यह ख़बर 04 जुलाई, 2014 को प्रकाशित हुई थी

दिल्ली : बच्चों के भरोसे स्कूल की पढ़ाई

नई दिल्ली:

दिल्ली के ज्यादातर स्कूलों में आजकल बच्चे ही शिक्षक बन गए हैं। दरअसल करीब 12 हजार गेस्ट टीचर की नियुक्ति में देरी की वजह से दिल्ली सरकार के माध्यमिक स्कूलों में पढ़ाई चरमरा सी गई है। हर साल 10 जुलाई तक गेस्ट टीचरों के लिए ऑनलाइन फार्म भरके नियुक्ति हो जाती थी, लेकिन इस बार लेट लतीफी के चलते स्कूलों मे टीचरों की कमी हो गई है।
 
स्लम इलाकों के स्कूलों पर ज्यादा असर

हमारे सहयोगी चंद्रमोहन जिंदल खुद पहले मुकुंदपुर गांव के सरकारी स्कूल में गए। यहां पता चला कि स्कूल में चल रही दो पारियों में चार हजार छात्र हैं, लेकिन यहां भी गेस्ट टीचरों के नहीं होने से तीन स्थाई शिक्षकों के भरोसे ही बच्चे हैं। ऐसे में शिक्षक सभी क्लासों को नही देख सकते हैं, लिहाजा बच्चे ही छात्र है और वहीं शिक्षकों की तरह दूसरे बच्चों को पढ़ाते भी है।

इसी तरह सर्वोदय कन्या विद्यालय में सिर्फ प्रिंसीपल के भरोसे 1500 बच्चों की पढ़ाई चल रही है। यही नहीं सादिक नगर, त्रिलोकपुरी जहांगीर पुरी, जगतपुरी के स्कूलों में गेस्ट टीचर ना होने से पढ़ाई ही शुरू नहीं हो पाई है। हालांकि बच्चों के भरोसे चल रही ये काम चलाऊं व्यवस्था तभी तक है जब तक नए गेस्ट टीचरों की नियुक्ति नहीं हो जाती है।

दिल्ली के स्कूलों में गेस्ट टीचर क्यों ज़रूरी हैं?

दिल्ली के 11 सौ स्कूलों में करीब 15 लाख से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। ऐसे में 12 हजार गेस्ट टीचरों की भूमिका अहम हो जाती है। जानकार बताते हैं कि कई सालों से माध्यमिक स्कूलों के स्थाई टीचरों की भर्ती नहीं हुई है। ऐसे में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में करीब 50 हजार नए शिक्षकों की ज़रूरत है। नियमों के मुताबिक, 35 बच्चों पर एक शिक्षक होने चाहिए लेकिन दिल्ली के सरकारी स्कूलों पर इतना दबाव है कि बहुत सारे स्कूलों में एक शिक्षक के भरोसे औसतन 150 से 200 बच्चे तक होते हैं।

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दिल्ली में 24 घंटे पानी और बिजली के साथ ट्रैफिक के लिए बड़े-बड़े फ्लाईओवर की जरूरत पर जोर शोर से बहस होती है, लेकिन स्लम और गरीब इलाकों में शिक्षा की इस बेकद्री पर किसी का ध्यान नहीं है। सवाल यह उठता कि जब प्राइवेट स्कूल जुलाई में नए सत्र के लिए कमर कस रहे होते हैं तो शिक्षा से जुड़े हमारे ये अधिकारी कहां रहते हैं। अगर गेस्ट टीचरों की सही समय से नई नियुक्तियां हो जाती तो शायद हालात ज्यादा तो नहीं लेकिन थोड़े बहुत तो सुधरे ही होते।