यह ख़बर 16 अप्रैल, 2012 को प्रकाशित हुई थी

मुंबई में ऑटो रिक्शा हड़ताल से जनता परेशान

खास बातें

  • मुंबई की सबसे बड़ी ऑटो रिक्शा यूनियन द्वारा सोमवार को आहूत एक दिन की हड़ताल के कारण लाखों यात्रियों व विद्यार्थियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा।
मुंबई:

मुंबई की सबसे बड़ी ऑटो रिक्शा यूनियन द्वारा सोमवार को आहूत एक दिन की हड़ताल के कारण लाखों यात्रियों व विद्यार्थियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा। यह हड़ताल मुंबई के उपनगरों में ही प्रभावी रही, क्योंकि बांद्रा के बाद मुंबई के हिस्से में ऑटो रिक्शा के प्रवेश पर प्रतिबंध है।

शरद राव के नेतृत्व वाले मुंबई ऑटोरिक्शामेन्स यूनियन (एमएयू) ने न्यूनतम किराए में एक रुपये की वृद्धि करने के बावजूद यह हड़ताल की है। क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण (आरटीए) ने पिछले सप्ताह ऑटो रिक्शा का न्यूनतम किराया 11 रुपये से बढ़ाकर 12 रुपये कर दिया था। एमएयू से संबद्ध 20,000 से अधिक ऑटोरिक्शे आधी रात से ही सड़कों से हट गए। जबकि कांग्रेस, शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना से संबद्ध ऑटो रिक्शा संगठनों ने इस हड़ताल का विरोध किया है और हड़ताल से उत्पन्न स्थिति से निपटने की कोशिश में लगे हुए हैं, लेकिन कम संख्या के कारण उनकी यह कोशिश नाकाफी साबित हो रही है।

इस हड़ताल के कारण बेस्ट बसों की इंतजार करने वाले यात्रियों की लंबी कतारें लगी रहीं, जबकि परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों ने समय पर परीक्षा केंद्रों तक पहुंचने के लिए पढ़ाई के मूल्यवान समय को तिलांजलि देकर पहले ही घर से निकलना बेहतर समझा। इस हड़ताल के कारण बसों पर भार बढ़ गया और अतिरिक्त बसों की व्यवस्था करने के बावजूद बसों में भारी भीड़ रही।

एक घंटे से बेस्ट बस की कतार में खड़े हरेश शाह ने कहा कि हर तरह के सार्वजनिक परिवहन को आवश्यक सेवा के तहत लाया जाना चाहिए। शाह ने कहा, "एक छोटा सा समूह शहर के पूरे यात्री समुदाय को कैसे बंधक बना सकता है?" अंधेरी में एक निजी कंपनी में काम करने वाली प्रिया घानेकर ने कहा कि इस तरह के ऑटो रिक्शा हड़ताल के दौरान टैक्सियों को उपनगरों में विशेष परिचालन की अनुमति दी जानी चाहिए।

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पिछले सप्ताह एमएयू के राव ने राज्यव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा की थी, जिसमें लगभग 10 लाख ऑटो रिक्शों के शामिल होने की संभावना थी। लेकिन अन्य संगठनों के असहयोग और आरटीए द्वारा न्यूनतम किराए में एक रुपये की वृद्धि की अनुमति देने के बाद राव अपने रुख से पीछे हट गए और उन्होंने व्यापक व अनिश्चितकालीन हड़ताल को एक दिन के सांकेतिक हड़ताल में बदल दिया।