बांद्रा पूर्व विधानसभा उपचुनाव : राणे के लिए करो या मरो के हालात

मुंबई:

महाराष्ट्र के पूर्व सीएम, शिवसेना के बागी और कांग्रेस के बाहुबली नारायण राणे विधानसभा हारने के बाद और बड़ी परेशानी में हैं। बांद्रा पूर्व विधानसभा उपचुनाव में उन्हें कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है। बांद्रा पूर्व शिवसेना का गढ़ रहा है और ठाकरे का घर मातोश्री यहीं है। इसी मातोश्री ने कभी नारायण राणे को सीएम बनाया था, और इसी मातोश्री को छोड़ राणे सीएम पद की आस में कांग्रेस में शामिल हुए।

अपने रसूख और कथित बल पर सीएम पद की बेबाक़ मांग लिए उन्होंने कांग्रेस में भी कई बार विद्रोह किया, लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में अपनी पारंपारिक सीट गंवा कर राणे ने हार चखी। बांद्रा सीट पर लड़ने का मौक़ा उन्हें इसलिए मिला क्योंकि वहां के शिवसेना विधायक की मृत्यु के बाद सीट ख़ाली हुई।

लेकिन राणे ने साफ़ किया कि बांद्रा में लड़ने की उनकी अपनी इच्छा नहीं थी, हाईकमान के ज़ोर डालने पर, 20 दिन विचार कर राणे ने इस चुनौती को स्वीकार किया है। कभी सीएम बनने के ख़्वाब देखते राणे चूंकि आज विधायक भी नहीं है, उन्हें ये चुनौती अनमने स्वीकार करने के अलावा चारा भी नहीं था।

लेकिन जिस शिवसेना ने उन्हें सियासत में लाकर सीएम बनाया, उसी पार्टी के गढ़ में कांग्रेस की उम्मीदवारी में राणे के आगे उम्मीदें कम, ख़तरे बहुत ज़्यादा हैं। बांद्रा पूर्व की इस सीट पर क़रीब 70000 अल्पसंख्यक कांग्रेस के वफ़ादार हैं। उस पर एनसीपी ने अपना उम्मीदवार उतारा नहीं, लिहाज़ा कांग्रेस को मतविभाजन का डर नहीं था। लेकिन विधानसभा चुनाव में एमआईएम जैसी कट्टर मुस्लिम पार्टी ने यहां अल्पसंख्यक वोट काटा था, इसका डर राणे को रहेगा।

शिवसेना के वफ़ादार वोटरों में राणे को लेकर बड़ा ग़ुस्सा है, और यही वोटर पारंपारिक तौर पर बांद्रा में शिवसेना को चुनते रहे हैं। इनका सामना राणे के लिए मुश्किल होगा। शिवसेना को राहत है कि  बीजेपी उपचुनाव नहीं लड़ेगी, इसलिए शिवसेना के वोट नहीं कटेंगे। वहीं पिछली सरकार ने चलाये मराठा आरक्षण पर राणे समिति की सिफ़ारिशों से अन्य ओबीसी वोटर नाराज़ हैं।

राणे का कांग्रेस में रहा मुंहफट बर्ताव उनकी मुश्किलें बढ़ा सकता है। कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण आज प्रदेशाध्यक्ष हैं, कभी उनके सीएम बनने पर राणे ने खुलेआम उन्हें अयोग्य बताया था। पिछले महीने जब संजय निरुपम मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष बने, तो राणे ने यहां तक कहा था, कि मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष मराठी माणुस होना चाहिए था। ऐसे में राणे का खेल बिगाड़ने वालों की कांग्रेस में ही कमी नहीं है।

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विधानसभा में अपनी हार और बड़े बेटे नीलेश की लोकसभा में हार के बाद राणे का कांग्रेस में बचाखुचा वज़न और भी कम हुआ है। कभी अहम के मद में दूसरों के लिए बिछाये कांटों पर आज राणे को ही दौड़ना है। ढलान की राह पर किस्मत ने साथ दिया तो ही राणे इतिहास रचेंगे, नहीं तो उनके ख़ुद इतिहास बनने में कुछ समय की ही देरी है।