यह ख़बर 17 अप्रैल, 2011 को प्रकाशित हुई थी

'भारी मतदान निर्णायक जनादेश का संकेत'

खास बातें

  • भारी मतदान यह प्रदर्शित करता है कि महानगरीय इलाकों में साक्षरों के बीच मतदान के प्रति उदासीनता सभी भारतीयों पर लागू नहीं होती।
नई दिल्ली:

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि विधानसभा चुनाव से गुजर रहे जिन राज्यों में अबतक भारी मतदान हुआ है, वहां यह मतदाताओं के निर्णायक जनादेश का संकेत है और चुनाव परिणामों का सत्ताधारी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के आंतरिक समीकरण पर असर होगा। राजनीतिक विश्लेषक महेश रंगराजन ने कहा, "ये चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं। तमिलनाडु चुनाव संप्रग के लिए बहुत महत्वूर्ण हैं, क्योंकि डीएमके केंद्र सरकार में एक स्तम्भ है। ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल में साढ़े तीन दशक बाद वाम दल सत्ता से बाहर हो जाएंगे।" रंगराजन ने कहा कि भारी मतदान, नीतियों के साथ लोगों के अधिक सरोकार का भी संकेत है। "वे जो कहना चाहते हैं, मतदान के जरिए वह संदेश बाहर आ गया है।" रंगराजन ने कहा कि भारी मतदान यह प्रदर्शित करता है कि महानगरीय इलाकों में साक्षरों के बीच मतदान के प्रति उदासीनता सभी भारतीयों पर लागू नहीं होती। उन्होंने कहा, "भारी मतदान राजनीतिक बहस की अनुगूंज और सम्भवत: स्पष्ट जनादेश को जाहिर करती है।" रंगराजन ने कहा कि असम में मतदान के अंतिम समय में सत्ताधारी कांग्रेस और अन्य पार्टियों के बीच दूरी मिट गई थी और परिणाम अब अधिक स्पष्ट हो गया है। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव उम्मीदवारों के प्रदर्शन के नजरिए से भी देखे जाएंगे। रंगराजन ने कहा कि ये विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो कि संप्रग की नेतृत्वकर्ता है। कांग्रेस तमिलनाडु में डीएमके के साथ मिलकर लड़ रही है और पश्चिम बंगाल में तृणमूल के साथ। कांग्रेस के ये दोनों सहयोगी, संप्रग में 37 सांसदों का योगदान करते हैं। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के अध्यक्ष एन. भास्कर राव ने कहा कि ये चुनाव भारी मतदान और निर्वाचन आयोग द्वारा धन बल व पेड न्यूज के खिलाफ उठाए गए कदमों के लिए जाने जाएंगे। राव ने कहा कि इन चुनावों में भ्रष्टाचार मुद्दा रहा है, लेकिन यह निर्णायक मुद्दा नहीं है और इसका असर तमिलनाडु में अधिक दिखाई दे सकता है। उन्होंने कहा, "भारी मतदान लोकतंत्र की मजबूती का प्रदर्शन है। ज्यादा सम्भव है कि यह निर्णायक जनादेश में बदल सकता है।"


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