जलवायु-परिवर्तन : कितने वादे निभा पाएगा भारत

जलवायु-परिवर्तन : कितने वादे निभा पाएगा भारत

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली:

भारत ने जलवायु परिवर्तन ने निबटने की दिशा में अहम कदम उठाते हुए शुक्रवार को अपने रोड मैप की घोषणा की, जिसे काफी महत्वाकांक्षी बताया जा रहा है, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि सरकार ने साफ सुथरी बिजली का उत्पादन बढ़ाने के बारे में जो वादा किया है उसमें  सौर और पवन ऊर्जा का हिस्सा कितना होगा? 

40 प्रतिशत साफ-सुथरा बिजली उत्पादन अहम
भारत ने जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए जिन कदमों को उठाने की बात कही है उसमें 2030 तक 40 फीसदी बिजली साफ सुथरे ईंधन से बनाने का संकल्प काफी अहम है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत 2030 में जितनी भी बिजली पैदा करेगा उसमें 40 प्रतिशत के लिए वह कोयला या पेट्रोलियम जैसे कार्बन उत्सर्जन करने वाले ईंधन का इस्तेमाल नहीं करेगा। उधर जानी मानी संस्था ग्रीनपीस का कहना है कि सरकार ने साफ सुथरी ऊर्जा में न्यूक्लियर और हाइड्रो एनर्जी को भी शामिल किया है जिससे यह पता नहीं चल रहा कि बड़े-बड़े बांधों और न्यूक्लियर पावर प्लांट का इस बिजली में कितना योगदान होगा।

(जलवायु परिवर्तन पर लगाम के लिए भारत उठाएगा यह कदम)

एटमी बिजली और बांधों का रास्ता खुला रहेगा : ग्रीनपीस
ग्रीनपीस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि गैर पारंपरिक ऊर्जा क्षेत्र में होते विस्तार को देखते हुए सरकार को यह बताना चाहिए था कि सौर और पवन ऊर्जा को लेकर 2030 तक उसका तय लक्ष्य क्या है? ग्रीन पीस की कैंपेनर पुजारिनी सेन का कहना है, ‘नई तकनीक के दम पर 2030 तक कुल बिजली का 40 प्रतिशत उत्पादन गैर पारंपरिक स्रोतों से जरूर हो सकता है लेकिन सिर्फ ‘नॉन फॉसिल फ्यूल’ का इस्तेमाल करने की बात कहना महंगी और विनाशकारी एटमी बिजली और बड़े-बड़े बांधों का रास्ता खुला रखती है।’

हालांकि भारत ने पहले ही यह घोषणा कर रखी है कि 2022 तक वह सौर और पवन ऊर्जा से मिलाकर 1,75,000 मेगावॉट बिजली पैदा करेगा। लेकिन ग्रीनपीस का कहना है कि सरकार को 2030 तक के पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा के लक्ष्य बताने चाहिए। ग्रीनपीस ने भारत की ओर से कोयला आधारित बिजली को 1,70,000 से 2,00,000 मेगावॉट करने के इरादों पर भी चिंता जताई है और कहा है कि इससे साफ सुथरी ऊर्जा से होने वाले सारे फायदे निरस्त हो सकते हैं।  

सीएसई ने सरकार के कदमों का किया समर्थन
दूसरी ओर पर्यावरण पर नजर रखने वाले संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरांमेंट यानी, सीएसई ने सरकार के कदमों और इरादों को सही बताया है। सीएसई के उप-निदेशक  चंद्रभूषण कहते हैं कि न्यूक्लियर और हाइड्रोपावर मिलाकर भारत का बिजली उत्पादन 2030 तक 70,000 से 75,000 मेगावॉट ही हो पाएगा, जबकि देश को गैर पारंपरिक स्रोतों से करीब 3,00,000 मेगावॉट बिजली चाहिए। ऐसे में करीब 2,50,000 मेगावॉट तो सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा से ही होगा।

सीएसई का यह भी कहना है कि कोयले के इस्तेमाल को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता है क्योंकि बिजली उत्पादन बढ़ाने में प्लांट लोड फैक्टर का भी खयाल रखा जाता है। कोल पर आधारित थर्मल पावर प्लांट कहीं अधिक प्लांट लोड फैक्टर पर काम करते हैं इसलिए उनकी उपयोगिता इस हिसाब से बनी रहेगी।

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वैसे सरकार ने 2.5 से 3.0 लाख अरब टन कार्बन इमीशन को सोखने के लिए अतिरिक्त जंगल लगाने की जो बात कही है उसे देखना काफी दिलचस्प होगा, क्योंकि पिछले कुछ वक्त में अलग-अलग सरकारों की नीतियों से जंगल ही सबसे अधिक खतरे में दिख रहे हैं।