भी अतिपिछड़ों को अपने पाले में करने के लिए गहन मंथन में जुटी है। अतिपिछड़ों का आरक्षण मुद्दा जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आएगा। अतिपिछड़ों को गोलबन्द करने के लिए राजनीतिक दलों में जुबानी जंग तेज होगी।

अतिपिछड़ों को काडर कैंप के जरिये अपने पाले में करने की कोशिश में बीएसपी
राजनीतिक विश्लेषकों व राजनीतिक पण्डितों के मुताबिक वोट बैंक की दृष्टि से प्रदेश में अतिपिछड़ी जातियों का सबसे बड़ा वोट बैंक है। सम्भवत: यहीं कारण है कि 43 फीसदी से अधिक गैर यादव पिछड़ों में कुर्मी, लोधी, जाट, गूजर, सोनार, गोसाई, कलवार, अरक आदि की 10.22 फीसदी और मल्लाह, केवट, किसान, कुम्हार, गड़ेरिया, काछी, कोयरी, सैनी, राजभर, चैहान, नाई, भुर्जी, तेली आदि 33.34 फीसदी संख्या वाली अत्यन्त पिछड़ी हिस्सेदारी वाले इस वोट बैंक पर हर दल की नजर है। एसपी जहां 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के मुद्दो को तूल देती दिख रही है, तो बीएसपी अतिपिछड़ों को काडर कैंप के जरिये अपने पाले में करने की कोशिश में है।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

बीजेपी उछाल रही है अतिपिछड़ों को विशेष आरक्षण का मुद्दा
उत्तर प्रदेश की सत्ता हथियाने की कवायद में जुटी बीजेपी इन जातियों को 7.5 फीसदी विशेष आरक्षण कोटा देने व सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू करने का मुद्दा उछाल रही है। बीजेपी प्रदेश की कमान किसी अतिपिछड़े को देने की सुगबुगाहट है। वहीं कांग्रेस भी इनको गोलबन्द करने की कोशिश में है। यदि उत्तर प्रदेश में तीन कोणीय संघर्ष होता है तो अत्यन्त पिछड़ी और उसमें भी 17 अतिपिछड़ी जातियों की अहम भूमिका रहेगी।