ओआरओपी मामला : 48 घंटे की मध्यस्थता के बाद करगिल युद्ध के प्रमुख ने हाथ खड़े किए

ओआरओपी मामला : 48 घंटे की मध्यस्थता के बाद करगिल युद्ध के प्रमुख ने हाथ खड़े किए

पूर्व भारतीय सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक (फाइल चित्र)

नई दिल्ली:

करगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल वीपी मलिक को सरकार और वन रैंक वन पेंशन (OROP) की मांग कर रहे पूर्व सैनिकों के बीच मध्यस्थता करने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा चुना गया था। पूर्व सैनिकों की मांग है कि रिटायर्ड सैन्य अफसर और सैनिकों की पेंशन उतनी ही होनी चाहिए, जितनी मौजूदा रैंक होल्डरों की है।

फिलहाल इस मामले में काफी असमानताएं हैं, जैसे इस वक्त रिटायर होने वाले जूनियर अफसर को भी अपने ही रैंक के अलावा अपने से कई रैंक ऊपर के उन अधिकारियों से भी ज्यादा पेंशन मिलती है, जो पहले रिटायर हुए।
 
कुछ विशेष सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया कि चंडीगढ़ में रहने वाले जनरल मलिक, सरकार और सैनिकों के बीच इस मामले को सुलझाने के लिए दिल्ली आए थे, जिसके लिए पूर्व सैनिक पिछले 10 साल से लड़ाई लड़ रहे हैं। यह बात अलग है कि ओआरओपी पर पहले यूपीए और अब एनडीए भी कुछ ठोस कदम उठाते हुए नहीं दिख रही है।

सूत्रों का कहना है कि शुरुआत में जनरल मलिक इस बातचीत का हिस्सा बनने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे, लेकिन बाद में पीएमओ और कुछ वरिष्ठ जनरलों के कहने पर वह इस काम के लिए राज़ी हो गए।
 
लेकिन दोनों ही पक्षों के बीच एक लंबी खाई को देखते हुए बाद में जनरल मलिक ने इस मामले से अपने हाथ खींच लिए। दरअसल मामला पेंशन स्केल पर जाकर अटक जाता है, जिस पर दोनों ही पक्ष सहमत नहीं हो पा रहे हैं।

सरकार के मुताबिक 2011 के रेट लागू होने चाहिए, जबकि इसकी तुलना में 2014 के रेट काफी ज्यादा हैं और सैनिक उसी दर पर पेंशन चाहते हैं। इसके अलावा वन रैंक वन पेंशन के लागू होने की तारीख को लेकर भी मतभेद जारी है, क्योंकि इसी से तय होगा कि कौन-से अफसर को इसका पूर्वप्रभावी रूप से फायदा मिलेगा।
 
सूत्रों की माने तो इस मामले पर किसी तरह की सहमति नहीं बना पाने के बाद जनरल मलिक दिल्ली से रवाना हो गए। रक्षा मंत्रालय ने कुछ चिट्ठियां प्रकाशित की हैं, जिनमें लिखा गया है कि ओआरओपी 2014 की पेंशन स्केल पर आधारित होगा और इससे हाथ खींचने का मतलब प्रदर्शनकारी सैनिकों को नाराज़ करना होगा।

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हालांकि इस बात की पुष्टि भी की गई है कि पूर्व सैनिक एक समझौते के लिए राजी हो गए थे, जिसके अनुसार मृत सैनिकों की पत्नियों को नकद मुआवज़ा दिया जाए, वहीं जेसीओ और अफसरों को बॉन्ड के जरिये हर्जाना दिया जा सकता है, लेकिन बातचीत में ऐसे किसी फैसले पर सहमति नहीं बन पाई।
 
गौरतलब है कि ओआरओपी मांग को मानने और सुप्रीम कोर्ट के आदेशनुसार नीतियों को लागू करने पर सरकार के 12,000 करोड़ खर्च होंगे, जो मौजूदा आकलन से 4,000 करोड़ ज्यादा है। बताया जा रहा है कि इस अंतर को पीएम की तरफ से मंजूरी मिल सकती है, लेकिन लगता नहीं कि वह अपने ऐसे किसी भी इरादे का खुलासा स्वतंत्रता दिवस के भाषण में करने वाले हैं।