राजनीतिक विवादों से घिरती जा रही है दुल्लत की 'कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स'

राजनीतिक विवादों से घिरती जा रही है दुल्लत की 'कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स'

नई दिल्ली:

पूर्व रॉ प्रमुख ए.एस दुल्लत की नई किताब 'कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स' को लेकर राजनीतिक विवाद बढ़ता जा रहा है। शुक्रवार को एक अंग्रेजी अखबार में छपे दुल्ल्त के बयान के मुताबिक दिसंबर 1999 में जब इंडियन एयरलाइंस के विमान IC-814 का अपहरण किया गया, तो उस संकट से निपटने में काफी गड़बड़ियां हुई थीं, लेकिन अब दुल्लत इससे पलट गए हैं।

दुल्लत ने शुक्रवार शाम को इससे इनकार कर दिया कि 1999 के कंधार कांड के समय वाजपेयी सरकार की रणनीति में कई खामियां थी। दुल्लत ने कहा कि वाजपेयी सरकार फर्स्ट क्लास की सरकार थी। फैसले लेने में कोई दिक्कत नहीं थी। वायपेयी सरकार के कार्यकाल पर दुल्ल्त की नई किताब 'कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स' जल्द ही रिलीज होने वाली है।

दरअसल, दिसंबर 1999 की यह घटना अब तक याद दिलाती है कि भारत आतंकवाद के खतरों से निपटने के लिए तब कितना कम तैयार था। कांग्रेस वाजपेयी सरकार पर देश की सुरक्षा से समझौता करने का आरोप नए सिरे से लगा रही है। पार्टी के प्रवक्ता अजय कुमार ने शुक्रवार को कहा कि क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप ने फैसले लेने में देरी की। इसकी वजह से बाद में तीन आतंकवादियों को दबाव में सरकार को रिहा करना पड़ा।

अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक दुल्लत ने कहा कि जब अमृतसर में विमान खड़ा था, तब पांच घंटे कोई फैसला नहीं लिया जा सका। पंजाब के पूर्व पुलिस प्रमुख सुखबीर सिंह आइसी 814 पर कब्जा कर बैठे आतंकियों पर कमांडो हमले के लिए तैयार थे, लेकिन दिल्ली खूनखराबा नहीं चाहती थी। बाद में दुबई में ऑपरेशन की इजाजत मांगी गई जो नहीं मिली।

लेकिन, वाजपेयी सरकार में तब वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा का कहना है कि विमान को छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था। उनके मुताबिक कि यह कहना बहुत आसान है कि विमान को अमृतसर में रोक लेते। अगर विमान को अमृतसर में रोकते तो आतंकी चुप नहीं बैठते, वो आतंकवादी विमान को उड़ा भी सकते थे। आतंकवादियों से बातचीत का फैसला ही एकमात्र विकल्प था।

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पूर्व रॉ प्रमुख ने संकट के समय वाजपेयी सरकार की राजनीतिक इच्छा-शक्ति और प्रशासनिक कमजोरियों को लेकर कई बड़े सवाल उठाए हैं. ये महत्वपूर्ण है कि आडवाणी उस वक्त बार-बार यह कहते रहे कि भारत को एक साफ्ट स्टेट की तरह एक्ट नहीं करना चाहिए, लेकिन पूर्व रॉ प्रमुख के दावों से साफ है कि इम्तिहान के वक्त वायपेयी सरकार बड़े फैसले लेने से कतराती दिखी।