खास बातें
- साइरस मिस्त्री ने रतन टाटा पर लगातार 'अनुचित हस्तक्षेप' का आरोप लगाया
- मिस्त्री के कार्यालय ने हितों के टकराव के आरोप को नकारा
- शपूर्जी पलौंजी ग्रुप टाटा संस में सबसे हिस्सेदार वाली कंपनी
नई दिल्ली: 'आर्थिक, नैतिक और स्वामित्व' जैसे कारकों के आधार पर साइरस मिस्त्री को हटाया गया था. ये बात रतन टाटा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी का एनडीटीवी से चर्चा करते हुए की. उन्होंने ये बात अपने क्लाइंट रतन टाटा के साथ दो घंटे की मुलाकात के बाद कही जिन्हें हाल ही में टाटा समूह का चेयरमैन बनाया गया है.
वहीं, साइरस मिस्त्री के कार्यालय का कहना है कि 'इस स्थिति में' मिस्त्री की चेयरमैन पद से हटाए जाने के मामले को चुनौती देने की कोई योजना नहीं है. साइरस मिस्त्री ने बोर्ड मेंबर्स को भेजे पांच पेज के ईमेल में रतन टाटा पर लगातार 'अनुचित हस्तक्षेप' का आरोप लगाया.
सिंघवी ने मिस्त्री के बोर्ड को दिए उस बयान पर आक्षेप किया जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें गलत तरीके से हटाया गया. सिंघवी ने कहा, "क्या साइरस यहा मानते हैं कि पूरा बोर्ड नासमझ है? बोर्ड के सभी सदस्यों का मिस्त्री ने विश्वास खो दिया था." बोर्ड के नौ सदस्यों में से छह ने साइरस मिस्त्री को हटाने के पक्ष में वोट दिया था; वहीं दो सदस्यों ने मतदान में भाग नहीं लिया.
मिस्त्री के कार्यालय ने कल एनडीटीवी को बताया था कि हितों के टकराव का आरोप सही नहीं है क्योंकि वर्ष 2012 में टाटा ग्रुप की कमान संभालने के बाद उन्होंने अपने पारिवारिक साम्राज्य की कंपनी शपूर्जी पलौंजी ग्रुप को टाटा फर्म के अनुबंध नहीं देने यह आदेश दिया था जो कि टाटा संस में सबसे बड़ी हिस्सेदार कंपनी है.
अपने पांच पेज के ईमेल में साइरस मिस्त्री ने बोर्ड से कहा कि उनकी हैसियत कमजोर हुई है और यह कि चेयरमैन का पद संभालने के वक्त स्वायत्ता का भरोसा दिया जाने के बाद नियम बदले गए.
इन आरोपों को नकारते हुए टाटा की वकील ने एनडीटीवी को बताया कि समूह के वरिष्ठ सदस्य 'कठपुतली का खेल दिखाने वाले नहीं हैं'. उन्हें बोर्ड की मीटिंग में शामिल होने का अधिकार था.