यह ख़बर 03 जुलाई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

सीबीआई ने कोर्ट में कहा, सरासर फर्जी थी इशरत जहां मुठभेड़

खास बातें

  • सीबीआई ने अपने पहले आरोपपत्र में उन पुलिसवालों के नाम लिए, जो मौके पर मौजूद थे। भले ही आरोपपत्र में सीबीआई ने आईबी अफसर राजेंद्र कुमार का नाम नहीं लिया, लेकिन कहा है कि उनकी भूमिका की जांच की जाएगी।
अहमदाबाद:

नरेंद्र मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ाते हुए सीबीआई ने बुधवार को इशरत जहां मुठभेड़ को फर्जी करार दिया और इस मामले में सात पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया।

सीबीआई ने अपने आरोप-पत्र में कहा कि 19 साल की इशरत 2004 में एक 'फर्जी' मुठभेड़ में मारी गयी थी। सीबीआई ने आरोप-पत्र में सात पुलिस अधिकारियों को आरोपी बनाते हुए कहा है कि यह गुजरात पुलिस और राज्य के सब्सिडियरी इंटेलिजेंस ब्यूरो (एसआईबी) की संयुक्त कार्रवाई थी।

आरोप-पत्र में सीबीआई ने कहा, ‘‘यह मुठभेड़ गुजरात पुलिस और राज्य के सब्सिडियरी इंटेलिजेंस ब्यूरो की संयुक्त कार्रवाई थी। यह मुठभेड़ फर्जी थी।’’ सीबीआई ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एचएस खुटवाड़ की अदालत को बताया कि उसकी तफ्तीश से इस मामले में दाखिल आरोप-पत्र में नामजद सभी सात पुलिस अधिकारियों के खिलाफ गुनाह साबित हुए हैं।

जिन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या और आपराधिक साजिश का आरोप लगाते हुए आरोप-पत्र दाखिल किया गया है उनमें फरार चल रहे अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) पीपी पांडेय और निलंबित पुलिस उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) डीजी वंजारा शामिल हैं।

अदालत को बताया गया कि इंटेलिजेंस ब्यूरो के चार अधिकारियों - विशेष निदेशक राजेंद्र कुमार एवं तीन अन्य अधिकारियों - पी मित्तल, एमके सिन्हा और राजीव वानखेड़े के खिलाफ जांच जारी है। जांच पूरी हो जाने के बाद आरोप-पत्र दाखिल किया जाएगा।
अहमदाबाद के बाहरी इलाके में 15 जून 2004 को गुजरात पुलिस के साथ हुई एक कथित मुठभेड़ में मुंबई से सटे ठाणे जिले के मुंब्रा इलाके की रहने वाली इशरत, जावेद शेख उर्फ प्राणेश पिल्लई, अमजद अली अकबर अली राणा और जीशान जोहर को मौत के घाट उतार दिया गया था।

पांडेय और वंजारा के अलावा गुजरात के जिन पुलिस अधिकारियों को आरोप-पत्र में नामजद किया गया है, उनमें जीएल सिंघल, तरुण बारोट, एनके अमीन, जेजी परमार और ए चौधरी शामिल हैं। आरोप-पत्र में कहा गया है कि एडीजीपी पांडेय, डीआईजी वंजारा और घटना के वक्त गुजरात में एसआईबी के संयुक्त निदेशक रहे राजेंद्र कुमार ने साजिश रची।

अपराध शाखा के अधिकारी अमीन और बारोट ने आईबी के अधिकारी एम के सिन्हा और राजीव वानखेड़े की मदद से 12 जून को आणंद जिले में वसाड के एक टोल बूथ से इशरत और जावेद शेख को अपनी हिरासत में लिया।

आरोप-पत्र में कहा गया कि मुठभेड़ में मारे गए चारों लोग पहले से गुजरात पुलिस की हिरासत में थे। इशरत और जावेद से तो राजेंद्र कुमार ने शहर के बाहरी हिस्से में बने एक फार्म हाउस में पूछताछ भी की थी। इसी फार्म हाउस में उन्हें हिरासत में रखा गया था।

अदालत में दाखिल आरोप-पत्र में कहा गया, ‘‘13 जून 2004 को वंजारा, पांडेय, कुमार और अमीन फार्म हाउस गए थे और इशरत तथा जावेद से पूछताछ की थी।’’ मुठभेड़ की साजिश रचने से पहले दोनों को अहमदाबाद भी लाया गया और उन्हें अलग-अलग जगहों पर रखा गया।

आरोप-पत्र के मुताबिक, 15 जून 2004 को चारों को कोटरपुर वॉटरवर्क्‍स के पास की एक जगह, जहां कथित मुठभेड़ हुई, पर ले जाया गया और सुनियोजित साजिश के तहत उनकी हत्या कर दी गई।

आरोप-पत्र के मुताबिक, पुलिस अधिकारी अमीन, बारोट, ए चौधरी और वंजारा की रक्षा में तैनात पुलिस कमांडो मोहन कलश्व ने उन्हें रोड डिवाइडर के पास खड़ा किया और उन पर गोलियां चलायीं। कलश्व की अब मौत हो चुकी है जिसकी वजह से उसे नामजद नहीं किया गया। एके-47 राइफलों सहित कई हथियार मौका-ए-वारदात से बरामद किए गए और दावा किया गया कि ये हथियार मुठभेड़ में मारे गए चारों लोगों के थे। आरोप-पत्र के मुताबिक ये हथियार गुजरात पुलिस के अधिकारी सिंघल ने एसआईबी से लिए थे।

सीबीआई ने यह भी कहा कि उन्हें इस बाबत कोई सबूत नहीं मिला कि इशरत और तीन अन्य मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के मकसद से गुजरात आए थे।

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आरोप-पत्र में कहा गया, ‘‘हमारी अब तक की जांच के दौरान ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिससे ऐसा लगे कि इशरत और तीन अन्य मुख्यमंत्री की हत्या के मकसद से आए थे।’’ बहरहाल, आरोप-पत्र में यह नहीं बताया गया है कि मारे गए चारों लोग आतंकवादी थे या नहीं।