यह ख़बर 16 अप्रैल, 2011 को प्रकाशित हुई थी

'पीएम और जज भी होंगे लोकपाल के दायरे में'

खास बातें

  • संयुक्त समिति की पहली बैठक में दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी कि संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने से पहले एक पुख्ता विधेयक तैयार कर लिया जाएगा।
New Delhi:

लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए केंद्र के मंत्रियों और गांधीवादी अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच शनिवार को हुई संयुक्त समिति की पहली बैठक में दोनों पक्षों के बीच यह सहमति बनी कि संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने से पहले एक पुख्ता विधेयक तैयार कर लिया जाएगा। सरकार की ओर से वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता और समाज की ओर से पूर्व विधि मंत्री तथा वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण की सह-अध्यक्षता में यह बैठक 90 मिनट चली। 10 सदस्यीय संयुक्त समिति में शामिल सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बैठक की वीडियोग्राफी कराने की मांग रखी, लेकिन बाद में दोनों पक्ष हर बैठक की ऑडियोग्राफी कराने पर राजी हो गए। बैठक में महत्वपूर्ण रूप से सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा तैयार जन लोकपाल विधेयक को पेश किया गया। समिति में शामिल मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने बैठक को ऐतिहासिक कदम करार दिया। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, दोनों पक्षों ने लोकपाल विधेयक के बारे में अपने विचार और अपना दृष्टिकोण रखा। मसौदा विधेयक का ताजा संस्करण (जन लोकपाल विधेयक) अध्यक्ष को दिया गया और उन्होंने उस पर गौर भी किया। उन्होंने कहा, लेकिन दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी है कि स्थायी समिति की ओर से तैयार मसौदा विधेयक पर भी आगे होने वाली बैठकों में चर्चा की जाएगी। समिति के सभी सदस्य चाहते हैं कि एक पुख्ता विधेयक तैयार हो, जिसे संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया जाए। समिति की अगली बैठक 2 मई को होगी। बैठक में गैर-सरकारी नुमाइंदों के तौर पर अन्ना हजारे, पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण, वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल मौजूद रहे,, जबकि सरकार की ओर से समिति के अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी के साथ-साथ गृहमंत्री पी चिदंबरम, मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल, कानून मंत्री वीरप्पा मोइली और सलमान खुर्शीद ने हिस्सा लिया। इसी विधेयक को लेकर अन्ना हजारे ने अपने साथियों के साथ मिलकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर पांच दिन तक मुहिम चलाई, जिसके बाद सरकार को मांगें मानने के लिए मजबूर होना पड़ा। आइए एक नजर डालते हैं कि आखिर लोकपाल बिल के ऐसे कौन से मुद्दे हैं, जिन पर सरकार और अन्ना के बीच विवाद हो सकता है। पहला है न्यायपालिका का मुद्दा। अन्ना और उनके समर्थक चाहते हैं कि इस बिल में न्यायपालिका को भी शामिल किया जाए। लेकिन सरकार के मुताबिक संविधान इस बात की अनुमति नहीं देता। हजारे समर्थक चाहते हैं कि लोकपाल सबसे ऊपर हो। उसके पास प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को भी पद से हटाने की ताकत हो। लेकिन संविधान के मुताबिक प्रधानमंत्री को सिर्फ राष्ट्रपति ही बहुमत न होने पर हटा सकते हैं और चीफ जस्टिस को पद से हटाने के लिए संसद में महाभियोग लाना पड़ता है। तीसरा मुद्दा है लोकपाल फंड का। हजारे चाहते हैं कि जुर्माने की राशि लोकपाल फंड में जमा हो, जबकि जब्त हुए सारा पैसा एक ही सरकारी फंड में जाता है। सरकार का दावा है कि ऐसे में हर समिति हर संस्था अपना खुद का फंड मांगने लगेगी। चौथा मुद्दा है शिकायतकर्ता की जवाबदेही का। हजारे समर्थक चाहते हैं कि शिकायत गलत पाई जाने के बावजूद शिकायतकर्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो, लेकिन सरकार चाहती है कि शिकायतकर्ता की कोई न कोई जवाबदेही हो।(इनपुट भाषा से भी)


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