पूर्व AAP विधायक राजेश गर्ग का नया आरोप, जेटली के नाम से फर्जी फोन करवाते थे केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल की फाइल तस्वीर

नई दिल्ली:

आरोपों की गंगा बह रही है जिस दौर में, उसमें एक आरोप की बयार आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक राजेश गर्ग ने अरविंद केजरीवाल एक आरोप लगाकर छोड़ दी है। उनका कहना है कि दिसंबर 2013 में बीजेपी नेता अरुण जेटली और नितिन गडकरी के नाम से विधायक खरीदने के लिए फर्जी कॉल केजरीवाल ही कराते थे।

राजेश गर्ग के मुताबिक जब दिसंबर 2013 में सरकार बनाने के लिए जब आम आदमी पार्टी रायशुमारी करा रही थी उस समय उनको और बाकी दूसरे बहुत से विधायकों को देर रात और सुबह के वक्त प्राइवेट नंबर से फोन आ रहे थे, जिसमें बोला जाता था कि वो नितिन गडकरी और अरुण जेटली के ऑफिस से बोल रहे हैं और आपको 10 करोड़ रुपये दिए जाएंगे, अगर आप बीजेपी को समर्थन कर दें तो। गर्ग के मुताबिक उनको अरुण जेटली के यहां से फोन आया जिस पर उन्होने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी थी।

लेकिन जनवरी 2014 में जब फोन करने वाला पकड़ा गया तो अरविंद केजरीवाल के पीए और बाद में नेता संजय सिंह का फोन आया, जिसमें उन्होंने कहा कि अपना आदमी फंस गया है, उसको छुड़वाओ। गर्ग के मुताबिक संजय सिंह ने उनसे बातचीत में स्वीकार किया कि वो फर्जी कॉल वो ही करा रहे थे। यानी अरविंद केजरीवाल की सहमति से ही उनको और बाकी विधायकों को जेटली और गडकरी के नाम से फोन गए।

ये मामला महत्वपूर्ण हैं क्योंकि दिसंबर 2013 में अरुण जेटली का नाम विधायकों की खरीद-फरोख्त के सिलसिले में आप नेताओं ने खूब उछाला था। यानी अगर आरोप सही हैं तो केजरीवाल के किए से जेटली बेमतलब बदनाम हो गए ये मामला दिखता है।

आम आदमी पार्टी तो पहले ही आजकल मीडिया कैमरों पर कुछ भी बोलने से बच रही है, इसलिए कोई कुछ भी मतलब निकालता रहे, पार्टी चिंतित नहीं होती दिखती। लेकिन इससे क्या होता है...खबर तो तब भी खबर की तरह ही चलेगी और सारे पहलू देखकर ही चलेगी।

यहां ध्यान रखने वाली बात है कि पिछली बार जहां राजेश गर्ग आडियों रिकॉर्डिंग कर लाए थे जिसमें केजरीवाल, कांग्रेस विधायकों को तोड़ने की बात कर रहे थे। इस बार उनके पास ऐसा कोई सुबूत नहीं हैं, जिससे ये साबित हो कि जो राजेश गर्ग बोल रहे हैं वो सही है।

राजेश गर्ग पहले ही पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए पार्टी से निकाले जा चुके हैं। ऐसे में उनके आरोपों को कितनी तवज्जो मिलनी चाहिए?

अगर जनवरी 2014 में ही गर्ग को पता चल गया था कि केजरीवाल की सहमति पर ही ये सब फर्जी फोन और खरीद-फरोख्त का सिलसिला चल रहा था तो गर्ग मार्च 2015 में क्यों बिना सुबूत के केजरीवाल पर आरोप लगा रहे हैं? आज ऐसा क्या हो गया?

हालंकि इस बात की संभावना से भी सिरे से इनकार नहीं किया जा सकता कि हो सकता है केजरीवाल और उनकी पार्टी में अपने विधायकों की ईमानदारी तौलने और ये देखने के लिए कि कौन विधायक टूट सकता है, इस तरह का तरीका अपनाया हो जो कि पॉलिटिकल इंटेलिजेंस का हिस्सा भी हो सकता है।

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लेकिन ये साबित कैसे होगा? गर्ग आरोप लगा रहे हैं और हो सकता है पार्टी जब बोले तो आरोप को नकार दे। सच तभी पता चलेगा जब या तो पार्टी आरोप को मान ले या फिर सुबूत सामने आए। वर्ना तो रोज जिस तरह रिपोर्टर स्टोरी करके दूसरे दिन दूसरी स्टोरी पर लग ही जाता है। ये बात भी बस आई और गई हो ही जाएगी। धारा तो आरोपों की बह ही रही है।