पूर्व विधायक की हत्या का मामला : जमीन से क्यों शुरू हुई दिल्ली में गैंगवार?

नई दिल्‍ली : ये तस्वीर दिचाऊं कला गांव में अपने वक्त के कुख्यात माफिया किशन पहलवान के घर के बाहर की है। भरत सिंह की हत्या के बाद नजफगढ़ के बंद बाजार और गांव में हजारों लोगों की मौजूदगी बताती है कि इस इलाके में उनका दबदबा किस तरह का है।

2012 में एक छोटे से विवाद के चलते भरत सिंह पर हमला हुआ था उन्हें तीन गोलियां लगी थी लेकिन खुशकिस्मती से वो बच गए थे। लेकिन रविवार को हुए हमले में बदमाशों ने अंतिम समय तक गोलियां चलाई और जब उनके मरने की तस्दीक कर ली फिर वो भागे।

हालांकि भरत सिंह पर भी दर्जनभर आपराधिक मामले दर्ज थे लेकिन वो हंसमुख और मिलनसार नेता के रूप में जाने जाते थे। ये बात अलग है कि उनकी राजनीतिक इमारत भी किशन पहलवान के खौफ की बुनियाद पर टिकी थी लेकिन भरत सिंह कुख्यात माफिया वाली छवि से निकलकर नेतागीरी के साथ रियल स्टेट के कारोबार में पैसा कमाना चाहते थे। लेकिन शायद उन्होंने ये नहीं सोचा कि जिस जमीन के टुकड़े की दुश्मनी ने दो दर्जन से ज्यादा हत्याएं करवाई वो उन्हें कैसे बख्‍स देती, लिहाजा 29 मार्च की देर शाम वो भी उसी गैंगवार की भेट चढ़ गए जिसकी बुनियाद पर उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ था।

लेकिन दिचाऊं कला गांव में जमीन के टुकड़े से शुरू हुई गैंगवार में दिचांऊकला और मित्रंऊ गांव में अब तक 25 से ज्यादा हत्याएं हुई है। इन हत्याओं का कारण बनी किशन पहलवान और अनूप बलराज की गैंगवार। अनूप और बलराज दो भाई थे जो अपने पिता की 3 एकड़ की जमीन वापस लाना चाहते थे। इस गैंगवार में जहां अनूप और बलराज को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा वहीं किशन पहलवान को अपने भाई और भतीजे को गंवाना पड़ा। इसके अलावा बहुत से ऐसे लोग मारे गए जिनका इस दुश्मनी से कोई लेना देना नहीं था।

लेकिन इन हत्याओं ने किशन पहलवान को जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह बना दिया जिसकी बिना पर करोड़ों रुपए की प्रापर्टी और वसूली का राज कायम हो गया था।

1998 में बलराज और 2004 में अनूप के मारे जाने पर किशन पहलवान ने अपराध की दुनिया से अपना नाता तोड़ने की ठानी। उन्होंने अपने छोटे भाई भरत सिंह को राजनीति में लाने की सोची। 2004 में भरत सिंह पार्षद बने इसके बाद 2008 में पहली बार नजफगढ़ निर्दलीय चुनाव लड़ा और करीब 11 हजार वोटों से भारीभरकम जीत हासिल की। हालांकि वैसे तो किशन पहलवान की ओमप्रकाश चौटाला से नजदीकी किसी से छिपी नहीं थी। लेकिन अब तक जो पर्दे की पीछे से चौटाला किशन पहलवान को संरक्षण देते थे 2009 में खुले तौर पर उस वक्त दिया जब भरत सिंह विधायक रहते हुए आईएनएलडी ज्वाइन कर लिया और उन्हें दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया।

भरत सिंह की राजनीतिक सफलता से खुश होकर किशन पहलवान ने भी जेल से निकल कर राजनीति में जाने की सोची। इसके बाद शुरू हुआ जेल और बेल का खेल, किशन पहलवान को राजनीति में लाने का स्टेज तैयार हो चुका था। 2009 में अचानक एक दिन 27 हत्याओं का आरोपी और दिल्ली पुलिस के एक लाख के ईनामी किशन पहलवान की गिरफ्तारी की खबर आई। वो भी भरतपुर में महज कुछ शराब की बोतलों के साथ उसे राजस्थान पुलिस ने पकड़ा। उसके बाद वो तिहाड़ जेल पहुंच गया।

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जेल के अंदर से ही दिचाऊंकला वार्ड से उसने जीत हासिल की। और देखते ही देखते भाई विधायक, पत्नी नीलम और किशन पहलवान दोनों पार्षद बन गए। इसके बाद उसने अपने गैंग के खास लोगों को भी अपराध की दुनिया से निकालकर राजनीति और प्रापर्टी के धंधे में लगाने की सोची। 2008 में किशन पहलवान का खास शार्प शूटर महावीर डॉन की गिरफ्तारी भी उसी से जोड़कर देखी जाती है। अब दिल्ली के लोगों के जेहन में फिर ये खौफ है कहीं भरत सिंह की हत्या एक नए गैंगवार को न जन्म दे दे।