यह ख़बर 06 सितंबर, 2012 को प्रकाशित हुई थी

केंद्र और राज्यों की अफसरशाही में जातिवाद का नासूर मौजूद...

खास बातें

  • एक तरफ प्रमोशन में रिजर्वेशन को लेकर सियासी जंग जारी है, दूसरी तरफ जमीनी हालात
  • बता रहे हैं कि हमारी अफसरशाही में जातिवाद का नासूर मौजूद है और नियुक्ति से लेकर
  • प्रमोशन तक में इसका असर दिखता है।
नई दिल्ली:

एक तरफ प्रमोशन में रिजर्वेशन को लेकर सियासी जंग जारी है, दूसरी तरफ जमीनी हालात बता रहे हैं कि हमारी अफसरशाही में जातिवाद का नासूर मौजूद है और नियुक्ति से लेकर प्रमोशन तक में इसका असर दिखता है। इसकी शिकायत हज़ारों लोगों ने की है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों में कार्यरत सरकारी कर्मचारी लंबे समय से यह आरोप लगाते आ रहे हैं।

1990 बैच के 10 दलित IAS अफसरों ने इस साल जनवरी में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को चिट्ठी लिखकर शिकायत की कि संयुक्त सचिव पद के लिए तैयार की गई लिस्ट में उनका नाम नहीं था जबकि वे पूरी तरह योग्य हैं। आठ महीने गुजर चुके हैं लेकिन इस चिट्ठी पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।

राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के संयुक्त सचिव टी तीथन का कहना है कि 10 आईएएस अधिकारियों ने भेदभाव के खिलाफ आयोग में शिकायत दर्ज कराई है।

अब तीन अगस्त को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया ने कार्मिक मामलों के मंत्री वी नारायणसामी को चिट्ठी लिखकर इस मसले को उठाया है। पुनिया ने लिखा है कि ऊंचे पदों के लिए आईएएस अधिकारियों की नियुक्ति की जो मौजूदा प्रक्रिया है उसकी वजह से अनुसूचित जाति के आईएएस अधिकारियों को बड़े पदों तक पहुंचने का मौका नहीं मिल रहा है। ऐसे अधिकारियों की शिकायत दूर करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।

आयोग के पास मौजूद आंकड़े बताते हैं कि समस्या 1990 बैच के इन 10 दलित अफसरों तक सीमित नहीं है भारत सरकार में ज्वाइंट सेक्रेटरी रैंक के 485 पद हैं जिनमें सिर्फ 21 दलित हैं यानि चार फीसदी जबकि प्राथमिक स्तर पर 15 आईएएस दलित होते हैं।

राज्यों की स्थिति

ऐसा नहीं कि आला अफ़सरों के साथ जातिगत भेदभाव की शिकायत सिर्फ केंद्रीय स्तर पर ही होती है, यह राज्यों में भी दलित अधिकारी हर स्तर पर झेल रहे हैं।

दलित अफसर राज्यों में भी वही भेदभाव झेलते हैं जो उन्हें केंद्र में झेलना पड़ता है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की एक आंतरिक रिपोर्ट यह साबित करती है। रिपोर्ट के मुताबिक सबसे बुरा हाल ग्रुप-ए सेवा में है जहां सबसे कम दलित अफसर हैं।

रिपोर्ट बताती है कि गोवा में सिर्फ 2.1 प्रतिशत दलित अधिकारी हैं। हरियाणा में सिर्फ 3.77 प्रतिशत दलित अधिकारी हैं। असम में 5.56 प्रतिशत और गुजरात में 7.79 प्रतिशत जबकि महाराष्ट्र, झारखंड, उड़ीसा में नौ से 10 प्रतिशत तक दलित अफसर हैं।

सामाजिक कायर्कर्ता एसके महेश्वरी का कहना है कि एससी कमर्चारियों की हालत बहुत खराब है। हालात दूसरी सरकारी सेवाओं में भी हालात अच्छे नहीं हैं।

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अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया का कहना है कि दिल्ली के स्कूलों में सिर्फ छह वाइस प्रिंसिपल एससी कैटेगरी का है। कम से कम ये रिपोर्ट और इससे सामने आ रहे आंकड़े बताते हैं कि सामाजिक न्याय के मोर्चे पर हमें काफी कुछ करने की जरूरत है।