आम आदमी को नहीं मिल रहा सस्‍ते कच्‍चे तेल का लाभ, जानें क्या है तेल का ये खेल

नई दिल्‍ली:

1 मई से 18 मई के बीच पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें दो बार बढ़ाई गयी हैं। पहले 1 मई से पेट्रोल 3.96 रु./लीटर महंगा हुआ, फिर 15 मई को 3.13 रु./लीटर की और बढ़ोतरी की गयी। यानी 20 दिनों में पेट्रोल 7.09 रु प्रति लीटर यानी करीब 12 फीसदी महंगा हुआ। इस दौरान डीजल भी 5 रुपया 8 पैसे यानी करीब 11 फीसदी महंगा हुआ जबकि सरकारी आंकड़े के मुताबिक कच्चे तेल के दामों में इस दौरान 2 फीसदी से भी कम की बढ़ोतरी हुई है।

दरअसल अंतराष्ट्रीय और घरेलू बाजार के बीच कीमतों का ये बेमेल रिश्ता बीते एक साल से जारी है। खासकर जब तेल की कीमतें गिरती रहीं। 26 मई 2014 को कच्चे तेल की कीमत 108.05 डॉलर प्रति बैरल थी जो 18 मई 2015 को घटकर 64.79 डॉलर प्रति बैरल हो गयी। यानी पिछले एक साल में कच्चे तेल की कीमत करीब 40 फीसदी कम हुई है।

लेकिन इस एक साल में पेट्रोल की कीमत में सिर्फ सात फीसदी की कटौती की गयी है। 26 मई 2014 को पेट्रोल की कीमत 71.41 रुपये प्रति लीटर थी जबकि 18 मई 2015 को पेट्रोल की कीमत 66.29 रुपये प्रति लीटर हो गयी यानी सिर्फ 7 फीसदी की कटौती। यही ट्रेंड डीज़ल की कीमतों में भी दिखता है। 26 मई 2014 को डीज़ल की कीमत 56.71 रुपये प्रति लीटर थी जबकि 18 मई 2015 को डीज़ल की कीमत 52.28 रुपये प्रति लीटर हो गयी यानी सिर्फ 8 फीसदी की कटौती।

तेल कंपनियों ने इसके लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ी कीमतें और डॉलर के मुकाबले कमजोर पड़े रुपये का हवाला दिया। ये सही है कि इस पिछले एक साल में डॉलर के मुकाबले रुपया करीब 9 फीसदी कमज़ोर हुआ है।

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हालांकि ये भी महत्वपूर्ण है कि नवंबर 2014 से जनवरी 2015 के बीच भारत सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल पर एक्साइज़ ड्यूटी में चार बार बढ़ोतरी की।  इसकी वजह से सरकारी खजाने में तो हज़ारों करोड़ रुपये का इज़ाफा हुआ लेकिन आम उपभोक्ताओं तक अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में गिरावट का जितना फायदा पहुंच सकता था वो नहीं पहुंचा।