गुरदीप सिंह को इंडोनेशिया में नहीं दी गई फांसी, सुषमा स्वराज ने की पुष्टि

गुरदीप सिंह को इंडोनेशिया में नहीं दी गई फांसी, सुषमा स्वराज ने की पुष्टि

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

खास बातें

  • 4 लोगों को कल दे दी गई है सजा
  • गुरदीप को बचाने की कोशिश में सरकार
  • सुषमा स्वराज ट्विटर पर की पुष्टि
नई दिल्ली:

विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने आज कहा कि इंडोनेशिया में मादक पदार्थ मामले में भारतीय नागरिक गुरदीप सिंह को मौत की सजा नहीं दी गयी है जिसे बीती रात मौत की सजा दी जानी थी। सुषमा ने ट्वीट किया, ‘‘इंडोनेशिया में भारतीय राजदूत ने मुझे सूचना दी है कि गुरदीप सिंह को मौत की सजा नहीं दी गई है जिसकी मौत की सजा बीती रात के लिए तय थी।’’ हालांकि, यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि भारतीय नागरिक को मौत की सजा क्यों नहीं दी गयी जबकि चार अन्य दोषियों को ‘फायरिंग स्क्वाड’ ने मौत की सजा दे दी।

48 वर्षीय सिंह का नाम उन 10 दोषियों की सूची में था जिन्हें मौत की सजा दी जानी थी, लेकिन मौत की सजा नहीं दी गई। इंडोनेशिया की एक अदालत ने उसे 300 ग्राम हेरोइन तस्करी करने के प्रयास का दोषी पाया था और उसे 2005 में मौत की सजा सुनायी थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कल कहा था कि जकार्ता में भारतीय दूतावास के अधिकारी इस मुद्दे को लेकर इंडोनेशियाई विदेश विभाग और देश के शीर्ष नेताओं तक पहुंच रहे हैं। सुषमा ने कहा था कि सरकार सिंह को बचाने के लिए अंतिम क्षण का प्रयास कर रही है।

स्वरूप ने कहा, सिंह के कानूनी प्रतिनिधि अफधाल मुहम्मद का मत था कि वह संबंधित कानून के तहत इंडोनेशिया के राष्ट्रपति के समक्ष क्षमादान की याचिका दायर कर सकता है। दूतावास ने इंडोनेशिया के विदेश मंत्रालय को एक ‘नोट वर्बेल’ भेजकर आग्रह किया कि मौत की सजा से पहले सभी कानूनी उपाय अपनाए जाने चाहिए।’’ अधिकारियों के मौत की सजा फिर से शुरू करने का निर्णय लेने के बाद पंजाब के जालंधर निवासी सिंह सहित 14 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी। मानवाधिकार संगठनों ने इस निर्णय की आलोचना की।

इंडोनेशिया, नाइजीरिया, जिम्बाब्वे और पाकिस्तान के नागरिक सहित 14 लोगों का नाम मौत की सजा की सूची में था। सिंह को 29 अगस्त 2004 में सुकर्णो हत्ता हवाईअड्डे से मादक पदार्थ तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। फरवरी 2005 में तांगेरांग अदालत ने उसे मौत की सजा सुनायी थी, जबकि अभियोजकों ने उसे 20 साल का कारावास देने का अनुरोध किया था।

बानतेन हाईकोर्ट ने मई 2005 में मौत की सजा के खिलाफ उसकी अपील को खारिज कर दिया था। फिर उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसने उसकी मौत की सजा बरकरार रखी। वह इस समय नुसाकाबंगन पासिर पुतिह, सिलाकाप में हिरासत में हैं।

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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