यह ख़बर 23 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

जीतन मांझी के बयान : राजनीतिक महत्वकांक्षा या खास रणनीति?

जीतन राम मांझी की फाइल तस्वीर

पटना:

अस्थायी इंतजाम के तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री बनाए गए जीतन राम मांझी हाल के दिनों में दिए गए अपने विवादास्पद बयानों के कारण खासा चर्चा में रहे।

उनकी इस बयानबाजी को उनकी खास रणनीति और राजनीतिक महत्वकांक्षा के तौर पर भी देखा जा रहा है। यहां तक कि अपने विवादित बयानों के कारण मुख्यमंत्री मांझी को अपनी ही पार्टी में आलोचना का शिकार होना पड़ा, लेकिन मांझी किसी भी तरह की आलोचना की परवाह किए बगैर अपना कार्य करते रहे।

नीतीश कुमार ने सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के उद्देश्य से अपने विश्वस्त मांझी को मुख्यमंत्री पद सौंपा, लेकिन मांझी अपने बयानों के कारण उल्टे कई बार नीतीश के लिए ही मुसीबत बनते नजर आए। यहां तक की नीतीश के समर्थक विधायकों ने कई मौकों पर पार्टी नेतृत्व से मांझी का इस्तीफा लेने की मांग तक कर डाली।

मोकामा के विधायक अनंत सिंह ने मांझी द्वारा सवर्णों को विदेशी कहने वाले बयान पर शुक्रवार को कहा, मांझी को अविलंब मुख्यमंत्री पद से हटाया जाना चाहिए। वह सामाजिक सौहार्द्र को बिगाड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री मांझी की मानसिक स्थिति बिगड़ चुकी है।

राज्य के शिक्षा मंत्री और जेडीयू के वरिष्ठ नेता वृषिण पटेल ने भी मांझी के बयानों से नाखुशी जाहिर करते हुए कहा, ऐसे बयानों से न केवल पार्टी की किरकिरी हो रही है, बल्कि जेडीयू के मतदाता भी नाखुश हो रहे हैं।

हालांकि अपने बयानों के कारण अपने ही दल में आलोचना के शिकार मांझी के पक्ष में जेडीयू के कई विधायक खड़े नजर आते हैं। तो दूसरी ओर मांझी के बयानों को सोची-समझी रणनीति का हिस्सा और वोट बैंक के रूप में भी देखा जा रहा है।

पटना के वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश्वर कहते हैं, मांझी का विवादास्पद बयान वोट बैंक की राजनीति के अलावा कुछ भी नहीं। जेडीयू का नेतृत्व को सवर्ण वोट बैंक के बिदकने का आभास होते ही वे किसी भी हाल में दलित और पिछड़े वर्गों को साथ लाने की रणनीति पर चल रहे हैं। मांझी को मुख्यमंत्री बनाने की पीछे की रणनीति भी दलित और पिछड़े वर्गों को साथ लाना ही था।

ज्ञानेश्वर मानते हैं कि मांझी का बयान पूरी तरह दलित वोटों के समीकरण को ध्यान में रखकर दिया जा रहा है। बिहार के लघु सिंचाई मंत्री मनोज कुशवाहा ने हालांकि मांझी का बचाव करते हुए कहा, मुख्यमंत्री मांझी कुछ भी गलत नहीं बोल रहे हैं। वह सिर्फ अपनी आपबीती बता रहे हैं। कुछ लोग उनके बयानों को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं।

जेडीयू के विधायक अरुण मांझी तो मुख्यमंत्री मांझी के बयानों को जनाधार बढ़ानेवाला बयान बता रहे हैं। अरुण कहते हैं, मुख्यमंत्री के बयानों से पार्टी को नुकसान नहीं हो रहा है, बल्कि जनाधार बढ़ रहा है। उनके बयानों से दलित खुश हो रहे हैं। मुख्यमंत्री आज दलितों की आवाज बनकर उभरे हैं।

इस बीच, मांझी ने भी कई बार विरोधाभासी बयान दे डाले। मुख्यमंत्री ने अपने गृह जिला गया में आयोजित एक समारोह में कह दिया कि नीतीश के राज्य में भले विकास हुआ हो, परंतु भ्रष्टाचार तब भी कम नहीं हुआ था। बिहार में सियासी हलचल बढ़ाने वाले मांझी के इन बयानों का निहितार्थ मांझी और नीतीश की दूरी से निकाला जाने लगा। बाद में हालांकि मांझी ने नीतीश से किसी तरह के विवाद से इनकार किया।

राजनीति के जानकार मानते हैं कि मांझी के बयानों को दो-तीन अर्थों में समझने की जरूरत है। वैसे मांझी राजनीति में कोई नए खिलाड़ी नहीं हैं कि उन्हें बयानों के बाद पड़ने वाले प्रभावों का अनुमान न हो। वैसे कई जानकारों का यह भी कहना है कि मांझी के बयान उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा को दर्शाते हैं।

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं, मांझी के बयानों को दो-तीन तरीकों से समझना होगा। मांझी कभी नीतीश को आराध्य मानने लगते हैं, तो कभी उनके बयान उनके और नीतीश की दूरी को दर्शाते हैं। कई बयान ऐसे भी आए हैं जिससे ऐसा लगता है कि नीतीश को कमजोर करने के लिए ही बयान दिए गए हैं।

किशोर ने आगे कहा, मांझी कभी इतने बड़े पद पर नहीं पहुंचे थे, इसलिए मांझी ने अपनी उपस्थिति और ताकत का एहसास कराने के लिए इस तरह के बयानों का रास्ता चुना। दूसरा यह है कि मांझी के पीछे कुछ अदृश्य लोग हो सकते हैं, जो ऐसे बयान दिलवा रहे हों जिसका वे सही वक्त पर इसका फायदा उठा सकें।

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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव का आरोप है कि पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कहने पर ही मांझी ऐसे बयान दे रहे हैं। यादव का कहना है, नीतीश ने ही मांझी को मुख्यमंत्री बनाया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव तक मांझी को बयान के मामले में संयम बरतने की सलाह दे चुके हैं, परंतु नीतीश चुप्पी साधकर उनका मौन समर्थन कर रहे हैं।

मांझी के बयानों पर नीतीश और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद की चुप्पी भी एक खास रणनीति का हिस्सा हो सकती है। बहरहाल, पार्टी नेतृत्व के समझाने के बाद मांझी के बयानों का सिलसिला भले ही कुछ दिनों के लिए रुक जाता हो, लेकिन बिहार की राजनीति के जानकारों ने उन्हें 'बयानवीर' कहना शुरू कर दिया है। वैसे, भविष्य में मांझी के बयान जेडीयू के लिए फायदेमंद साबित होता है या नुकसानदेह, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।