सियाचिन ग्लेशियर में 200 फुट गहरी दरार से पोर्टर का शव ही तलाश पाई सेना

सियाचिन ग्लेशियर में 200 फुट गहरी दरार से पोर्टर का शव ही तलाश पाई सेना

नई दिल्ली:

भारतीय सेना की सोनम पोस्ट में बर्फ के तूफान (हिमस्खलन) की वजह से 10 फौजियों के मारे जाने के कुछ ही दिन बाद सियाचिन ग्लेशियर की एक गहरी दरार में जा गिरे एक पोर्टर को बचाने के लिए 60 फौजी बर्फ की मोटी-मोटी तहों को लगातार काट रहे हैं।

सेना ने बताया, बुधवार सुबह सिपाहियों ने पोर्टर के शरीर का पता लगा लिया, जो पिछले शुक्रवार को इस दरार में गिरकर लगभग 130 फुट नीचे जा फंसा था। राहत टीमें इस वक्त कोशिश में लगी हुई हैं, ताकि शरीर कहीं और नीचे की तरफ न जा गिरे, क्योंकि यह दरार लगभग 200 फुट गहरी है। जब यह सुनिश्चित हो जाएगा, शरीर को ग्लेशियर की सतह पर ले आया जाएगा।

जिस दरार में यह पोर्टर गिरा था, वह समुद्रतल से लगभग 19,000 फुट ऊपर है, और उसके भीतर का तापमान माइनस 40 से माइनस 60 डिग्री के बीच रहता है। बचाव कार्यों के लिए इसमें उतरना बेहद खतरनाक काम है, और उसके लिए पहाड़ों पर चढ़ने की कुशलता अनिवार्य है।

सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बुधवार को बताया, "यह पोर्टर 27 फरवरी को दुर्घटनावश इस दरार में जा गिरा था... सेना की खासतौर पर प्रशिक्षित टीमों द्वारा बचाव कार्य तुरंत शुरू कर दिया गया था, और तब से लगातार जारी है... बचाव दल धीरे-धीरे 60 फुट की गहराई तक पहुंचा, फिर 90 फुट, और फिर बर्फ को काटते-काटते आखिरकार वे 130 फुट की गहराई तक पहुंच गए, जहां उन्हें पोर्टर का शरीर मिल गया..."
 


सियाचिन में स्थानीय लद्दाखी लोग ही सेना के लिए पोर्टरों के रूप में काम करते हैं, और यहां सेना के सभी ऑपरेशनों की जान कहलाते हैं। उन्हें दुनियाभर में मुश्किल हालात में रहने के लिए सबसे उपयुक्त लोग माना जाता है, जो बेहद मजबूत भी होते हैं, और उनके फेफड़े भी हवा के इतने कम दबाव में काम करने के अभ्यस्त होते हैं।
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ये पोर्टर इस ग्लेशियर पर तीन-तीन महीने के रोटेशन में काम करते हैं। मरने वाला पोर्टर खारदूंग ला पास के उत्तर से सामान लेकर आ-जा रहा था।