यह ख़बर 12 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हुई थी

सेहत से खिलवाड़ : डॉक्टरों को चाहिए पैसा, गिफ्ट और...

एनडीटीवी स्टिंग का दृश्य

नई दिल्ली:

अब भ्रष्टाचार मेडिकल की दुनिया में भी पाँव जमा चुका है, लेकिन सबसे दुखद यह है कि मरीज़ों की ज़िंदगी से खिलवाड़ करने में डॉक्टर भी शामिल हैं। डॉक्टर कमीशन लेते हैं जान−बूझ कर महंगी दवाएं लिखते हैं बेमतलब इलाज सुझाते हैं।

सोमवार रात प्रसारित हमारी इस रिपोर्ट पर संसद में प्रतिक्रिया देते हुए स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि इस संबंध में मेडिकल काउंसिल को कार्रवाई करनी चाहिए।

इन सब की पड़ताल एनडीटीवी ने की। सेहत की दुनिया में चल रहे भ्रष्टाचार का खुलासा करती हमारी यह रिपोर्ट तैयार की है हमारी सहयोगी सोनल मेहरोत्रा ने।

ये फ्लू का मौसम है। वायरल इंफैक्शन की वजह से गले में खराश, बहती नाक और बुखार लोगों को उनके घरों से डॉक्टर के क्लिनिक तक आने पर मजबूर कर रहे हैं, लेकिन अगली बार डॉक्टर के पास जाने से पहले एक नज़र इनपर भी डालिए।

अब जबकि देश की स्वास्थ्य सेवाओं में करप्शन का कैंसर अपनी गहरी जड़े जमा चुका है, एनडीटीवी ने डॉक्टरों और फॉर्मास्यूटिकल कंपनियों के बीच गठजोड़ को उजागर करने की ठानी है। आखिर कोई डॉक्टर किसी खास ब्रांड की दवाएं ही क्यों लिखता है, जब बाजार में उससे कई गुना सस्ती जेनरिक दवाएं मौजूद हैं।

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के मुताबिक डॉक्टर अस्पताल और मेडिकल कॉलेजों को जहां तक हो सके जेनरिक दवाएं ही लिखनी चाहिए।

हर फिजीशियन को जहां तक मुमकिन हो जेनेरिक नामों वाली दवाएं ही लिखनी चाहिए और तय करना चाहिए कि पर्चा और दवाओं का इस्तेमाल उचित हो, लेकिन ज्यादातर डॉक्टर न सिर्फ इन निर्देशों को नजरअंदाज करते हैं बल्कि किसी खास ब्रांड की दवा को बढ़ावा देने के लिए रिश्वत भी मांगते हैं।

इसलिए हमने खुद को एक नई फार्मा कंपनी का मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव बताकर हकीक़त खंगालने का फैसला किया और कुछ डॉक्टरों से मुलाकात कर अपने ब्रांड की दवा लिखने की बात कही।

सबसे पहले हम दिल्ली में पटेल नगर के डॉ जेएन सक्सेना से मिले। क्लिनिक की दीवारें उनकी काबिलियत, कामयाबी और उपलब्धियों के सर्टिफिकेट से भरी पड़ी थी।

हमने उनसे मिलकर अपनी फॉर्मा कंपनी की विटामिन की सिफारिश की और कहा कि इसके बदले हमारी कंपनी उन्हें नकद या सामान के तौर पर उपहार देगी। डॉ सक्सेना खुशी-खुशी राजी हो गए। हफ्ते में एक बार आने को कहा। अगले हफ्ते हम फिर गए और सबूत ले आए। सिर्फ पांच हजार रुपये की पहली किश्त लेकर डॉ सक्सेना ये दवा उनके लिए भी लिखने लगे जिन्हें इसकी जरूरत नहीं थी।

पड़ोस से आई इस महिला को लो ब्लड प्रेशर की शिकायत है, लेकिन उन्हें पूरे महीने के लिए एनर्जी सप्लीमेंट लेने को कहा गया बेशक ये सप्लीमेंट उसी कंपनी का है जिससे उन्हें इस बात के पैसे मिले हैं।

काम पूरा हुआ अब डॉ सक्सेना को इनाम की उम्मीद थी, स्टिंग ऑपरेशन की रिपोर्ट में देख सकते हैं कि डॉ सक्सेना 5000 रुपये ले रहे हैं। क्योंकि उन्होंने हमारी दवा लिखने का अपना टार्गेट पूरा कर लिया है।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मरीज़ को इसकी जरूरत है कि नहीं।

डॉक्टर यहां तक कह रहे हैं कि आप फिक्र मत कीजिए, मेरे पास आपका नंबर है, अगर किसी महीने आप अपना टार्गेट पूरा नहीं कर सके तो मुझे बताइए। मैं काम कर दूंगा। अगर आप मुझे दो दिन भी पहले बता देते हैं तो काम हो जाएगा।

इसके बाद हम दक्षिण दिल्ली में डॉक्टर लालवानी से मिले और वही कवायद पूरी करते हुए अपने ब्रांड की दवा को प्रोमोट करने को कहा। जैसे ही हमने दवा की क्वालिटी की बात शुरू की डॉक्टर ने हैरान करने वाले तरीके से दवाएं लिखने के बदले एक बेहद महंगा डिजिटल कैमरा लाने को कहा। नहीं तो उनके पास आने वाले बाजार के दूसरे ब्रैंड्स की भी कमी नहीं है।

दवा के बारे में कोई सवाल नहीं, सिर्फ सेल्स टार्गेट पर बात होती रही। उन्होंने डील के लिए मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की बजाय फर्म के किसी सीनियर मैनेजर से मिलने की शर्त रखी। हमने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह जो कैमरा चाहते हैं मिल जाएगा। अगली बैठक में हम डिजिटल एसएलआर कैमरों के कुछ ब्रॉशर्स के साथ पहुंचे।

और आखिर में हमारी मीटिंग इस बात पर खत्म हुई कि हम अपने सीनियर मैनेजमेंट से उनकी मांग के बारे में बात करेंगे।

अगले डॉक्टर से मुलाकात के बाद यह साफ हो गया कि वह हमारी दवा प्रोमोट करने पर तैयार है, लेकिन वह छोटे गिफ्ट नहीं लेता
दिल्ली के ही डॉक्टर रविंद्र कुमार ने हमें कहा कि वह अपने बेटे के लिए एक आईपैड चाहते हैं।

इस पूरे गड़बड़झाले को समझने के लिए हमने एक नामी फॉर्मा कंपनी के एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव से बात करनी चाही जो अपनी पहचान छुपाने की शर्त पर तैयार हो गए।

घूस-रिश्वत पैसा और महंगे सामान, इनके जरिये डॉक्टरों के फैसले प्रभावित किए जाते हैं इस बात का अंदाजा डॉ डेविड बर्जर को उस वक्त ही हो गया था, जब वह हिमालय के चैरिटेबल अस्पताल में वोलेंटियर फिजिशियन के तौर पर काम रहे थे। डेविड अभी ऑस्ट्रेलिया के एक जिले में मेडिकल ऑफिसर हैं।

हालांकि ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं होता, अमेरिका में भी ये बात सामने आई है कि डॉक्टरों और फार्मा कंपनियों के रिश्ते का असर उनकी लिखी दवाओं पर पड़ता है, जिससे लागत और जोखिम दोनों बढ़ते हैं।

इस गंभीर समस्या से लड़ने और पारदर्शिता लाने के लिए अमेरिकी सरकार सनसाइन कानून लाई है जिसके जरिये फार्मा और मेडिकल डिवाइस बनाने वाली कंपनियों को पब्लिक वेबसाइट पर ये खुलासा करना होता है कि उन्होंने डॉक्टरों को कितने पैसे दिए। अब सवाल है कि भारत करप्शन के इस कैंसर से कैसे लड़ेगा और इसका क्या इलाज है।

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स्वास्थ्य सेवाओं में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम की यह पहली कड़ी है, आप अपना फीडबैक हमें ndtv.commedicalcorruption पर दे सकते हैं। इसकी अगली कड़ी में हम मुलाकात कराएंगे उन व्हिसिलब्लोर्स से जिन्होंने डायग्नोस्टिक सेंटरों में मरीजों को भेजने के बदले डॉक्टरों की हैरतअंगेज रिश्वतखोरी की कहानी हमें बताई।