यह ख़बर 07 मार्च, 2013 को प्रकाशित हुई थी

रेप के खिलाफ कानून में देरी, सरकार के भीतर ही एक राय नहीं

खास बातें

  • महिला की सुरक्षा के लिए नए और सख्त बलात्कार कानून में देरी हो सकती है। कुछ मुद्दों पर गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय में सहमति न होने से बिल का मसौदा कैबिनेट में पेश नहीं हो सका।
नई दिल्ली:

महिलाओं से रेप के खिलाफ सख्त कानून की पैरवी को लेकर सरकार के अंदर ही एक राय नहीं दिख रही है। खबरों के मुताबिक, सरकार के ही दो मंत्रालयों के बीच इस कानून पर सहमति नहीं बन पा रही है। पहले माना जा रहा था कि नए कानून के मसौदो
को आज कैबिनेट के सामने रखा जाएगा, लेकिन अचानक इसे लिस्ट से हटा दिया गया।

दरअसल, कानून के मसौदे को लेकर गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के बीच विवाद है, खासकर आपसी सहमति से शारीरिक रिश्ते बनाने की उम्र सीमा 18 से घटाकर 16 साल करने को लेकर।

गौरतलब है कि महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ा कानून इस वक्त सरकार की सबसे बड़ी चिंता है। बीते दिसंबर में दिल्ली में हुई गैंगरेप की घटना के बाद से तो और भी ज्यादा। इस मसले पर सरकार ने जल्दबाजी में एक अध्यादेश लागू कर दिया। इस अध्यादेश की जगह सरकार अब एक बिल लाना चाहती है, जो आज पेश नहीं हो पाया।

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दरअसल, बलात्कार के खिलाफ लागू अध्यादेश में सरकार ने कुछ जरूरी बदलाव कर ये बिल बनाया है। कानून मंत्री का कहना है कि महिला संगठनों की मांग को देखते हुए यह बदलाव किए गए हैं, जो खास बदलाव इस विधेयक में शामिल किए गए हैं, उनमें
शारीरिक रिश्ते बनाने के लिए रजामंदी की न्यूनतम उम्र 18 साल से घटाकर 16 कर दी गई है।
 
मौजूदा कानून के मुताबिक, लड़की की उम्र 18 साल से कम होने पर शारीरिक रिश्ते को बलात्कार के दर्जे में रखा जाता है। मंत्रालय ने मौजूदा कानून में सरकारी या निजी अस्पतालों के लिए रेप पीड़ितों का इलाज जरूरी कर दिया है और ऐसा न करने पर सजा का भी प्रावधान है। मंत्रालय ने यौन उत्पीड़न की जगह रेप या बलात्कार शब्द का दोबारा इस्तेमाल किया है।