Exclusive: करगिल युद्ध के वक्त पाकिस्तानी सैन्य शिविरों पर हमले से कुछ ही पल दूर था भारत...

Exclusive: करगिल युद्ध के वक्त पाकिस्तानी सैन्य शिविरों पर हमले से कुछ ही पल दूर था भारत...

दस्‍तावेज बताते हैं कि भारत, पाकिस्‍तान पर हवाई हमला करने की तैयारी में था।

खास बातें

  • टारगेट तय हो चुके थे, रूट मैप को दे दिया गया था अंतिम रूप
  • NDTV के पास मौजूद दस्‍तावेजों के आधार पर खुलासा
  • दिल्‍ली में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बातचीत रही थी नाकाम
नई दिल्‍ली:

करगिल युद्ध के वक्‍त, 13 जून 1999 के शुरुआती घंटों में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने पाकिस्‍तान में हवाई हमले की पूरी तैयारी कर ली थी। हमले के लिए टारगेट तय कर लिए गए थे और रूट मैप को अंतिम रूप दे दिया गया था... यहां तक कि लड़ाकू विमानों के पायलटों की रिवाल्‍वरों को भी लोड कर दिया गया था। पाकिस्‍तानी नकदी की भी व्‍यवस्‍था भी कर ली गई थी। पायलटों के नियंत्रण रेखा के दूसरी ओर इजेक्ट करने की स्थिति में इस नकदी का इस्तेमाल किया जाना था।

भारतीय वायुसेना के दस्‍तावेजों में इस योजना का विस्‍तार से विवरण है। NDTV के पास मौजूद इन दस्‍तावेजों के अनुसार, फाइटर विमानों के पायलट बमबारी के अपने खास मिशन के तहत नियंत्रण रेखा को पार करने से कुछ ही मिनट की दूरी पर थे। यह एक ऐसा कदम था जो परमाणु शक्ति संपन्न दो देशों के बीच के कारगिल संघर्ष को पूर्ण युद्ध में तब्‍दील कर सकता था।

 
दिल्‍ली में दोनों देशों के बीच बातचीत नाकाम होने के बाद यह स्थिति निर्मित हुई थी।

वायुसेना के इस हवाई हमले की योजना तत्‍कालीन भारतीय विदेश मंत्री जसवंत सिंह और उनके पाकिस्‍तानी समकक्ष सरताज अजीज के बीच दिल्‍ली में हुई वार्ता के नाकाम होने के बाद बनी थी। बातचीत में सरताज अजीज के सामने साफ शब्दों में शर्तें रखी गईं- पाकिस्‍तानी घुसपैठियों को करगिल की पहाड़ि‍यों से हटाया जाए, नियंत्रण रेखा को नए सिरे से निर्धारित करने की मांग को छोड़ा जाए, दशकों से चली आ रही नियंत्रण रेखा को तुरंत स्‍वीकार कर यथास्थिति बरकरार रखी जाए और कैप्‍टन सौरव कालिया सहित छह भारतीय सैनिकों को बेरहमी से टार्चर करने के जिम्‍मेदार लोगों को दंडित किया जाए। गौरतलब है कि उत्तरी कश्‍मीर में सेना के जवानों के साथ एक ऑपरेशन के दौरान सौरव कालिया को पाकिस्‍तानी सैनिकों ने पकड़ लिया था। कड़ी यातना देने के बाद उनका क्षतविक्षत शव भारत को सौंपा गया था। आखिर में बातचीत बेनतीजा रही। नई दिल्ली ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर ली थी।  

इसके आगे क्या होना था, यह वायुसेना के स्क्वाड्रन डायरी में दर्ज है। NDTV के पास उपलब्ध पेपर बताते हैं कि, 12 जून को भारत में बातचीत के विफल होने के बाद सरताज अजीज वापस पाकिस्तान गए। यहां, सभी पायलटों को 1600 बजे बुलाया गया। यह बुलावा गुप्ता का था। उनके पास हमारे लिए कुछ समाचार था। डायरी में दर्ज सीएटीओ (CATOs) के निर्देश के अनुसार, वायुसेना मुख्यालय से सभी को आदेश दिए गए थे कि 13 जून की सुबह हमले के लिए तैयार रहना। यह बात एयरफोर्स के 17 स्क्वाड्रन की डायरी में दर्ज है। इस स्क्वाड्रन को गोल्डन एरोज नाम से जाना जाता है और तब यह श्रीनगर स्थित एयरफोर्स बेस से अपना काम करती थी।
 
डायरी में लिखा है कि चार एयरक्राफ्ट को पहले बॉम्बिंग मिशन का हिस्सा बनाया गया था। यह हमला पाक अधिकृत कश्मीर और चकलाला (पाकिस्तान के रावलपिंडी के एयरबेस) पर होना था। इसके लिए टोनी, प्रदीप, चाऊ और डॉक की तैयारी थी और ढाली तथा गुप्ता को दूसरे मिशन पर जाना था। पाल इस बात से नाराज थे कि उन्हें इसमें शामिल नहीं किया गया था।
 
(भारतीय वायुसेना के पायलट हमले के लिए पूरी तरह तैयार थे)

टारगेट बताए जाने के बाद पायलटों को मिशन की तैयारी के लिए छोड़ दिया गया था। सभी रात में आदेश मिलने के बाद वापस आए और सभी ने अपने-अपने विंजा (सॉफ्टवेयर जिसके जरिए रूट को तय किया जाता है), गोला (रिवॉल्वर में बुलेट डालना), मैप और पाकिस्तानी करेंसी को लिया।

घड़ी की सुई चलती जा रही थी। कुछ ही घंटों में भारतीय वायुसेना को 1971 की लड़ाई के बाद पहली बार हमला करना था, वो भी एक ऐसे देश पर जो अब परमाणु शक्ति संपन्न था। '13 जून को सुबह 4.30 बजे सभी पायलटों ने लड़ाई के लिए पूरी तरह तैयार होकर अपने स्क्वाड्रन पर रिपोर्ट किया, लेकिन अभी तक 'हमले' का कोई आदेश नहीं मिला था। हम सुबह तक पूरी तरह तैयार बैठे रहे और फिर 12.30 बजे हम बैठ गए।'

इस डायरी के अलावा वायुसेना के एक पूर्व MiG 21 पायलट ने NDTV को बताया कि जून 1999 को केवल लाइन ऑफ कंट्रोल के इस पार तक ही नहीं, बल्कि उस पार भी जाने के आदेश जारी किए गए थे। पहचान गुप्त रखने की शर्त पर मिग 21 के पायलट ने, जो उसी रीजन में तैनात था, बताया कि 'हम खाना खा रहे थे, तभी हमें ऑपरेशन रूम में भेजा गया। कमांड से एक ऑफिसर आया था। उसने कहा कि सुबह बलून ऊपर जाएगा। आप सभी पहले हमले के सदस्य होंगे।'

दो MiG-21 को टाइड एस्कॉर्ट के तौर पर तैनात किया गया था, जिनका काम चकलाला स्थित एयरबेस पर हमले के लिए जा रहे चार MiG-27 बमवर्षक विमानों को नजदीकी सुरक्षा मुहैया कराना था। इनका काम चकलाला रनवे को तबाह करना था, ताकि वहां से लड़ाकू विमान न उड़ पाएं। इनका काम यह भी तय था कि अगर चारों हमलावर MiG-27 यदि पाकिस्तानी फाइटरों द्वारा इंटरसेप्ट हो जाते हैं, तो ये उन्हें सुरक्षा कवर उपलब्ध कराएं।

इसके अलावा चार MiG-29 विमानों को हमले के लिए जा रही MiG 21 विमानों के लिए रास्ता साफ करना था, ताकि यह सफलतापूर्वक अपना मिशन पूरा कर सके। इनको यह जिम्मेदारी दी गई थी कि जब तक भारतीय हमलावर विमान अपने टारगेट तक न पहुंचें, तब तक ये हवा में उन्हें पूरी तरह सुरक्षा प्रदान करें। कुल मिलाकर 16 फाइटर प्लेन को इस ऑपरेशन के लिए चुना गया था। कुछ अन्य स्क्वाड्रन को भी मिशन से जुड़े अन्य काम दिए गए थे।
 
डायरी में लिखा गया है, 'हम लोगों ने पाकिस्तानी करेंसी ले ली और अपने-अपने घरवालों के लिए चिट्ठियां भी लिख डाली थीं। उड़ने का आदेश सुबह 6.30 बजे का था। युवा पायलट हमले को लेकर काफी उत्साहित थे। रात करीब 12 बजे मिशन को रोकने का आदेश आ गया। सुबह 3.00 बजे हमें न जाने के स्पष्ट आदेश मिले।'

कहा जाता है कि एयरफोर्स के इस मिशन में कई जोखिम थे। यह संभावना थी कि कुछ जेट को मार गिराया जाता, क्योंकि पाकिस्तान की वायुसेना के पास उच्च तकनीक से लैस फाइटर एफ-16 थे, जो सीमा के उस पार इंतजार कर रहे थे। पिंडी और काहुटा में फ्लाइंग पेट्रोलिंग जारी थी, ये किसी भी भारतीय एयर स्ट्राइक को पकड़ने के लिए तैयार थे।

केवल एफ-16 ही खतरा नहीं थे। भारतीय पायलट इस बात से वाकिफ थे कि फ्रांस में बने क्रोटेल और चीन में बनी एचक्यू2बी, जमीन से हवा में मारने वाली मिसाइल, किसी भी भारतीय हमलवार फाइटर को नष्ट करने के लिए तैयार थी। क्रोटेल की मारक दूरी करीब 10 किलोमीटर की है और यह भारतीय लड़ाकू फाइटर की ओर हवा से भी दोगुनी स्पीड से बढ़ती। वहीं, चीन की बनीएचक्यू2बी मिसाइल कम खतरा नहीं थी। इस मिसाइल में 190 किलो वारहेड ले जाने की क्षमता है जो अपने टारगेट को 20 किलोमीटर की दूरी पर ही पकड़ लेती है। यह मिसाइल 1150 मीटर प्रति सेकंड की गति से भारतीय लड़ाकू जेट की ओर बढ़ती। अपने टारगेट के नजदीक पहुंचते ही इस मिसाइल पर लगा प्रॉक्सिमिटी फ्यूज खुल जाता है और यह जोरदार धमाका करती है। इससे किसी भी भारतीय लड़ाकू जेट का बच पाना मुश्किल ही था।

यद्यपि, कारगिल युद्ध के समय, भारतीय वायुसेना के पास एक खास तरह की बढ़त थी। भारत के पास पाकिस्तान की तुलना में लड़ाकू विमानों की संख्या ज्यादा थी और वह ज्यादा बेहतर हथियारों से लैस थे, जिससे वह दुश्मन को इंटरसेप्ट कर सकते। भारत के MiG 29, मिराज 2000 जैसे लड़ाकू जेट में लंबी दूरी की मारक क्षमता वाली एयर-मिसाइल लगाने का प्रावधान है, जबकि पाकिस्तान के लड़ाकू विमान के पास यह सुविधा उपलब्ध नहीं थी। इससे यह साफ है कि पाकिस्तानी एयरफोर्स भारतीय लड़ाकू विमानों को केवल डॉगफाइट (आमने-सामने की लड़ाई) में ही एंगेज कर पाती क्योंकि दुश्मन जहाजों में छोटी दूरी की मारक क्षमता वाली और अमेरिका में बनी साइविंडर मिसाइल ही लग पाती थीं।

शायद यही वह बढ़त थी जिसकी वजह से सरकार ने हवाई हमले के लिए तैयारी कर ली थी, लेकिन भारत सरकार द्वारा कारगिल लड़ाई को नहीं बढ़ाने के निर्णय ने इस योजना को अभी तक गुप्त ही रखा। बहरहाल, जुलाई 1999 में भारतीय सेना ने कारगिल में अपनी सभी पोस्टों से दुश्मनों को खदेड़ दिया और विजय पाई...।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com