यह ख़बर 02 अक्टूबर, 2011 को प्रकाशित हुई थी

भोपाल : गैस पीड़ितों की जान ले रहा दवा परीक्षण

खास बातें

  • परीक्षणों के परिणामस्वरूप कुछ लोगों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा है। यह परीक्षण इन्हीं पीड़ितों के इलाज के लिए बनाए गए अस्पताल में किए गए।
भोपाल:

भोपाल गैस कांड के बाद बचे कुछ लोगों पर एक बार फिर संकट का साया मंडरा रहा है। बचे कई लोगों पर गैर कानूनी तरीके से दवाईयों का परीक्षण किया जा रहा है। इन परीक्षणों के परिणामस्वरूप कुछ लोगों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा है। यह परीक्षण कहीं और नहीं इन्हीं पीड़ितों के इलाज के लिए बनाए गए अस्पताल भोपाल मेमोरियल हास्पीटल और रिसर्च सेंटर यानि बीएमएचआरसी में किए गए। बताया जा रहा है कि करीब 10 प्रकार की दवाइयों का परीक्षण कुछ मरीजों पर किया गया। इन मरीजों से कुछ कागजातों पर दस्तखत भी करवाए गए हैं। इन दवाइयों का सेवन कर रहे गैस पीड़ित रामाधार ने बताया कि अस्पताल एक कागज पर दस्तखत करवाने के बाद उन्हें एक बोलत में दवाई पीने के लिए दी। यह दवाई क्यों दी गई इस बार उऩ्हें कभी भी कुछ नहीं बताया गया। भोपाल की एक सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा का दावा है कि इन दवाओं के सेवन से अब तक 10 लोगों की मौत हो चुकी है। इन परीक्षणों में हृदय, पेट, मस्तिष्क, धमनियां और शरीर को सुन्न करने वाली दवाइयां शामिल हैं। रचना का कहना है कि यह परीक्षण ऐसे लोगों पर किए गए जो काफी बीमार हैं और उनमें से कई को तनिक भी जानकारी नहीं है कि आखिर उनके साथ हो क्या रहा है। जानकारी के अनुसार करीब 279 लोगों पर दवाई का परीक्षण किया गया और इनमें से 215 गैस पीड़ित हैं। नियमों के अनुसार परीक्षण के दौरान यदि कोई मृत्यु होती है तो उसे सात दिनों के भीतर रिपोर्ट किया जाएगा और उसकी जांच कर यह देखा जाएगा कि कहीं यह दवा का असर तो नहीं। यहां पर अधिकतर मामलों में देखा गया है कि महीनों बाद भी ऐसी मृत्यु को दर्ज नहीं किया जाता। सभी प्रकार के परीक्षणों को एक उच्चस्तरीय समिति देखती है जिसका काम यह होता है कि किसी भी तरह से नियमों का उल्लंघन न हो पाए। बीएमएचआरसी में इस समिति में 19 सदस्य हैं। इनमें से भी 13 डॉक्टर हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि इन 13 डॉक्टरों में से अधिकतर इस तरह के परीक्षणों में शामिल हैं। ऐसे में यहां यह बात भी साबित होती है कि वह कैसे निष्पक्ष होकर अपने काम को अंजाम देंगे। ऐसा भी नहीं है कि देश में ऐसी बातों पर निगरानी के लिए बनी सर्वोच्च संस्था ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को इस बात की जानकारी नहीं है। कार्यालय ने मात्र एक चेतावनी भरा नोट भेजकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया है। कानून के मुताबिक डीसीजीआई को इस तरह के परीक्षण पर तुरंत प्रभाव से रोक लगानी चाहिए थी। समाजसेवा में लगे लोगों का कहना है कि गरीब लोगों की जिंदगी के साथ खुलेआम खेले जा रहे खेल के खिलाफ जब तक कोई कड़ी कार्रवाई कर एक उदाहरण पेश नहीं किया जाएगा तब तक देश में ऐसे खिलवाड़ जारी रहेंगे।


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