सिद्दार्थ पांडे, ग्राउंड जीरो: बसों से लौट रहे हैं लोग, बता रहे हैं आंखों देखा हाल

यूपी से नेपाल के लिए काफी सारी बसें भेजी गई हैं लेकिन बहुत कम बसें वहां पहुंच पाई है। जो बसें पहुंची हैं, उन बसों से लौटकर लोग आ रहे हैं। क़रीब तीन दिन के तकलीफ़देह इंतज़ार के बाद लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। यूपी ट्रांसपोर्ट की सौ से ज़्यादा बसें जैसे ही काठमांडू पहुंचीं, हजारों फंसे हुए भारतीय उन पर टूट पड़े। हमारे संवाददाता सिद्धार्थ पांडे वहां पहुंचे हुए हैं..

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बिहार के मोतिहारी में रहने वाले विकास कुमार परिवार सहित एक दशक से काठमांडू हैं। वहां सब्ज़ी की दुकान है। भूकंप के दौरान वे बाल-बाल बचे। उनके घर की एक दीवार गिर पड़ी और विकास की बहन घायल हो गई। तब से वो दहशत में हैं और सड़क पर रह रहे हैं। डर इतना है कि घर जाकर बच्चों के लिए गरम कपड़े लाने से भी बच रहे हैं।
 
विकास कुमार ने कहा, हमने अपनी आंखों से मौत देखी। जब भूचाल आया हम घर पर थे। मेरी बहन जख्मी हुई। हर चीज कितनी महंगी हो गई है। एक पानी की बोतल 100 रुपए में बिक रही है। और उस पर भी लोग आपस में झगड़ रहे हैं।  लक्ष्मी नामक महिला ने कहा, हमें कुछ भी समझ नहीं आ रहा है। विकास और उनका परिवार अपने घर से आठ किलोमीटर चल कर पशुपतिनाथ मंदिर के इलाके तक पहुंचे हैं ताकि भारत के लिए बस पकड़ सकें। फिर भी बस में बैठने के लिए चार घंटे इंतज़ार करना पड़ा।
 
हमारे संवाददाता सिद्धार्थ पांडे ने बताया कि मिनटों में बस भर जाती है। भीतर बैठी सात साल की ऋषु अचानक आई इस मुसीबत से परेशान है। अपने छोटे को भाई को पकड़े हुए वो बताती है, कितने बुरे गुज़रे हैं दिन। फिर भी बस में बैठा हर शख़्स ख़ुद को ख़ुशक़िस्मत मान रहा है कि मौत और तबाही को पीछे छोड़ वो घर लौट रहा है।
 
यूपी रोडवेज के बस ड्राइवर राम यादव कहते हैं, हम सुबह 6 बजे चले थे और बीच में बस एक घंटा रुके और अब सुबह 6 बजे पहुंचे हैं। यह एक खतरनाक रूट है क्योंकि यहां लैंडस्लाइड्स हो रही थीं। रोड ब्लॉक थे। जैसे बस भारतीय सरहद की ओर बढ़ रही है, मैं लक्ष्मी देवी से पूछता हूं, उनका परिवार लौटेगा या नहीं। लक्ष्मी कहती हैं, हम खुश हैं कि घर जा रहे  हैं। जब चीजें ठीक हो जाएंगी हम लौट आएंगे। सिद्धार्थ कहते हैं कि इन बसों से वापस भारत आने वाले लोग खुश हैं और ज्यादातर का कहना है कि वे चीजें ठीक होने पर वापस जाएंगे।