ठाणे में बिल्डरों का विरोध प्रदर्शन, 'बाबुओं और नेताओं की संगठित वसूली' के खिलाफ मोर्चा

ठाणे में बिल्डरों का विरोध प्रदर्शन, 'बाबुओं और नेताओं की संगठित वसूली' के खिलाफ मोर्चा

मुंबई:

ठाणे के बिल्डर सूरज परमार की खुदकुशी संकट में चल रहे रियल इस्टेट कारोबार की आवाज बन गई है। कई साल से परेशान बिल्डर अब खुलकर अपनी परेशानियां बयान करने लगे हैं। डर जताया जा रहा है कि जल्द ही अगर सरकारी नीतियों और बाबुओं के व्यवहार में सुधार नहीं लाया गया तो और भी बिल्डर खुदकुशी के शिकार हो सकते हैं।

अपने साथी सूरज परमार की खुदखुशी पर शोक जताने के लिए हजारों की संख्या में रियल इस्टेट कारोबारी जमा हुए थे। सभी के हाथों में तख्तियां थी, जिन पर लिखा था हम सिस्टम के पीड़ि‍त हैं। कहने को मोर्चा मूक था, लेकिन सबके दिल में आग सुलग रही थी। रियल इस्टेट कारोबारी अजय आशर ने कहा कि सरकार 'मेक इन इंडिया' और 'मेक इन महाराष्ट्र' की बात कर रही है लेकिन अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये नारा सिर्फ सपना बनकर रह जाएगा। रियल इस्टेट के एक और बडे कारोबारी धर्मेश जैन के मुताबिक ये कारोबार सालों से परेशानी में है लेकिन सरकार को सुध नहीं है।

रियल इस्टेट मोटी कमाई वाला कारोबार माना जाता है, इसलिए इस पर सबकी गिद्ध नज़र है। आरोप है कि नेता, पुलिस, सरकारी बाबू, मीडिया और अंडरवर्ल्ड भी इसमें दखल देते रहते हैं। खुद सूरज ने भी अपने सुसाईड नोट में सरकारी बाबुओं और नेताओं की कारगुजारियों का जिक्र किया है।

एसआरए हो, रिडेवलेपमेंट या फिर नया निर्माण, सभी के लिए 50 से 60 विभागों से अनुमति और एनओसी लेनी पड़ती है। आरोप है कि सरकारी बाबू महीनों फाइलें लटका कर रखते हैं और बिना पैसे के आगे नहीं बढ़ाते। सूरज की मौत इसी लालफीताशाही का नतीजा मानी जा रही है। ठाणे महानगरपालिका के अज्ञात सरकारी बाबुओं और नेताओं के खिलाफ मामला भी दर्ज हो चुका है।
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सूरज परमार ने 7 अक्टूबर को अपनी ही सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मार दी थी। उसके बाद से शहर के कई छोटे-बड़े प्रोजेक्ट के बाहर 'हम सिस्टम के पीड़ि‍त हैं' लिखे बैनर लगे हैं। जानकार बताते हैं कि इस कहानी का एक पहलू भले ही बिल्डरों का लालच हो, लेकिन दूसरा पहलू सरकारी बाबुओं और नेताओं की संगठित वसूली भी है।