यूपीए सरकार से विरासत में मिली थी महंगाई, फिर भी कीमतों को नियंत्रण में रखा : अरुण जेटली

यूपीए सरकार से विरासत में मिली थी महंगाई, फिर भी कीमतों को नियंत्रण में रखा : अरुण जेटली

अरुण जेटली का फाइल फोटो

खास बातें

  • राहुल गांधी के आरोपों का दिया जवाब
  • कहा-आरोप, आंकड़ों का विकल्प नहीं हो सकते
  • इस साल अच्छी बरसात होने से अर्थव्यवस्था मजबूत होने की जताई उम्‍मीद
नई दिल्‍ली:

महंगाई को लेकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा मोदी सरकार पर लगाये आरोपों पर पलटवार करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को कहा कि कांग्रेस नीत यूपीए सरकार से नीतिगत पंगुता की शिकार अर्थव्यवस्था और दोहरे अंकों वाली मुद्रास्फीति दर विरासत में मिलने के बावजूद हमनें कीमतों को नियंत्रण में रखा और इस बारे में आरोप, आंकड़ों का विकल्प नहीं हो सकते।

तारीख बताने से कीमतें कम नहीं होंगी
जेटली ने कहा कि इस साल अच्छी बरसात होने से अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और कीमतें और नियंत्रण में आयेंगी। दाल की पैदावार 2 करोड़ टन होने के संकेत से इसकी कीमतों में भी कमी आएगी। उन्होंने कहा कि केवल यह कहना कि तारीख बता दें कि कीमत कब कम होगी, यह ठीक नहीं है। हमें वे नीतियां बनानी होंगी जिससे पैदावार बढ़े। हमने ऐसी नीतियां बनाई हैं जिनसे किसान दाल का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित होंगे और इसके चलते मांग और आपूर्ति की समस्या को दूर किया जा सकेगा और कीमतें कम होंगी।

नीतिगत पंगुता से मिली निजात
लोकसभा में मूल्यवृद्धि के बारे में नियम 193 के तहत चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए जेटली ने कहा कि नीतिगत पंगुता की शिकार अर्थव्यवस्था मिलने और वैश्विक मंदी की स्थिति के बाद भी पिछले दो वर्षों में हम तेज गति से आगे बढ़े हैं और बाकी दुनिया की तुलना में अच्छा कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि पूरे दुनिया में मंदी छाई हुई थी, उभरती अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति ठीक नहीं थी, भारत के बारे में नकारात्मक धारणा बनी हुई थी, बड़े बड़े विश्लेषक यह कह रहे थे कि ब्रिक्स में से आई (इंडिया) निकल जायेगा। ऐसे हालात में हमने सत्ता संभाली और इस सब के बावजूद भारत अच्छी वृद्धि दर बनाये रखकर दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है।

आर्थिक संकेतक अच्छी स्थिति में
वित्त मंत्री ने कहा कि हमें विरासत में दोहरे अंक की मुद्रास्फीति दर मिली थी लेकिन इसके बावजूद हमारे वृहद आर्थिक संकेतक अच्छी स्थिति में हैं। हमारी सरकार बनने के बाद से मुद्रास्फीति नियंत्रण में है और थोक मूल्य पर आधारित मुद्रास्फीति ऋणात्‍मक रही है। अरुण जेटली ने कहा कि कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के शासनकाल के अंतिम दो वर्षों में मुद्रास्फीति की दर 10 से 12 प्रतिशत के बीच थी। इसलिए यह समझने की जरूरत है कि आंकड़ों और नारों में अंतर होता है।

मंत्री ने कहा कि पिछले दो वर्षों में मानसून खराब रहा और 12 से 14 प्रतिशत तक कम बारिश हुई। ग्रामीण क्षेत्र और कृषि कमजोर हो गये थे, बरसात नहीं होने के परिणामस्वरूप कृषि प्रभावित होने से गांवों में क्रय-शक्ति कम हो गई थी।
जेटली ने कहा कि ऐसे में हमने नीतिगत पहल करते हुए गांव, किसान, कृषि के लिए जो प्रावधान किये हैं, वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से बड़ा प्रभाव डालने वाले हैं।

कांग्रेस पर साधा निशाना
पूर्व की कांग्रेस नीति यूपीए सरकार पर निशाना साधते हुए जेटली ने कहा कि सिर्फ आरोप लगाने से आंकड़े नहीं बदल जायेंगे। हमारी नीतियां और माध्यम ऐसे होने चाहिए जो जनता के वृहद हित में हों। दाल की कीमतों में वृद्धि के बारे में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी समेत विपक्षी दलों के आरोपों पर वित्त मंत्री ने कहा कि दाल की कीमत मांग और आपूर्ति से जुड़ा विषय है। भारत दाल का सबसे बड़ा उत्पादक है, सबसे अधिक दाल की खपत भारत में होती है और दुनिया के देशों से सबसे अधिक दाल हम खरीदते हैं।

दाल का उत्‍पादन
उन्होंने कहा कि भारत में 2.3 करोड़ टन दाल की जरूरत है और पैदावार 1.7 करोड़ टन रही है। इस तरह से 60 लाख टन कम उत्पादन रहा है। इसकी पूर्ति हम म्यामांर, मोजांबिक, तंजानिया जैसे देशों से दाल की खरीद करके कर रहे हैं। हालांकि दुनिया के बाजार में भी दाल की उपलब्धता कम हुई है। कुछ दाल व्यापारियों की जमाखोरी के कारण भी स्थिति खराब हुई और उन पर कार्रवाई की गई।

जेटली ने कहा कि हमने दाल की पैदावार से जुड़े नीतिगत परिवर्तन किये हैं और इस साल जो संकेत आ रहे हैं, उससे दाल की पैदावार दो करोड़ टन रहने की उम्मीद है। केवल यह कहना कि तारीख बता दें कि कीमत कब कम होगी, यह ठीक नहीं है। हमें वे नीतियां बतानी होंगी जिससे पैदावार बढ़े। हमें किसानों को दाल का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा ताकि मांग और आपूर्ति की समस्या को दूर किया जा सके। जेटली ने कहा कि अगर हम आधारभूत ढांचा क्षेत्र और उद्योग में पैसा लगाते हैं तो इसके परिणाम बाद में मिलते हैं लेकिन सिंचाई में पैसा लगाते हैं तो जल्द परिणाम मिलते हैं।

वित्त मंत्री ने कहा कि जब हम सत्ता में आये थे तब राजमार्ग परियोजनाएं ठप पड़ी थीं, कोई बोली लगाने को तैयार नहीं था। हमने सार्वजनिक निवेश बढ़ाया और इस क्षेत्र को बहाल करने का काम किया। राज्यों के हाथ मजबूत बनाने के लिए हमने राज्यों को आवंटन बढ़ाया।

कच्‍चे तेल के दाम
कच्चे तेल के दामों में कमी का फायदा उपभोक्ता तक नहीं पहुंचने की कुछ सदस्यों की आलोचनाओं के जवाब में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि इससे होने वाली बचत का इस्तेमाल उपभोक्ताओं को देने के साथ विकास के लिहाज से बुनियादी ढांचे को बढ़ाने में और तेल विपणन कंपनियों का घाटा कम करने में किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में निवेश करने से अधिक रोजगार सृजित होंगे और प्रगति होगी।

वित्त मंत्री ने कहा कि इनके लाभार्थियों में तेल कंपनियां, उपभोक्ता और आधारभूत ढांचे के विकास के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था है। जेटली ने कहा, ''इस लाभ को तीन हिस्सों में बांटा गया है। एक सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों को जाता है। ये तेल कंपनियां कच्चे तेल की भविष्य की खरीद करती हैं और वे घाटा उठाती हैं।''

वित्त मंत्री ने कहा कि कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट आई है, स्वाभाविक है कि बाजार में दाम तय करने वाली तेल कंपनियां पहले अपने घाटे की भरपाई करेंगी। जेटली ने कहा, ''हमने उसका एक भाग बुनियादी संरचना पर खर्च किया है क्योंकि इससे अधिक रोजगार सृजन और विकास को बढ़ाने में मदद मिलती है।'' उन्होंने कहा कि जो लोग स्कूटर, कार या ट्रक चलाते हैं, वे सड़कों का इस्तेमाल भी करते हैं। इसलिए सड़कों के निर्माण में यह उनका योगदान है।

जेटली ने कहा, ''सीधी सी व्याख्या यह है कि उपभोक्ता पेट्रोल के कम दाम देने का हक रखता है। साथ ही उसे अच्छी सड़क का भी हक है। इसलिए उपभोक्ताओं को अच्छी सड़क मिलनी चाहिए।'' पिछले कुछ महीनों से कच्चे तेल के वैश्विक दामों में तेजी से गिरावट दर्ज की गयी है लेकिन इस तरह की चिंताएं जताई जाती रहीं हैं कि सरकार इसका लाभ पूरी तरह उपभोक्ताओं को नहीं दे रही और इस तुलना में पेट्रोल, डीजल के दाम कम नहीं होते।

राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फरवरी 2014 के भाषण में महंगाई कम करने के वादे पर चुटकी लिये जाने पर पलटवार करते हुए जेटली ने कहा कि यह विषय आंकड़ों का है, नारों का नहीं। पूर्ववर्ती संप्रग सरकार अर्थव्यवस्था को गंभीर स्थिति में छोड़ कर गई थी और ऐसे में कोई भी व्यक्ति जो चुनाव में जाता, वह महंगाई कम करने की बात ही करता।

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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