यह ख़बर 07 फ़रवरी, 2011 को प्रकाशित हुई थी

समलैंगिकता के खिलाफ सुनवाई 19 अप्रैल को

खास बातें

  • न्यायमूर्ति सिंघवी और गांगुली की पीठ ने सभी पक्षों को निर्देश दिया कि वे आठ सप्ताह के भीतर अपने-अपने दस्तावेज जमा कराएं।
नई दिल्ली:

सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ दायर कई याचिकाओं की सुनवाई के लिए 19 अप्रैल की तारीख तय कर दी, जिसमें सहमति के साथ बनने वाले समलैंगिक सम्बंधों को मान्यता दे दी गई थी। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली की पीठ ने सभी पक्षों को निर्देश दिया कि वे आठ सप्ताह के भीतर अपने-अपने दस्तावेज जमा कराएं। पीठ ने अदालत की रजिस्ट्री को भी निर्देश दिया कि वह सुनवाई सम्बंधी सभी जरूरतें पूरी कर ले। अदालत ने कहा कि वह मामले की सुनवाई के लिए दो दिन तय कर रही है और बहस की सीमा व प्रकृति के आधार पर सुनवाई के दिन बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है। न्यायाधीशों ने कहा कि सभी याचियों को अपने विचार रखने का समय दिया जाएगा। पीठ ने एक याची की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मामले में सशस्त्र बलों को पक्ष बनाने की मांग की गई थी। ज्ञात हो कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने दो जुलाई, 2009 को दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि वयस्कों के बीच सहमति के आधार पर बनने वाले समलैंगिक सम्बंध को आपराधिक गतिविधि बताने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377, मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उच्च न्यायालय ने यह फैसला, गैर सरकारी संगठन, 'नाज फाउंडेशन' व स्वयंसेवी संगठन, 'वायसेस अगेंस्ट 377' द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर दिया था। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि किसी भी तरह का भेदभाव समता के अधिकार का उल्लंघन है। ज्ञात हो कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 किसी भी अप्राकृतिक कार्य को प्रतिबंधित करती है। इस धारा के तहत नियम का उल्लंघन करने वालों के लिए जुर्माने के साथ ही 10 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है।


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