नोटबंदी से फसल पर संकट : गेंहू की बुआई तो हो गई, खाद के लिए बैंक से पैसे नहीं मिल रहे

नोटबंदी से फसल पर संकट : गेंहू की बुआई तो हो गई, खाद के लिए बैंक से पैसे नहीं मिल रहे

फरीदाबाद जिले के सीकरी गांव के किसान श्रीराम.

खास बातें

  • फरीदाबाद जिले के सीकरी गांव की ग्राउंड रिपोर्ट
  • खाद नहीं खरीद पाए तो फसल खराब होगी
  • किसान श्रीराम के लिए आनलाइन बैंकिंग दूर की कौड़ी
नई दिल्ली:

फरीदाबाद जिले के सीकरी गांव के किसान श्रीराम ने नोटबंदी से पहले ही गेहूं की बुआई के इंतजाम कर लिए थे, लेकिन अब तक वे खाद नहीं खरीद पाए हैं. इसके लिए उन्हें 25000 रुपये चाहिए जो उन्हें बैंकों से नहीं मिल रहे.

श्रीराम ने एनडीटीवी से कहा, "पिछले कई दिनों से बैंक का चक्कर लगा रहा हूं. कुछ भी कैश नहीं मिला है. अभी सिर्फ दस दिन बचे हैं. अगर फसल के लिए खाद नहीं खरीद पाया तो फसल खराब होगी...पैदावार कम होगी...हमारी कमाई घटेगी."

सीकरी गांव के सिंडिकेट बैंक में श्रीराम का बैंक खाता तो है लेकिन उनके पास न तो चेकबुक है और न ही डेबिट कार्ड. बैंक मैनेजर पुरुषोत्तम लाल कहते हैं, "शुक्रवार से पैसा अब तक आया ही नहीं है. हम श्रीराम की मदद कर सकते हैं. एनईएफटी के जरिए वह अपना पैसा खाद व्यापारी के बैंक एकाउंट में सीधे ट्रांसफर कर सकते हैं.''

लेकिन श्रीराम बहुत पढ़े-लिखे नहीं हैं. आनलाइन बैंकिंग उनके लिए दूर की कौड़ी है. उनको बस कैश का ही आसरा है.  श्रीराम की पत्नी रामेश्वरी कहती हैं, "घर में कैश बहुत कम है. रोजमर्रा का खर्चा उधारी से ही चल रहा है.  बेटा मनोज कहता है, "स्कूल भी दबाव डाल रहे हैं कि हम फीस जल्दी जमा करें. हमारे पास चेकबुक या डेबिट कार्ड नहीं है. बैंक में कैश मिल ही नहीं पा रहा है."

बताया जा रहा है कि इस साल नोटबंदी के बावजूद फसलों की बुआई इस साल अब तक ज्यादा हुई है. सरकार सहकारी बैंकों तक मौजूदा रबी सीजन के लिए 21000 करोड़ मुहैया कराने का ऐलान कर चुकी है. लेकिन नोटबंदी के बाद किसानों की मुश्किल कम होने का नाम नहीं ले रही. यह ग्रामीण भारत की सच्चाई है. कैशलेस अर्थव्यवस्था से काफी दूर.


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