नई दिल्ली:
खुफिया ब्यूरो (आईबी) ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि 2004 में गुजरात के इशरत जहां मुठभेड़ मामले के तथ्यों की जांच किए बिना सीबीआई उसके अधिकारियों को फंसा रही है।
आईबी ने एक सीलबंद लिफाफे में वह खुफिया जानकारी भी दी है जो उसे लश्कर-ए-तैयब की आतंकवादी गतिविधियों के बारे में मिली थी। आतंकवादी संगठन भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने का प्रयास कर रहा था।
आईबी ने अपने हलफनामे में कहा है, 'मामले में जांच के दौरान पूरा सहयोग दिए जाने के बावजूद प्रतीत होता है कि सीबीआई ने इस मामले में एक आरोपपत्र दाखिल किया है जिसमें संबंधित तथ्यों की जांच किए बिना आईबी के चार अधिकारियों को फंसाया गया है।'
आईबी ने 25 जून 2010 के उस पत्र का भी उल्लेख किया है जो दिल्ली में अमेरिकी दूतावास में तैनात कानूनी अधिकारी :अताशे: से मिला था जिसमें इशरत जहां के बारे में कुछ सूचना का जिक्र था जो डेविड कोलमन हेडली से पूछताछ के दौरान एफबीआई अधिकारियों को मिली थी।
आईबी का हलफनामा सीबीआई द्वारा 6 फरवरी को दाखिल दूसरे पूरक आरोपपत्र के मद्देनजर काफी महत्व रखता है जिसमें आईबी के पूर्व विशेष निदेशक राजिंदर कुमार और तीन अन्य के नाम इस मामले में 'शामिल' होने को लेकर लिए गए हैं। अन्य तीन नामों में पी मित्तल, एमके सिन्हा और राजीव वानखेडे शामिल हैं।
आईबी ने अपने हलफनामे में घटनाक्रम का ब्यौरा दिया है जिसके बाद मुठभेड़ हुई जिसमें 19 साल की मुंबई की इशरत जहां, जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लै, जीशान जोहर और अमजद अली राणा की 2004 में फर्जी मुठभेड़ में हत्या की गई।
सीबीआई ने अपने पहले आरोपपत्र में गुजरात के निलंबित पुलिस उपाधीक्षक एनके अमीन और छह अन्य पुलिस अधिकारियों का नाम लिया था।
यह आरोप लगाया गया था कि यह राज्य पुलिस और खुफिया ब्यूरो का संयुक्त अभियान था। अमीन पर इशरत और शेख की हत्या से दो दिन पहले उनका अपहरण करने और तथाकथित मुठभेड़ के दौरान गोलियां चलाने का आरोप था।