यह ख़बर 02 जुलाई, 2012 को प्रकाशित हुई थी

प्रणब दा से मनोरंजन भारती की पूरी बातचीत

खास बातें

  • राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी ने एनडीटीवी इंडिया से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा कि दरअसल, प्रधानमंत्री बनने की लालसा ही उनके भीतर कभी नहीं रही। पेश है राजनीतिक संपादक मनोरंजन भारती से हुई उनकी पूरी बातचीत...

राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी ने एनडीटीवी इंडिया से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा कि दरअसल, प्रधानमंत्री बनने की लालसा ही उनके भीतर कभी नहीं रही। पेश है राजनीतिक संपादक मनोरंजन भारती से हुई उनकी पूरी बातचीत...
 
सवाल : दादा एनडीटीवी इंडिया में आपका स्वागत है… सबसे पहले आप अपने राजनैतिक जीवन के बारे में बताइए.. कब आप पहली इंदिरा गांधी से मिले और सांसद बने…

जवाब : मैं संसद में सबसे पहले राज्यसभा में आया 1969 में… उसके बाद बैंकों के राष्ट्रीयकरण के मुद्दे पर मेरे एक भाषण की तारीफ इंदिरा गांधी ने की… और उसके बाद भूपेश गुप्ता ने लॉबी में मेरा परिचय इंदिरा गांधी से कराया…।

सवाल : इंदिरा गांधी ने एक बार संसद में आपके भाषण के बारे में कहा था 'शॉर्ट मैन बट लॉन्ग स्पीच', साथ ही उन्होने कहा था कि आपके बिना कोई कैबिनेट मीटिंग नहीं हो सकती।
 
जवाब : हां, एक बार उन्होने ऐसा कहा था क्यों कि मेरा बजट भाषण काफी लंबा था… हालांकि उन्होने कैबिनेट मीटिंग वाली बात मज़ाक में कही थी… दरअसल मैं कैबिनेट की सभी मीटिगों में शामिल होता था… इसलिए उन्होने ऐसा कहा था…।
 
सवाल : आपको सारे नियम कायदे बेहद अच्छे से याद रहते हैं… सीडब्लयूसी की मीटिंग हुई तो उसमें भी आपने सारे रेजोल्यूशन के बारे में बता दिया था… कैसे आप इतना सब याद रखते हैं… आपके दिमाग में कोई चिप तो नहीं लगा है...
 
जवाब : नहीं, कोई चिप नहीं है... यह तो स्वाभाविक है… कांग्रेस मूवमेंट के ज़माने से ही में इतिहास पढ़ता आ रहा हूं… तो याद रखने में कोई दिक्कत नहीं होती है… और में लगातार पढ़ता भी रहता हूं…क्योंकि पढ़ने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा काम ही नहीं है…
 
सवाल : प्रणब दा, आपका बचपन कैसे बीता… किस तरह का स्वभाव था आपका बचपन में…
 
जवाब : बचपन में तो मैं बहुत शरारती हुआ करता था… मैं अपनी बड़ी बहन और मां को तो बहुत ज़्यादा तंग किया करता था… मेरी मां को मेरी पढ़ाई को लेकर भी शिकायत रहती थी… मैं अक्सर स्कूल से भाग जाता था…
 
सवाल : उस किस्से के बारे में बताइए जिसके बारे में कहा जाता है कि आपकी मां आपको सब्ज़ी लाने के लिए पैसे देतीं थीं….और आप उन पैसों से मिठाई खरीदकर ले आते थे…
 
जवाब : हां, मैं अक्सर ऐसा करता था… दरअसल मुझे खाने−पीने का बहुत शौक था… तो जो पैसे मां मुझे देतीं थीं… उनमें से कुछ पैसों को मैं खाने−पीने में खर्च कर देता था… और बाकी पैसों से सामान ले आता था…
 
सवाल : एक किस्सा यह भी है कि आप पैसों को ज़मीन में दबा देते थे…
 
जवाब : हां, वो बात भी सही है… दरअसल मुझे एक व्यक्ति ने बेवकूफ बनाया था… उसने कहा था कि पैसों को ज़मीन में दबाकर अगर पानी दिया जाए तो ज़मीन से फल उग आएंगे… मैंने उसपर भरोसा कर उसे पैसे दिए…और जब मैंने उससे पूछा तो उसने कहा कि वो फल तो मर गए हैं… यानि वो पैसा लेकर भाग गया और मुझे बेवकूफ बना दिया…।

सवाल : प्रणब दा, आप अपने संसदीय जीवन का कोई यादगार लम्हा बताइए…
 
जवाब : संसद में तो मैं हमेशा सक्रिय रहा हूं… सालों से मैं लगातार हर अहम चर्चा में हिस्सा लेता आ रहा हूं… मेरे कई भाषणों को काफी ज़्यादा सराहा भी गया है… चाहे वह फाइनेंस बिल पर दिया गया भाषण हो या… लोकपाल बिल के मामले पर दिया गया भाषण…
 
सवाल : प्रणब दा, आप दोनों सदनों के नेता रहे हैं… सदन के नेता के तौर पर आपका अनुभव कैसा रहा…
 
जवाब : दोनों ही सदनों को चलाना काफी मुश्किल रहा…कई बार बिल पास कराने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा… हालांकि कई सत्र बहुत अच्छे भी बीते… जिनमें मैंने सभी बिलों को आसानी से पास करा लिया… लेकिन बिल पास कराना वाकई बहुत मुश्किल काम होता है…
 
सवाल : प्रणब दा, अब जो संसद की कार्यवाही होती है… वह आक्रमक होती जा रही है… पहले भी ऐसा होता था… लेकिन एक सीमा में होता था…
 
जवाब : हां, यह सही है ऐसा हो रहा है… दरअसल बात यह है कि पहले संसद की कार्यवाही में केंद्रीय मुद्दों पर चर्चा ज़्यादा होती थी… जैसे फाइनेंस बिल हुआ या फिर विदेश और ट्रेड नीतियां हुईं… लेकिन अब स्थानीय मुद्दों पर भी चर्चा होती है… और उसके बारे में संसद सदस्यों की राय अलग-अलग होती है जिससे संसदीय कार्यवाही में आक्रामकता आती है।
 
सवाल : प्रणब दा, क्या आपको कभी प्रधानमंत्री न बन पाने का दर्द होता है या कभी आप यह सोचकर उदास होते हैं कि आपमें काबलियत थी… लेकिन फिर भी आप प्रधानमंत्री नहीं बन पाए…
 
जवाब : नहीं नहीं, ऐसा कुछ नहीं है… मैंने हमेशा कहा कि मैंने पार्टी को जितना दिया कांग्रेस पार्टी ने उससे कहीं ज़्यादा मुझे दिया है… मुझे बेहद सम्मान मिला है…।
 
सवाल : प्रणब दा, क्या यह सही है कि आप राष्ट्रपति बनना चाहते थे। क्योंकि आपने एक बार कहा था कि मेरी हिंदी अच्छी नहीं है… इसलिए ज़्यादा बेहतर पद राष्ट्रपति का है…
 
जवाब : नहीं, दरअसल मैंने कहा कि प्रधानमंत्री का पद आम आदमी के काफी करीब होता है…उसे आम लोगों से संवाद करना होता है…और हिंदी आम आदमी की भाषा है…ऐसे में प्रधानमंत्री के पद पर बैठने वाले शख़्स का हिंदी में जबर्दस्त दखल होना चाहिए तभी वह आम लोगों से बेहतर संवाद स्थापित कर पाएगा…।

सवाल : प्रणब दा, जिस कद का आपका व्यक्तित्व अभी कांग्रेस में है…इस कद को छोड़कर आप अब जा रहे हैं… ऐसे में आपको नहीं लगता कि कांग्रेस में अभी 'लेक ऑफ लीडरशिप' की स्थिति है…
 
जवाब : नहीं नहीं, कांग्रेस प्रतिभावान नेताओं की पार्टी है… और नई पीढ़ी को आगे लाने के लिए पुराने नेताओं को जाना ही होगा…। मैंने तो 2009 के चुनावों के बाद ही कह दिया था कि… मैं अगला चुनाव नहीं लड़ूंगा क्योंकि अब नई पीढ़ी के आगे आने का वक्त है…।
 
सवाल : नहीं, मेरा सवाल था कि राजनीति में दरअसल अब राजनीति पर केंद्रित व्यक्ति नहीं आ रहे हैं कई और क्षेत्रों से आ रहे हैं…लेकिन राजनीति पर केंद्रित व्यक्ति नहीं आ रहे हैं…जिसका असर सदन में भी देखा जा रहा है…
 
जवाब : मैं भी यही कह रहा हूं कि अब नई पीढ़ी के आगे आने का वक्त है… नए लोग आएंगे तो नए विचार आएंगे और वो नई पीढ़ी को समझ सकेंगे…।
 
सवाल : प्रणब मुखर्जी की विरासत क्या होगी…आपके बाद आपकी विरासत को कैसे आगे बढ़ाया जाएगा…
 
जवाब : नहीं, मेरी ऐसी कोई विरासत नहीं है…कांग्रेस पार्टी में एक सिस्टम है जिसके मुताबिक सभी नेता काम करते हैं…कोई विरासत नहीं है…
 
सवाल : ...और आपके बच्चे…
 
जवाब : नहीं, मेरे पास कुछ नहीं है…
 
सवाल : आपने कई बार ऐसा कहा है कि आप ग्रामीण परिवेश से आए हैं….तो इस चीज ने आपकी सोच को कितना प्रभावित किया…
 
जवाब : दरअसल मैंने इस सोच के साथ काम किया क्योंकि… मैंने गांव में रहने वाले लोगों और शहर में रहने वाले लोगों की समस्याओं को समझा… और उसी के मुताबिक उनके विकास के लिए काम किया… अब मैं उसमें कितना सफल रहा यह तो आम जनता तय करेगी…
 
सवाल : इस बार का राष्ट्रपति चुनाव शुरू से ही दिलचस्प दिखाई दे रहा है… इस दौरान कभी आपको ऐसा लगा कि शायद आपका नाम इन पद के लिए फ़ाइनल न हो…
 
जवाब : नहीं ऐसा नहीं है, मैंने शुरुआत से ही कहा है कि मैं किसी पद की मांग नहीं रख रहा हूं पार्टी मेरे बारे में जो फ़ैसला करेगी मुझे वह मंज़ूर होगा…और जो दिशा निर्देश पार्टी देगी मैं उनका पालन करूंगा…
 
सवाल : कभी भी आपको ऐसा नहीं लगा कि शायद इस रेस में आप चूक जाएंगे…

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जवाब : नहीं मुझे ऐसा कभी नहीं लगा…।
 
सवाल : ममता बनर्जी आपके ही राज्य से आतीं हैं…आपने उनसे समर्थन की अपील की है… क्या आपको लगता है कि वह आपका समर्थन करेंगी…
 
जवाब : देखा जाएगा… अभी तक तो उन्होने अंतिम निर्णय नहीं किया है… जब अंतिम निर्णय करेंगी तो देखा जाएगा…
 
सवाल : दादा आपको देश के हर क्षेत्र के लोगों ने राष्ट्रपति का काबिल उम्मीदवार बताया है… इसलिए शिवसेना और जेडीयू ने भी आपको समर्थन दिया… कई ऐसे लोग हैं जिन्हें आप नहीं जानते हैं उन्होने भी आपका सम्रर्थन किया है… जैसे आप सलमान खान को नहीं जानते होंगे… लेकिन उन्होने भी आपके सबसे काबिल उम्मीदवार करार दिया है...
 
जवाब : अब यह तो पहचान का मामला है… और मैं इस वजह से खुद को काफी सम्मानित महसूस करता हूं… और समर्थन करने वाली सभी लोगों का आभारी हूं…
 
सवाल : दादा, आप अब सक्रिय राजनीति से हट गए हैं… लेकिन क्या आपको लगता है कि हम लोगों के लिए आप एक अच्छी अर्थव्यवस्था छोड़कर जा रहे हैं…
 
जवाब : देखिए यह बात मैं अभी नहीं कहूंगा…अब मैंने छोड़ दिया तो छोड़ दिया… लेकिन मेरे कार्यकाल के दौरान क्या अच्छा हुआ या क्या खराब हुआ… उसका विश्लेषण करना दूसरे लोगों का काम है… मैं इस मामले में कोई टिप्पणी करना नहीं चाहता हूं…
 
सवाल : कितना मुश्किल है आपके लिए सरकार और कांग्रेस से खुद को दूर रखना…क्योंकि आपको संकट मोचक भी कहा जाता है…
 
जवाब : नहीं, अलग तो होना ही होगा… ये बहुत जरूरी भी है…
 
सवाल : आप डायरी भी लिखते हैं प्रणब दा, वह कब छपेगी…
 
जवाब : वो तो देखा जाएगा… अभी तय नहीं है।
 
सवाल : राष्ट्रपति भवन के लिए और क्या योजनाएं हैं आपकी...
 
जवाब : नहीं, कोई योजना नहीं है… मैं तो पहले से ही कहता आ रहा हूं कि… इस देश के कई महान लोग राष्ट्रपति के पद पर बैठ चुके हैं… और अगर मुझे राष्ट्रपति बनने का मौका मिलेगा… तो मैं भी इस पद की गरिमा को बरकरार रखने की कोशिश करूंगा…
 
सवाल : प्रणब दा, आपके बारे में कहा जाता है कि आप 13 नंबर को शुभ मानते हैं… आप देश के तेहरवें राष्ट्रपति होंगे आपके बंगले का नंबर 13 है…
 
जवाब : नहीं ऐसा कुछ नहीं है… मैं शुभ-अशुभ कुछ नहीं मानता हूं… जो सरकारी बंगला मुझे दिया गया मैं उसमें ही रहता आ रहा हूं… ऐसा कुछ भी नहीं है…