क्या आर्यों ने ही बसाया था हड़प्पा सभ्यता को? इतिहासकारों के भिन्न मत

नई दिल्ली:

भारत में आर्य बाहर से आए या फिर स्वदेशी थे, इस बात पर वर्षों से जारी चर्चा के बीच भारत के कई इतिहासकार मानते हैं कि भारत में आर्यों का आगमन 1500 ईसा पूर्व मध्य एशिया से हुआ।

प्रसिद्ध इतिहासकार रामशरण शर्मा ने अपनी पुस्तक 'प्राचीन भारत का इतिहास' में लिखा है कि आर्य हिंद-यूरोपीय परिवार की भाषाएं बोलते थे, जो अपने परिवर्तित रूपों में आज भी समूचे यूरोप और ईरान में तथा भारतीय उपमहादेश के अधिकतर भागों में बोली जाती हैं। लगभग 1600 ईसा पूर्व के कस्साइट अभिलेखों में तथा सीरिया में मिले अभिलेखों में आर्य नामों का उल्लेख है। उनसे पश्चिम एशिया में आर्य भाषा-भाषियों की उपस्थिति का पता चलता है।

राष्ट्रीय संग्रहालय के पुरातत्ववेत्ता और प्रकाशन विभाग के प्रभारी संजीव कुमार सिंह ने बताया कि आर्य मूलत: भारतीय हैं। वे हड़प्पा सभ्यता को आर्यों की पूर्ववर्ती सभ्यता मानते हैं।

सिंह ने बताया कि आर्य संस्कृति का इतिहास लेखन औपनिवेशिक सोच के आधार पर हुआ है। अंग्रेजी इतिहासकारों ने एक खास वर्ग को बाहरी बताकर समाज को बांटने की कोशिश की।

उन्होंने कहा कि प्रारंभिक इतिहासकारों ने हड़प्पा के बहुत कम स्थलों की खोज के आधार पर निष्कर्ष निकाला था कि हड़प्पा सभ्यता और आर्य सभ्यता अलग-अलग है। अब जबकि 2700 से अधिक हड़प्पाई स्थलों की खोज हो चुकी है, तो इसके आधार पर कहा जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता आर्यों की ही सभ्यता थी। सिंह ने अपनी पुस्तक 'ग्लोरी दैट वाज हड़प्पन सिविलाइजेशन' में इन सभी स्थलों की विस्तृत सूची दी है।

सिंह ने इसके पीछे तर्क दिया कि हड़प्पा सभ्यता के लोथल से अग्निकुंड के साक्ष्य मिले हैं। अर्थात हड़प्पा सभ्यता में अग्नि को विशेष महत्व प्राप्त था। वहीं आर्यों में भी अग्नि को विशेष महत्व प्राप्त था। सिंह ने बताया कि अगर भाषाई आधार को छोड़ दिया जाए तो इस बात के कोई प्रमाण नहीं है कि आर्य मध्य एशिया से आये। केवल भाषा के आधार पर तो हम यह भी कह सकते हैं कि यूरोपीय लोगों का मूल स्थान भारत ही था और वे यहीं से यूरोप गए क्योंकि हमारे यहां प्राचीन काल में उन्नत नौकायन के साक्ष्य मिले हैं।

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उन्होंने बताया कि हड़प्पा के स्थलों से मिले घोड़े के साक्ष्य के आधार पर भी कहा जा सकता है कि आर्यों ने ही हड़प्पा को बसाया था।