यह ख़बर 15 मई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

बहू को नौकरानी नहीं बल्कि घर का सदस्य मानना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

खास बातें

  • न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘ससुराल में बहू के सम्मान से विवाह की पवित्रता और धार्मिक क्रिया की गरिमा बनी रही है और यह सभ्य समाज की संवदेनशीलता को परिलक्षित करती है जो अंतत: उसके मंगलमय जीवन का प्रतीक होती है।''
नई दिल्ली:

देश में बहुओं को जलाने और प्रताड़ित करने की घटनाओं में हो रही वृद्धि से चिंतित उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि बहू से नौकरानी नहीं बल्कि परिवार के सदस्य के रूप में व्यवहार किया जाना चाहिए और ‘‘उसे किसी भी वक्त उसके वैवाहिक घर से बाहर नहीं निकाला जा सकता है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा है कि बहू का ससुराल में सम्मान होना चाहिए क्योंकि यह सभ्य समाज की संवेदनाओं को परिलक्षित करता है।

न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि बहू से एक अंजान व्यक्ति के रूप में बेरुखी की बजाय गर्मजोशी और स्नेह के साथ परिवार के सदस्य के रूप में व्यवहार किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि बहू से घर की नौकरानी जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। ऐसा आभास भी नहीं दिया जाना चाहिए कि उसे किसी भी समय ससुराल से बाहर निकाला जा सकता है।

न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘ससुराल में बहू के सम्मान से विवाह की पवित्रता और धार्मिक क्रिया की गरिमा बनी रही है और यह सभ्य समाज की संवदेनशीलता को परिलक्षित करती है जो अंतत: उसके मंगलमय जीवन का प्रतीक होती है। लेकिन कभी-कभी बहू के प्रति घर में पति, ससुराल के सदस्यों और रिश्तेदारों का व्यवहार समाज में भावनाओं की संज्ञाशून्यता का अहसास कराता है।’’

शीर्ष अदालत ने पत्नी को प्रताड़ित करने के जुर्म में पति को पांच साल की कैद की सजा सुनाते हुए यह टिप्पणियां कीं। पति की प्रताड़ना से परेशान होकर पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी।

न्यायालय ने कहा कि यह चिंता का विषय है कि कई मामलों में बहुओं से बहुत बेरहमी का व्यवहार किया जाता है जिसकी वजह से उनकी जीने की इच्छा ही मर जाती है।

न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘यह बेहद चिंता और शर्म की बात है कि दहेज की मांग और लोभ के कारण बहुओं को जला दिया जाता है या फिर शारीरिक और मानसिक यातनाओं से उनके जीवन की खुशियों को बुझा दिया जाता है। कई बार तो क्रूरता और यातनाओं के कारण हताश होकर बहुएं आत्महत्या कर लेती हैं।''

न्यायालय ने पत्नी को मारने के जुर्म में सात साल की सजा के खिलाफ गुरनैब सिंह की अपील पर यह फैसला सुनाया। इस मामले में गुरनैब का 1996 में अमरजीत कौर से विवाह हुआ था लेकिन शादी के बाद ही दहेज की खातिर पति और ससुराल के सदस्यों ने उसे यातनायें देना शुरू कर दिया था। विवाह के दो साल बाद ही अमरजीत कौर ने कीटनाशक दवा पीकर आत्महत्या कर ली थी।

निचली अदालत ने नवंबर, 2011 में गुरनैब, उसकी मां और छोटे भाई को अमरजीत की हत्या के जुर्म में दोषी ठहराया था।

दोषियों ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में इस फैसले को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने गुरनैब की सजा बरकरार रखते हुए उसके भाई को बरी कर दिया था जबकि उसकी मां की इस दौरान मृत्यु हो गई थी।

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इसके बाद गुरनैब सिंह ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की थी। शीर्ष अदालत ने उसे हत्या के आरोप से बरी करते हुए आत्महत्या के लिए उकसाने के जुर्म में दोषी ठहराया और उसकी सजा घटाकर पांच साल कर दी।