आरोपियों को फायदा पहुंचाने के लिए पुलिस जानबूझकर आरोप पत्र में छोड़ देती है कमियां: कोर्ट

आरोपियों को फायदा पहुंचाने के लिए पुलिस जानबूझकर आरोप पत्र में छोड़ देती है कमियां: कोर्ट

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली:

दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि पुलिस अधिकारी आरोप पत्र में जान-बूझकर कमियां छोड़ते हैं, ताकि गंभीर अपराध में शामिल आरोपियों को छोड़ने को अदालतें बाध्य हों और इस प्रकार न्यायपालिका बदनाम होती है।

अदालत की टिप्पणी परिवहन विभाग के एक अधिकारी को भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोप मुक्त करने के दौरान आई, जिसमें उसने कहा कि आरोप पत्र दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) के अधिकारियों ने बेहद लचर तरीके से दाखिल की। अदालत ने कहा कि जिस तरीके से आरोप पत्र दायर किया गया, उससे लगता है कि सामग्री की एसीबी के निरीक्षक राकेश कुमार और सहायक पुलिस आयुक्त महेंद्र पाल ने जान-बूझकर छानबीन नहीं की।

विशेष न्यायाधीश हिमानी मल्होत्रा ने कहा, 'यह मामला नहीं है कि एसीबी के इन वरिष्ठ अधिकारियों को आपराधिक कानूनी प्रणाली के बारीक भेद की जानकारी नहीं है। आरोप पत्र बिल्कुल साफ सबूत देता है कि कुछ कमियां आरोप पत्र में परोक्ष मंशा से जानबूझकर छोड़ी जाती हैं ताकि अदालतों को लाचार बनाया जाए और वह मजबूर होकर भ्रष्टाचार जैसे गंभीर अपराध में शामिल आरोपियों को आरोप मुक्त कर दें, बरी कर दें। भ्रष्टाचार न सिर्फ समाज के नैतिक ताना-बाना को खत्म कर रहा है, बल्कि न्यायपालिका और हमारे देश को भी लंबा मुकदमा चलाने के लिए बदनाम कर रहा है और आखिरकार भ्रष्टाचार के बड़ी संख्या में मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं।'

कोर्ट ने परिवहन विभाग के अधिकारी राजीव कुमार अरोड़ा को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अपराध से आरोप मुक्त कर दिया क्योंकि उसके खिलाफ कार्रवाई के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं थी।

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)


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