यह ख़बर 17 सितंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

बाबा की कलम से : विधानसभा उपचुनाव में बैकफुट पर बीजेपी

पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की फाइल फोटो

नई दिल्ली:

विधानसभा उपचुनाव के नतीजों को लेकर बीजेपी बैकफुट पर है। होना भी चाहिए, क्योंकि आंकड़े काफी कुछ कहते हैं। लोकसभा चुनाव के बाद अभी तक 53 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो चुके हैं, इसमें से बीजेपी केवल 19 सीटें ही जीत पाई है।

सबसे पहले उत्तराखंड में तीन विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में सभी कांग्रेस के खाते में गई। फिर कनार्टक में तीन में से कांग्रेस दो पर और बीजेपी एक पर जीती। बिहार में दस सीटों में से बीजेपी के खाते में चार सीटें गईं।

मध्य प्रदेश में तीन सीटों में से दो बीजेपी के खाते में गईं। उत्तर प्रदेश की 11 सीटों में से आठ समाजवादी ने जीतीं। राजस्थान में चार सीटों में से तीन सीट कांग्रेस के खाते में गईं। असम और बंगाल में बीजेपी को सफलता मिली। 1999 के बाद पहली बार बंगाल में खाता खुला है। गुजरात में बीजेपी को छह और कांग्रेस को तीन सीट मिली हैं। इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि कोई एक फार्मुला नहीं है, जो लोकसभा और विधानसभा चुनाव दोनों पर लागू हो।

बीजेपी को उत्तर प्रदेश में जो धक्का लगा है, उससे साफ जाहिर है कि लव जिहाद और आदित्यनाथ के बांटने वाले भाषण सुनने में जनता को दिलचस्पी नहीं है। शायद बीजेपी भूल गई कि नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक भी शब्द ऐसा नहीं कहा, जिससे किसी को यह कहने का मौका मिलता कि यह भड़काने वाला बयान है।

मोदी केवल विकास और अच्छे दिन की बात करते रहे और लोगों को विकास की तस्वीर बेची, लेकिन उत्तर प्रदेश में तो शुरुआत ही 'लव जिहाद' से किया गया और नतीजा सामने है। दूसरे बीजेपी के नेता अभी भी लोकसभा चुनाव की जीत के नशे से बाहर नहीं आ पाए हैं। उन्हें लगा कि अभी 100 दिन ही तो हुए हैं तो आखिर हुआ क्या, क्या बीजेपी को उनका अतिविश्वास ले डूबा। कई लोग इसे केन्द्र सरकार के कामकाज से जोड़ कर देख रहे हैं, यह अभी उचित नहीं है। ये नतीजे भले ही अमित शाह के कामकाज पर टिप्पणी कर रहे हैं, मगर उपचुनाव के नतीजों को केन्द्र सरकार के कामकाज से जोड़ कर देखना ठीक नहीं है। यदि बीजेपी को लगता है कि नरेन्द्र मोदी के नाम की माला जपकर विधानसभा चुनाव जीता जा सकता है तो यह उनका भ्रम है। इन चुनाव में यह भी साबित हुआ कि रणनीति बना कर बीजेपी को रोका भी जा सकता है और यह भी साफ हुआ कि कांग्रेस को इतराने की जरूरत नहीं है। केवल राजस्थान में कांग्रेस को राहत है, वर्ना कांग्रेस को दोबारा जिंदा होने में सालों का सफर तय करना पड़ेगा।

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राजस्थान और गुजरात की सफलता बिना राहुल गांधी की हिस्सेदारी के मिली है और समाजवादी पार्टी को भी इतराने की जरूरत नहीं है। यदि उसे लगता है कि इस नतीजे के बाद अगले विधानसभा चुनाव में सपा को इससे फायदा होगा तो यह गलतफहमी होगी, क्योंकि इस चुनाव में मायावती ने उम्मीदवार खड़े नहीं किए थे। इस उपचुनाव से इतना तो होगा कि बीजेपी के सहयोगी महाराष्ट्र और हरियाणा में अब दबकर नहीं रहेंगे। उद्धव ठाकरे ने बीजेपी को पैर जमीन पर रखने की सलाह दी है यानी हवा में न उड़ें…जी हां यह पब्लिक है सब जानती है, यह सिर पर बिठाती है तो उतार भी तुरंत देती है। राजीव गांधी को 1984 में 404 सीटें मिली थीं तो अगले चुनाव में 197 पर आ गए थे।