यह ख़बर 13 फ़रवरी, 2014 को प्रकाशित हुई थी

लोकसभा के भीतर का आंखोदेखा हाल

नई दिल्ली:

दिन के ठीक 12 बजने वाले थे। लोकसभा की कार्यवाही दोबारा शुरू होने की थी। तेलंगाना बिल पर हंगामे के बाद लोकसभा सुबह 11 बजे ये एक बार स्थगित हो चुकी थी। तेलंगाना बिल बिजनेस लिस्ट में शामिल नहीं था। लेकिन 12 बजे सरकार इसे पेश करने जा रही थी। मैं और मेरे सहयोगी संदीप फूकन प्रेस गैलरी में ठीक स्पीकर की कुर्सी के ऊपर की तरफ बैठे थे। स्पीकर के आने का इंतज़ार चल रहा था। तभी टीडीपी के कई सांसद स्पीकर के सामने की मेज के पास जमा हो गए। इनमें विजयाशांति भी थीं और वेणुगोपाल भी।

वेणुगोपाल ने लोकसभा सेक्रेटरी की कुर्सी पर चढ़ने की कोशिश की। अगर वे चढ़ पाते तो स्पीकर के आने की जो तस्वीर लोकसभा टीवी पर नज़र आती है उस फ्रेम में वेणुगोपाल भी नज़र आते। लेकिन, स्पीकर के आने के पहले ही कुछ कांग्रेसी सांसदों ने उन्हें वहां से हटाने की कोशिश की। इनमें राजबब्बर भी थे और संदीप दीक्षित भी। तेलंगाना चाहने वाले सांसद भी वेल में आ चुके थे।
फिर गुत्थम गुत्था शुरू हो गया। ये सब स्पीकर की चेयर के बायीं तरफ हो रहा था। तभी दायीं तरफ से सांसद राजगोपाल ने कुछ भारी चीज़ से टेबल पर रखे शीशे को तोड़ डाला। थोड़ी ही देर में नज़ारा गली की किसी मारपीट सा लगने लगा।

ये सब लोकसभा टीवी पर नहीं आ रहा था। इसका कुछ अंश ही दिख पाया। लोकसभा टीवी के कैमरे सदन जो सांसद शांत खड़े थे उन्हीं को फोकस कर रहा था।

राजगोपाल समेत 6 सांसदों को कांग्रेस ने चंद दिन पहले से पार्टी से निकाल दिया था। इन्होने अपनी ही सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश की थी। पार्टी से निकाल दिए जाने के बाद शायद इनको अनुशासन में रहना और संसदीय मर्यादा का पालन करना ज़रूरी नहीं लग लग रहा था। तब तक वेणुगोपाल पर काबू पाया जा चुका था। लेकिन तनातनी का माहौल बरक़रार था। अनुशासन में रहना ज़रूरी नहीं लग रहा था। इनके साथ वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी के सांसद भी थे। मारपीट चल रही रही थी। पूरा सदन स्तब्ध था। कई सांसद बीचबचाव में लगे थे। कुछ अपनी अपनी सीट पर ही खड़े होकर जो कुछ हो रहा था उसे देख रहे थे।

इसी बीच राजगोपाल ने एक स्प्रे निकाल लिया। वो वेल में रखी यू शेप की टेबल की दिशा में स्प्रे करने लगे। तब वे वहां खड़े थे जहां सोनिया गांधी की सीट है। सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री सदन में नहीं थे। स्प्रे करते हुए राजगोपाल वहां तक पहुंचे जहां लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज बैठती हैं।

पहले लोगों को समझ में नहीं आया कि ये क्या हुआ। फिर कई सांसदों को खांसी होने लगी। आंखो में जलन होने लगी। सांसद लोकसभा से एक एक कर निकलने लगे। वेणुगोपाल पर तब तक ड़े थे उन्हीं पर फोकस कर रहे थे। वेल में जो कुछ हुआ उसे देश नहीं देख पाया। ख़ैर मैं और संदीप प्रेस गैलरी से बाहर भागे। अपना फोन जो कि संसद के बरामदे पर टी स्टॉल वाले के पास रख देते हैं। वहां सभी पत्रकार अपना अपना फोन लेने में लगे थे। हर किसी को दफ्तर को बताने की जल्दी थी।

मैंने 2008 में लोकसभा का वो नज़ारा भी देखा था जब बीजेपी सांसदों ने नोटों के बंडल ला कर स्पीकर के सामने वाली टेबल पर रख दिया था। लेकिन ये संसद के भीतर के अब के सभी हंगामों से अलग था। आपको यूपी विधानसभा में माइक तोड़ कर एक दूसरे को मारने वाला नज़ारा याद होगा। ये वैसा तो नहीं था, लेकिन उससे ज़्यादा गंभीर था। मैं फोन लेकर नीचे भागा। तब तक संसद परिसर में एंबुलेंस के सायरन बजने लगे थे। लोकसभा दो बजे तक स्थगित हो चुका था।

थोड़ी देर बाद वेणुगोपाल बाहर आया। तमाम पत्रकारों के साथ मैंने भी उनसे सवाल जवाब करना चाहा। सवाल चुभने वाले थे। उनके एक सहयोगी ने मुझे धकिया कर हटाने की कोशिश की। मैंने ज़ोर से कहा कि सवाल पूछना हमारा हक़ है। चारों तरफ कैमरे चल रहे थे। वेणुगोपाल ने अपनी सफाई देनी शुरू की। लेकिन माफ़ी मांगने से साफ इनकार कर दिया।

दोपहर दो बजे लोकसभा की कायर्वाही फिर शुरू हुई तो फिर माहौल गरम था। सुषमा स्वराज अपनी पार्टी के साथ साथ दूसरे सांसदों से भी बात कर रहीं थी। सवाल कर रही थीं कि तेलंगाना बिल को पेश कैसे मान लिया जाए। हाउस आर्डर में नहीं था। बिल के साथ सप्लीमेंटरी एजेंडा पेश नहीं किया गया था। सात दिन की नोटिस और दो दिन पहले बिल सांसदों को देने का प्रावधान है। लेकिन, स्पीकर को अधिकार है कि वे इस औपचारिकता के बिना भी सरकार को बिल पेश करने की इजाज़त दे सकती हैं।

लेकिन, इसके लिए सप्लीमेंटरी एजेंडा भी बिल के साथ पेश करना होता है। ये नहीं हुआ था। सवाल तकनीकी था। ये भी कि जब स्पीकर ने सदन की कायर्वाही शुरू होने का ऐलान ही नहीं किया एक शब्द तक नहीं बोला तो बिल को पेश कैसे मान लिया जाए। उनकी आवाज़ ऊपर प्रेस गैलरी तक साफ साफ आ रही थी। हालांकि तब माइक आन नहीं था। स्पीकर के आने के बाद ही वो ऑन होता है। इन्हीं सवालों के साथ वो बाद में स्पीकर से भी मिलीं।

ठीक 2 बजे लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार सदन में आयीं। उन्होने उन 16 सांसदों के नाम लिए जो उपद्रव में शरीक थे। उन्हें संसद से निलंबित कर दिया गया। इसी दौरान टीडीपी सांसद नारायण राव अपना सीना पकड़ कर वेल में बैठ गए। फिर लेट गए। दर्द की शिकायत की। अफवाह उड़ी की उन्होने कुछ ज़हरीली चीज़ खा ली है। लेकिन उन्होने कुछ खाया नहीं था। मैं फिर स्पीकर की चेयर के ठीक उपर प्रेस गैलरी में बैठा था। वहां से पूरा एक्शन साफ साफ दिख रहा था। नारायण राव को पहले सांसदों ने उठाया। फिर वहां मौजूस संसद के स्टाफ उन्हें बाहर ले गए। एंबुलेंस में डाल राममनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया। लोकसभा 3 बजे तक के लिए फिर स्थगित कर दी गई। 3बजे सदन की कार्यवाही शुरू होते ही सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

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ये सब कुछ सिनेमा के सीन जैसा था। इन सब के बीच संसदीय परंपरा और मर्यादा तार तार हो चुकी थी। इसका कोई डैमेज कंट्रोल नहीं हो सकता।