नई सरकार आने के बाद किस तरह के गॉसिप चर्चा में रहे, जानते हैं :-
सबसे पहले नितिन गडकरी की जासूसी की खबरें आईं, कहा गया कि गडकरी के मुंबई के घर में बातें सुनने के लिए कोई उपकरण लगाया गया है। बात इतनी बढ़ी कि कांग्रेस ने राज्यसभा नहीं चलने दी और गृहमंत्री को बयान देकर सफाई देनी पड़ी।
अगला मामला खुद गृहमंत्री के बेटे से संबंधित है। गॉसिप है कि प्रधानमंत्री ने गृहमंत्री से कहा कि आपका बेटा अच्छा काम कर रहा है, मैं उससे मिलना चाहता हूं। अफवाहों के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने राजनाथ के बेटे को मुलाकात के आखिर में अपना व्यवहार सुधारने के लिए कहा, मामला कुछ लेन-देन का था।
राजनाथ ने इसकी शिकायत पार्टी के वरिष्ठ नेताओें से की, जिसमें प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष शामिल हैं। असल में यह महज अफवाह नहीं है, यह सरकार के दो बड़े मंत्रियों के बीच सत्ता की लड़ाई है।
यह लड़ाई कैबिनेट में नंबर-2 की भी है। कायदे से गृहमंत्री को सरकार में नंबर दो माना जाता है, लेकिन दो बड़े मंत्रालय संभालने वाले एक मंत्री नंबर दो पर अपना दावा करते हैं।
बहरहाल, कुछ और गॉसिप बताता हूं। एक मंत्री को केवल इस बात के लिए डांट पिलाई गई कि उन्होंने फलां उद्योगपति के साथ खाना था। यही नहीं एक और मंत्री को सलीके से कपड़े न पहनने के लिए चेताया गया। एक बड़े मंत्री को समय पर दफ्तर न आने पर चेतावनी दी गई।
एक और मंत्री को अपने बच्चे के कॉलेज के समारोह के लिए विदेश जाने से रोक दिया गया। कुल मिलाकर जब से नई सरकार बनी है, तभी से इस तरह की अफवाहें फैलने लगी हैं। शुरू में लगा कि अच्छा है, प्रधानमंत्री ने लगाम कसी हुई है, क्योंकि सभी को अंदाजा था कि मनमोहन सिंह कैबिनेट में कई मंत्री बेलगाम थे। प्रधानमंत्री की बात तक नहीं मानते थे। ऐसे हालात में मोदी सरकार के हवाले से आ रही अफवाहें अच्छी लग रही थीं, लेकिन अब बात खुलकर सामने आ गई जब राजनाथ सिंह ने अपने ही एक वरिष्ठ सहयोगी की शिकायत प्रधानमंत्री से की।
एक बात बता दूं कि बीजेपी में एक पुरानी बीमारी है, ऑफ रिकॉर्ड ब्रीफींग की। कई नेताओं की आदत है और इसी बहाने खबरें प्लांट की जाती रही हैं। सबके पत्रकारों के अपने गुट हैं, जिन्हें पहले खबर दी जाती है।
इसे इनर सर्किल कहा जाता है, जबकि कुछ बीजेपी नेता कहते हैं कि हमारे यहां कुछ भी ऑफ रिकॉर्ड नहीं होता तो इस तरह बीजेपी में पत्रकार भी बंटे हुए हैं। ऐसा हर पार्टी में होता है, किसी में कम किसी में अधिक।
मगर राजनाथ सिंह के बयान ने विवादों की उस पोटली को खोल दिया, जिसे अभी तक राजनैतिक गॉसिप कहा जाता था और इसे गंभीरता से नहीं लिया जाता था और इससे प्रधानमंत्री की छवि को नुकसान पहुंचा, जिनकी छवि एक नो नॉनसेंस प्रधानमंत्री की है।
कैबिनेट में बड़े मंत्रियों के बीच अहं का टकराव हमेशा से रहा है। यह नेहरू कैबिनेट से लेकर मनमोहन सिंह तक रहा। कहा यह भी जाता रहा है कि मनमोहन सिंह को अपने एक वित्त मंत्री के बजट भाषण का पता तब चलता था कि बजट में क्या है, जब वित्तमंत्री अपना भाषण लोकसभा में पढ़ रहे होते थे, मगर इस बार लगा था कि इस प्रधानमंत्री के काल में यह सब नहीं होगा, लेकिन नई सरकार के आने के बाद खबरों का टोटा होने लगा। खबरों के लिए टि्वटर और प्रेस रिलीज पर निर्भरता जब बढ़ने लगी तब पत्रकारों के पास इन राजनैतिक गॉसिप को गंभीरता से लेने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया था और ये प्रमुखता से छपने लगे।
क्या करें लोकतंत्र में पत्रकार, नेता और उनकी गुटबाजी एक राजनैतिक सच्चाई है और हम सब इससे मजबूर हैं। राजनैतिक गॉसिप में सबको मजा आता है और यह रुक भी नहीं सकता, चाहे कितनी भी बंदिशें लगा दी जाएं।