यूपी पंचायत चुनाव को 2017 के लिए 'लिटमस टेस्ट' मान रही बीजेपी फेल

यूपी पंचायत चुनाव को 2017 के लिए 'लिटमस टेस्ट' मान रही बीजेपी फेल

फोटो प्रतीकात्‍मक

वाराणसी :

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के परिणाम आ गए हैं। पहली बार इस चुनाव में शिरक़त कर रही भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। हालात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में भी भाजपा दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई। यहीं नहीं, पीएम के गोद लिए गांव जयापुर के ब्‍लॉक अराजी लाइन में भी भाजपा जिला पंचायत का चुनाव हार गई। यहां से बीएसपी के समर्थित उम्मीदवार गुड्डू तिवारी ने भाजपा प्रत्याशी को करारी शिकस्‍त दी।   

इस जीत ने जयापुर में मायूसी फैला दी है। जयापुर  के पंचायत भवन के पास सुबह से लोग अखबार में नतीजे देख रहे हैं और इस हार की समीक्षा कर रहे हैं। गुड्डू तिवारी की जीत सिर्फ इसलिए बड़ी नहीं है कि उसने पीएम  के गांव के इलाके में भाजपा को शिकस्‍त दी है बल्कि इसलिए भी बड़ी है क्योंकि जीत का मार्जिन भी बड़ा है। पीएम के गोद लिए जयापुर का जिला पंचायत सदस्य 18 गांव के वोट से चुना जाता है, इसमें से 14 गांव में भाजपा की करारी हार हुई है सिर्फ चार गांव में वह आगे रही है। साफ़ है कि प्रधानमंत्री के गांव के अगल-बगल के लोग भी उनके विकास मॉडल से खुश नहीं हैं।  

'कहते तो हैं पर करके दिखाते नहीं'
 रमेश उर्फ गुड्डू तिवारी भी कहते हैं कि 'आदर्श गांव जयापुर है, पीएम ने गोद लिया है। रोड बना, इतना सुन्दर रोड बना कि देखने में बड़ा अच्‍छा लगा। लेकिन साल भर भी नहीं हुआ रोड उखड़ गई है तो बातें कुछ काम कुछ। भाजपा के करारी हार का कारण है कहना कुछ, करना कम है। विकास कार्य के लिए कहते तो हैं पर करके दिखाते नहीं।  

हार पर यह दलील दे रहे भाजपा नेता
मामला सिर्फ प्रत्याशी के चयन का नहीं है क्योंकि भाजपा के काशी क्षेत्र के 12 जिलों में भी उसे करारी हार का सामना करना पड़ा है। इन 12 जिलों की 601 सीट में सिर्फ 75 पर ही भाजपा जीत पाई है।  इनमें वाराणसी में 48 में 8 , चंदौली में 35 में 5 , गाजीपुर के 67 में 10 ,भदोही के 27 में 2 ,जौनपुर के 83 में 7 , सोनभद्र के 33 में 2 , मिर्ज़ापुर के 44 में 4 , इलाहाबाद के 92 में 14 , कौशाम्बी के 29 में 5 , प्रतापगढ़ के 46 में 4 , सुल्तानपुर के 46 में 9, और अमेठी के 36 में 4 शामिल हैं।

इस करारी हार पर भी बीजेपी नेता अपनी दलील दे रहे हैं कि इस चुनाव में उन्‍होंने पार्टी के आधार पर लड़ा। उन्‍होंने कहा कि हमने इलेक्शन कमीशन से चुनाव चिन्ह मांगा था उन्होंने नहीं दिया। बाकी पार्टियों ने तो लड़ने की जहमत भी नहीं उठाई और भाग खड़ी हुईं। नैतिक दृष्टि से तो वे लोग उसी दिन हार गए थे। हमें सिम्बल नहीं मिला तो कोई किसी चुनाव निशान से लड़ा तो कोई किसी चुनाव निशान से, हार का यह बड़ा कारण बन गया।

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इस बड़ी हार से बचने के लिए बीजेपी के नेता चाहे जो कहें पर सच तो ये है कि बिहार में बीजेपी ने बड़ी ताक़त के साथ चुनाव लड़ा जिसका परिणाम आना अभी बाकी है। लेकिन उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में पहली बार लड़ रही बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी है। बीजेपी 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए इसे अपना लिटमस टेस्ट मान रही थी, जिसमें वो बुरी तरह फेल हो गई है और अगर इसी तैयारी के साथ 2017 का चुनाव भी लड़ना है तो परिणाम क्या होगा, ये आप खुद सोच सकते हैं।