यह ख़बर 07 जनवरी, 2014 को प्रकाशित हुई थी

एकल कर प्रणाली का अध्ययन कर रही है भाजपा

नई दिल्ली:

एक शोध समूह ने व्यक्तिगत और कंपनियों पर लगने वाले सभी तरह के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को समाप्त कर उनके स्थान पर केवल प्राप्तियों पर 'लेनदेन कर' लगाने का सुझाव दिया है। प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इसका अध्ययन कर रही है।

भाजपा के कुछ नेता पहले ही इस तरह के कर की बात कर रहे हैं, लेकिन मुख्य तौर पर इसका प्रस्ताव पुणे के अर्थक्रांति प्रतिष्ठान ने किया है। उसने मंगलवार को दावा किया कि इस तरह की कर प्रणाली अपनाने से वास्तव में भारत का कर राजस्व 14 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर तीन गुणा यानी 40 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि पार्टी के 2025 के दृष्टिपत्र में शामिल करने के लिये कई प्रस्तावों में से यह एक प्रस्ताव है। अर्थक्रांति के इस प्रस्ताव पर कोई भी अंतिम निर्णय विभिन्न वर्गों से मिलने वाले सुझावों पर विचार के बाद ही लिया जाएगा।

इस नेता ने कहा कि आम चुनाव से पहले इस बारे में कोई अंतिम निर्णय किया जाएगा। सबसे पहले पार्टी की अवलोकन समिति इस पर विचार करेगी उसके बाद अंतिम निर्णय के लिए प्रस्ताव को भाजपा संसदीय समिति के पास भेजा जाएगा। बहरहाल, इसका अध्ययन किया जा रहा है।

भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी की अध्यक्षता वाली 2025 की विजन समिति को यह प्रस्ताव सौंपा गया है। समिति न्यायपालिका, शिक्षा, पुलिस, प्रशासन और कर। इन पांच क्षेत्रों में किए जाने वाले सुधारों पर काम कर रही है। अर्थक्रांति के प्रतिनिधियों ने अपने इस प्रस्ताव पर संवाददाताओं के समक्ष प्रस्तुतिकरण दिया।

उन्होंने दावा किया कि आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के समक्ष भी प्रस्तुतिकरण दिया। इसके अलावा उन्होंने आईएएस अधिकारियों और उद्योगपतियों को भी इसकी जानकारी दी है।

प्रतिनिधियों ने बताया कि वह करीब पांच साल से बाबा रामदेव के संपर्क में हैं। रामदेव ने हाल ही में इस तरह की कर प्रणाली की वकालत की है।

अर्थक्रांति के प्रतिनिधियों ने हालांकि इस तरह के उनके कर प्रस्ताव को कुछ अतिवादी प्रकृति का होने की बात स्वीकार करते हुये कहा कि वह केवल कराधान के क्षेत्र में ही इस तरह के सुधार की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था में उनकी ऐसी पहल का सुझाव है।

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हालांकि, प्रतिनिधि इस तरह की कर प्रणाली को उन राज्यों में लागू करने पर जो कि अपनी वित्तीय ताकत गंवा बैठे हैं, में लागू करने की व्यवहार्यता पर विस्तार से नहीं बता सके। विनिर्माण और अन्य व्यावसायिक क्षेत्रों में प्राप्ति आधारित लेनदेन कर के प्रभावों पर भी विस्तार पूर्वक वह कुछ नहीं कह सके।