भूमिहीनों को जमीन देने के सवाल पर झुकी सरकार

राजनाथ सिंह की फाइल फोटो

नई दिल्‍ली:

बजट सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति जब संसद में अपने अभिभाषण में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का बचाव कर रहे थे इसके विरोध में पलवल से चला पदयात्रियों का कारवां राजधानी में एंट्री ले रहा था।

चौतरफा दबाव झेल रही सरकार ने इन्हें इंतजार कराना ठीक नहीं समझा। कुछ ही देर में पदयात्रियों के प्रतिनिधियों के साथ अपनी पहली बैठक में ही गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने ये भरोसा दिलाया कि सरकार अध्यादेश पर खुले दिमाग से विचार करने पर तैयार है।

सरकार के साथ पहली दौर की बैठक के बाद एकता परिषद के संयोजक रमेश ने एनडीटीवी से कहा, 'राजनाथ सिंह ने कहा कि भूमि अध्यादेश के सवाल पर सरकार खुले दिमाग से विचार करने को तैयार है। सरकार का रुख सकरात्मक है।' करीब 45 मिनट की बातचीत में सत्याग्रहियों ने राजनाथ सिंह के सामने अपनी मांगों की लिस्ट रखी जिसमें कहा गया है कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश फौरन वापस लिया जाए, ये किसान विरोधी है।

पदयात्रियों ने राष्ट्रीय आवासीय भूमि अधिकार विधेयक संसद में जल्दी पेश करने की मांग की है जिसे यूपीए-2 के कार्यकाल के दौरान तैयार किया गया था। इसके तहत हर भूमिहीन परिवार को कम से कम 10 डिस्मिल जमीन का हक़ देने का प्रावधान है। साथ ही, पदयात्री चाहते हैं कि भूमि सुधार की प्रक्रिया नए सिरे से शुरू हो और जंगल अधिकार कानून को जमीन पर सही तरीके से लागू किया जाए।

एकता परिषद के सदस्य अनीष ने एनडीटीवी से कहा, 'बैठक में गृह मंत्री ने कहा कि वो पूरी तरह से राष्ट्रीय आवासीय भूमि अधिकार बिल के पक्षधर हैं और ये अधिकार भूमिहीनों को मिलना चाहिए।'

सूत्रों के मुताबिक सरकार ने सत्याग्रहियों को ये भरोसा भी दिया है कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद को जल्द ही पुनर्गठित कर भूमि सुधार से जुड़ी सारी मांगों पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। अब पदयात्रियों ने एनडीए सरकार को उनकी मांगों पर अपना रुख 25 फरवरी तक सार्वजनिक करने का डेडलाइन दिया है।

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संसद के अंदर विपक्ष और संसद के बाहर भूमिहीनों को ज़मीन का हक दिलाने की मांग को लेकर सामादिक संगठनों के बढ़ते दबाव के सामने सरकार बजट सत्र के पहले ही दिन झुकती नज़र आई। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में सरकार इनकी मांगों पर कितनी सक्रि‍यता से आगे बढ़ने में कामयाब हो पाती है।