यह ख़बर 12 मार्च, 2013 को प्रकाशित हुई थी

महिलाओं पर अपराध विधेयक मतभेदों के चलते मंत्री समूह के हवाले

खास बातें

  • बलात्कार समेत महिला उत्पीड़न के खिलाफ प्रस्तावित बिल को लेकर सरकार के अंदर अभी तक कोई सहमति नहीं बन पाई है। इसे जीएमओ को भेज दिया गया है।
नई दिल्ली:

महिलाओं पर अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करने वाले एक महत्वपूर्ण विधेयक को आज केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मतभेदों के चलते मंत्री समूह के विचारार्थ भेज दिया गया। इसमें आपसी सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र को घटाकर 16 साल किए जाने का प्रावधान भी शामिल है।

सूत्रों ने बताया कि विधेयक को हरी झंडी दिखाने के लिए कैबिनेट की विशेष बैठक बुलाई गई थी, जो घंटाभर चली, लेकिन बैठक में विधेयक पर कोई आम सहमति नहीं बन सकी, जिसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विधेयक को मंत्री समूह को भेज दिया।

प्रस्तावित मंत्री समूह में वित्तमंत्री पी चिदम्बरम, महिला और बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ, विधि मंत्री अश्विनी कुमार, गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे तथा संचार एवं आईटी मंत्री कपिल सिब्बल के शामिल होने की संभावना है।

विधेयक पारित होना चाहिए, इस बारे में कैबिनेट में आम राय थी, लेकिन कुछ मुद्दे अनसुलझे रहे।

विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि आपसी सहमति से यौन संबंध बनाए जाने की उम्र को 18 साल से घटाकर 16 साल किया जाए। इस मुद्दे पर विभिन्न मंत्रालयों के बीच लंबी चर्चा हो चुकी है और कुछ का तर्क है कि इसे कम नहीं किया जाना चाहिए। महिला और बाल विकास मंत्रालय ने इस कदम का विरोध किया है। सहमति की उम्र से नीचे यौन संबंधों को सांविधिक रूप से बलात्कार माना जाता है।

सूत्रों ने बताया कि कुछ वरिष्ठ मंत्री कुछ मुद्दों पर सहमत नहीं हो सके जिनमें ‘‘बलात्कार’’ शब्द भी था, जो एक वर्ग विशेष को कहीं अधिक इंगित करता है। उनका कहना था कि इसके स्थान पर ‘यौन हमला’’ शब्द रखा जाए तो लैंगिकता के मामले में तटस्थ भाव रहता है। इस बात पर भी मतभेद थे कि दर्शनरति और पीछा करने को किस प्रकार परिभाषित किया जाए जिन्हें विधेयक में आपराधिक कृत्य के रूप में शामिल किया गया है। अध्यादेश में पहली बार इन दो गतिविधियों को आपराधिक कृत्य के रूप में परिभाषित किया गया है।

कुछ मंत्रियों ने फर्जी सबूतों और झूठी गवाही के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं किए जाने पर भी चिंता जताई।

विधेयक में अध्यादेश के एक महत्वपूर्ण प्रावधान को यथावत रखा गया है, जिसके तहत यदि बलात्कार पीड़िता की मौत हो जाती है या वह कोमा जैसी स्थिति में आती है तो इसके लिए दोषी को मौत की सजा दी जा सकती है। इसमें न्यूनतम सजा 20 साल की जेल है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।

आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2013 इस संबंध में तीन फरवरी को लाए गए अपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश का स्थान लेगा।

यह अध्यादेश 21 फरवरी को बजट सत्र आहूत होने के छह सप्ताह की अवधि के तहत चार अप्रैल को निष्प्रभावी हो जाएगा।

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चूंकि इस समय अध्यादेश प्रभावी है इसलिए जब तक राष्ट्रपति नए विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं कर देते और वह कानून का रूप नहीं ले लेता तब तक बलात्कार और इस प्रकार के अन्य अपराध अध्यादेश के प्रावधानों के तहत ही पंजीकृत होंगे। नए विधेयक के इस सप्ताह में संसद में पेश किए जाने की संभावना है।