बेंगलुरु: तक़रीबन 52 दिनों से दर्द कम करने के लिए मंचिंबेले डैम के पानी में अपना ज़यादा वक़्त बिताते जंगली हांथी सिद्धा को बचाने की कोशिश आखिरकार वन विभाग ने शुरू कर दी है.
मैसूर से ख़ास तौर पर प्रशिक्षित हाथियों की मदद से सिद्धा को पानी से निकाला गया. असम और केरल से आए पशु चिकित्सकों को खासी मशक्कत करनी पड़ी क्योंकि सिद्धा 50 दिनों से लगभग लगातार पानी में रहने की वजह से कमज़ोर हो गया है. ऐसे में बेहोशी की दवा से इलाज करने की कोशिश में वो ज़मीन पर गिरने की सूरत में और घायल हो सकता था.
इसलिए मैसूर से लाये गए प्रशिक्षित हाथियों की मदद से सिद्धा को दोनों तरफ से जकड़ा गया. फिर उसके घायल दाहिने पैर का लेज़र एक्सरे किया गया ताकि पैर के अंदर की टूटी हड्डी की सही जगह पता चल सके. गुवाहाटी वेट कॉलेज, असम से आये प्रोफेसर कौशल किशोर शर्मा ने बताया कि उसके घयल पैर के जख्मों से मवाद सिरिंज के ज़रीए निकाल दिया गया है. साथ ही साथ एंटीबायोटिक्स और विटामिन का डोज़ दिया जा रहा है. एक्सरे रिपोर्ट के बाद आगे का इलाज तय किया जाएगा.
वहीं वाइल्डलाइफ कार्यकर्ता किरण कुमार का कहना है कि जो काम वन विभाग ने अब शुरू किया है वो पहले क्यों शरू नहीं किया गया. क्यों सिद्धा को 52 दिनों तक पानी में यूं ही रहने दिया गया. दरअसल सिद्धा नाम के 40 साल के इस हाथी को लगभग 3 महीने पहले गड्ढे में गिरने से चोट आई थी. इलाज के बाद उसे जंगल में छोड़ दिया गया था. लेकिन कुछ दिनों बाद वो वापस बेंगलुरू से तक़रीबन 45 किलोमीटर दूर अर्कावती नदी पर बने मंचिंबेले डैम के पानी में रहने आ गया.
वो लगातार पानी में रहता क्योंकि पानी में वज़न कम होने से पैर पर वज़न काम पड़ता और इससे दर्द कम होता. साथ ही वाहन की मछलियां लगातार घाव के आसपास के मृत उत्तकों को खा लेती इससे घाव थोड़ा बहुत भर भी रहा था. लेकिन उसके पैर की सूजन लगातार बढ़ रही थी जो कि इन्फेक्शन की वजह से था.