यह ख़बर 15 अप्रैल, 2011 को प्रकाशित हुई थी

बिनायक सेन को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली

खास बातें

  • बिनायक सेन को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। छत्तीसगढ़ की निचली अदालत ने उन्हें देशद्रोह के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
New Delhi:

सामाजिक कार्यकर्ता बिनायक सेन को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। बिनायक सेन को छत्तीसगढ़ की निचली अदालत ने पिछले साल दिसंबर में नक्सलियों को समर्थन देने ओर देश विरोधी गतिविधियों के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। फरवरी में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिनायक सेन की जमानत अर्जी ठुकरा दी थी। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बिनायक सेन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।बिनायक सेन पर नक्सलियों की मदद करने का आरोप लगाया गया था। उन्हें सजा सुनाने के खिलाफ देशभर में कई प्रदर्शन भी हो चुके हैं, साथ ही 12 देशों के 40 नोबल पुरस्कार विजेता भी प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर बिनायक सेन के खिलाफ निष्पक्ष कार्रवाई की अपील कर चुके हैं। बिनायक सेन की बेटी अपराजिता ने कहा कि हम इस लम्हे के लिए लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। उधर, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा कि वह हम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं। अब बिलासपुर हाइकोर्ट में आगे की कानूनी प्रक्रिया चलेगी वहीं, सीपीआई महासचिव एबी बर्धन ने कहा है कि कांग्रेस की आंखें अब भी नहीं खुली हैं। अमूमन डॉक्टर गांवों में जाना पसंद नहीं करते, लेकिन डॉक्टर बिनायक सेन 30 साल से छत्तीसगढ़ में रहकर गरीब आदिवासियों को स्वास्थ सुविधाएं देते रहे हैं। उनका जुर्म ये जरूर है कि उन्होंने सरकारी दमन के खिलाफ आवाज उठाई। गरीबों के मानवाधिकार हनन का विरोध किया, सलवा जुडूम का विरोध किया। गांव के गरीबों की सेवा के लिए उन्हें 2004 में पॉल हैरीसन अवार्ड मिला। 2007 में उन्हें इंडियन एकैडमी ऑफ सोशल साइंसेज ने आरआर कीथन गोल्ड मेडल दिया। 2008 में उन्हें मानवाधिकारों और ग्लोबल सेहत के लिए जोनाथन मान अवार्ड दिया। इस कहानी का एक और पहलू है जो साथ−साथ चल रहा है। 14 मई, 2007 को पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। आरोप लगाया कि वह माओवादी नेता नारायण सान्याल की चिट्ठियां जेल के बाहर ले जाते हैं। 2007 में पहले हाइकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत रद्द कर दी। 2009 में आखिरकार उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल सकी। 2010 में उन्हें देशद्रोह के आरोप मे उम्रकैद की सजा सुना दी गई। बदकिस्मती से इन आरोपों की बुनियाद बड़ी कच्ची थी। पहली बार पुलिस ने सेन के खिलाफ जो सबूत पेश किए, उनमें 3 जून, 2006 का एक पोस्टकार्ड था, जो रायपुर सेंट्रल जेल में बंद नारायण सान्याल ने बिनायक सेन को अपनी सेहत की बाबत लिखा था। इस पर जेल अधिकारियों के दस्तखत थे। पीडब्ल्यूजी और एमसीसी की एकता पर पीले रंग की एक बुकलेट थी। सीपीआई माओवादी के मदनलाल बंजारे की एक चिट्ठी थी, जो प्रिय कॉमरेड बिनायक सेन के नाम थी, साथ में कुछ लेख और उनकी प्रतियां थीं। उनकी पत्नी का आरोप है कि उनके खिलाफ पुलिस ने झूठे सबूत गढ़े।


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