यह ख़बर 22 जनवरी, 2011 को प्रकाशित हुई थी

चुनौतियों से निपटने को तैयार IP का मीडिया स्कूल

खास बातें

  • 2011 से स्कूली शिक्षा में जनसंचार के शामिल होने तथा विदेशी विश्वविद्यालयों की देश में दस्तक के मद्देनजर आईपी यूनिवर्सिटी के मीडिया स्कूल ने अपनी कमर कस ली है...
New Delhi:

2011 से स्कूली शिक्षा में जनसंचार के शामिल होने तथा विदेशी विश्वविद्यालयों की देश में दस्तक के मद्देनजर आईपी यूनिवर्सिटी के मीडिया स्कूल ने अपनी कमर कस ली है। भावी चुनौतियों से निपटने की की क्या रणनीति हो सकती है, बता रहे हैं आईपी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर इंचार्ज चंद्रकांत प्रसाद सिंह।प्रश्न- विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत में आने से मीडिया स्कूलों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? उत्तर- विदेशी विश्वविद्यालय अपने साथ अनुभव, तकनीक तथा विशेषज्ञता लेकर आएंगे, ऐसे में देश में मौजूद विश्वविद्यालयों को भी शिक्षा के स्तर में खासा सुधार करना होगा और इंडस्ट्री के साथ शिक्षा को जोड़ना होगा। प्रश्न- आपके हिसाब से यह सुधार क्या हो सकते हैं? उत्तर- देखिए, मीडिया की विश्वविद्यालयी शिक्षा की सबसे बड़ी कमजोरी यह बताया जा रहा है कि वह बाजारोन्मुख नहीं है। यही कारण है कि विश्वविद्यालयों से ट्रेनिंग लेकर आए बच्चों के प्रति इंडस्ट्री कम उत्सुकता दिखाती है। यह सुधार दो-तरफा करना होगा। पहला यह कि मीडिया स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले कोर्स में व्यापक परिवर्तन करना होगा, ताकि वह समाज और बाजार की जरूरतों को पूरा कर सके और दूसरा यह रणनीतिक होना चाहिए।प्रश्न- रणनीति सुधार से आपका क्या मतलब है? उत्तर- रणनीतिक कहने का मतलब यह है कि सुधार स्थानीय जरूरतों, वैश्विक चुनौतियों और मौके के हिसाब से होना चाहिए। आप भारत की पुरातन शिक्षा प्रणाली को देख लीजिए। बेहतर शिक्षा व्यवस्था का हमारा इतिहास पुराना है। हमारे यहां विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय था, जहां विश्वभर से लोग शिक्षा प्राप्त करने आते थे, लेकिन समय के साथ हमारी शिक्षा व्यवस्था में गिरावट आई और और साथ ही हमारा विकासक्रम भी बाधित हुआ। आज जब हम फिर से विकास के पथ पर चल पड़े हैं, तो जरूरी है कि हम अपनी शिक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करें और समय के हिसाब से परिवर्तित करें, ताकि हमारा विकासक्रम जारी रहे, और विश्व गुरु की जो भारत की पुरानी छवि थी वह प्राप्त किया जा सके।प्रश्न- अगले साल से स्कूलों में भी मीडिया को एक विषय के रूप में जोड़ा जा रहा है। ऐसे में भावी जरूरतों को लेकर आपके पास क्या रोडमैप है? उत्तर- 2011 से स्कूलों में 11वीं और 12वीं कक्षा में मीडिया को भी एक विषय के रूप में जोड़े जाने का सीधा मतलब यह है कि 2013-14 से करीब 7 लाख बच्चे यूनिवर्सिटी स्तर पर इस विषय में ग्रेजुएट करना चाहेंगे, ऐसे में कम से कम 40 हजार कॉलेज शिक्षकों की जरूरत होगी। इसलिए समय रहते आने वाली चुनौतियों की तैयारी कर लेना ही समझदारी होगी और दूरदृष्टि भी।प्रश्न- आप भारत में मीडिया स्कूल का क्या भविष्य देखते हैं? उत्तर- मीडिया क्षेत्र की विकास दर 12 से 14 फीसदी सालाना है, जो टेलीकॉम सेक्टर के बाद सबसे ज्यादा है, इसलिए इसको दरकिनार नहीं किया जा सकता। दरअसल, मीडिया में शिक्षा का मतलब ज्यादातर पत्रकारिता से ही लिया जाता रहा है, जबकि गैर पत्रकारिता क्षेत्र भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जिसमें विज्ञापन व जनसंचार, एनीमेशन, मीडिया मैनेजमेंट आदि आते हैं। मीडिया का ही एक विषय कम्युनिकेशन की पढ़ाई मैनेजमेंट के छात्र भी एक विषय के रूप में करते हैं। आने वाले समय में इसका और फैलाव होगा और व्यक्तित्व विकास के रूप में इसको सभी प्रोफेशनल कोर्सों में शामिल किया जाएगा। इसलिए मेरे हिसाब से तो मीडिया स्कूल का भविष्य उज्ज्वल है।प्रश्न- लेकिन आप इस बात को तो मानेंगे कि पत्रकारिता भी एक अहम क्षेत्र है और एक उभरती हुई इंडस्ट्री भी। तो ऐसे में इंडस्ट्री से विश्वविद्यालय की दूरी को आप कैसे पाटेंगे? उत्तर- आप बिल्कुल सही कह रहे हैं और मैं भी इससे पूरा इत्तेफाक रखता हूं। इसलिए हमने अपने मीडिया स्कूल को इंडस्ट्री से जोड़ने के लिए एक सेल का निर्माण किया है, जिसमें विश्वविद्यालय के शिक्षकों के साथ, इंडस्ट्री से जुड़े बेहतरीन प्रोफेशनल्स होंगे। जो न सिर्फ यहां के विद्यार्थियों के प्रदर्शन को जांचेंगे, बल्कि इंडस्ट्री की जरूरतों के हिसाब से कोर्स में तब्दीली भी सुझाएंगे।प्रश्न- भारत में उच्च शिक्षा की सबसे बड़ी कमी यह रही है कि हमारे यहां शोध पर बहुत अधिक जोर नहीं दिया जा रहा। आईपी का मीडिया स्कूल इस ओर क्या कदम उठा रहा है? उत्तर- हमारे कुलपति प्रोफेसर डीके बंदोपाध्याय रिसर्च को बहुत अधिक महत्व देते हैं और एक दूरद्रष्टा व्यक्ति हैं। यही कारण है कि हमने जल्द ही मीडिया शोध को बढ़ाने का फैसला किया है। यही कारण है कि आने वाले 5-6 महीने में जनसंचार में पीएचडी की शुरुआत हम करने जा रहे हैं, जिसकी मंजूरी मिल चुकी है। इतना ही नहीं हमने मास्टर्स लेवल पर भी शोध पर व्यापक जोर देने का फैसला किया है। मीडिया में मास्टर्स कर रहे विद्यार्थियों को तीन शोध पत्र जमा करने होंगे, जिनमें से दो छोटे होंगे और एक विस्तृत अध्ययन होगा। इसका सीधा फायदा यह होगा कि विद्यार्थियों का रुझान रिसर्च की तरफ बढ़ेगा और देश में कई मीडिया मॉडलों का विकास संभव हो पाएगा।


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