यह ख़बर 01 मार्च, 2013 को प्रकाशित हुई थी

दुष्कर्म के दोषियों के लिए संसदीय समिति ने दिया मृत्युदंड का सुझाव

खास बातें

  • संसद की एक समिति ने दुष्कर्म के 'दुर्लभतम' मामलों और अपराधों का दोहराव किए जाने पर मृत्युदंड के प्रावधान को केंद्र सरकार की अधिसूचना के मुताबिक ही रखा है।
नई दिल्ली:

संसद की एक समिति ने दुष्कर्म के 'दुर्लभतम' मामलों और अपराधों का दोहराव किए जाने पर मृत्युदंड के प्रावधान को केंद्र सरकार की अधिसूचना के मुताबिक ही रखा है। शुक्रवार को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में समिति ने हालांकि अपनी सिफारिश में दांपत्य दुष्कर्म को अपराध मानने से इनकार किया है।

गृह मामलों पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता एम. वेंकैया नायडू ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "सांसदों की समिति ने घृणित यौन हमलों के दुर्लभतम मामलों और अपराध की पुनरावृत्ति के लिए मत्युदंड की सजा को मंजूरी दी है।" उन्होंने कहा, "कम से कम 54 प्रतिशत मामले पुनरावृत्ति के होते हैं।" शुक्रवार को समिति की रिपोर्ट राज्यसभा में पेश की गई।

नायडू ने बताया कि समिति के दो अन्य सदस्य भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी. राजा और मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रशांत चटर्जी ने इस मुद्दे पर असहमति जताई।

दिल्ली दुष्कर्म के बाद किशोरों की उम्र सीमा 18 वर्ष से कम कर 16 वर्ष किए जाने के विवादास्पद मुद्दे पर समिति में कोई राय नहीं बन पाई।

पिछले वर्ष 16 दिसंबर को दिल्ली में चलती बस में एक युवती के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले में एक किशोर आरोपी की संलिप्तता सामने आने के बाद यह मांग जोरशोर से उठी। दुष्कर्म पीड़िता की मौत 13 दिन बाद सिंगापुर के एक अस्पताल में हो गई थी।

नायडू ने कहा, "इस मुद्दे पर कोई राय नहीं बन पाई... इस पर और विचार की जरूरत है।" उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक करीब 64 प्रतिशत अपराध किशोरों द्वारा अंजाम दिए जाते हैं।

समिति ने दांपत्य दुष्कर्म को अपराध के दायरे में लाने से यह कहते हुए मना कर दिया कि इससे परिवार टूट सकते हैं। लेकिन समिति ने कहा है कि न्यायिक पृथक्करण के दौरान पति द्वारा पत्नी के साथ किया गया कोई भी यौन हमला संज्ञेय अपराध के दायरे में आना चाहिए। नायडू ने कहा, "इससे परिवार में संकट पैदा नहीं होगा। यही समिति का नजरिया है।"

दुष्कर्म विरोधी कानून को और कड़ा करने के लिए सरकार पहले ही अध्यादेश को संसद की ऊपरी सदन में रख चुकी है। इसके अलावा मौजूदा बजट सत्र के दौरान ही सरकार न्यायमूर्ति वर्मा समति की सिफारिशों और संसद की स्थायी के सुझावों को समाहित करते हुए विधेयक पेश कर सकती है।

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समिति की अन्य सिफारिशों में तेजाबी हमले से पीड़ित को मुआवजा, देशभर के सभी थानों में महिला प्रकोष्ठ, पुलिस बल में महज छह फीसदी से महिलाओं की संख्या को 33 फीसदी करने, यौन प्रताड़ना के मामलों को दर्ज करने से मना करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने, त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए त्वरित अदालतों का गठन, महिलाओं की असम्मानजक रूप से पेश करने पर पाबंदी, स्कूलों मे नैतिक शिक्षा और शिक्षण संस्थाओं में रैगिंग पर पाबंदी आदि शामिल हैं।