बेंगलुरु: कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा के बीदर ज़िले के सिंघोर टांडा गांव में बुढ़ापे का सहारा ढूंढती सेठानी बाई की 15वीं संतान भी जब लड़की हुई तो वो नवजात शिशु को अस्पताल में छोड़ वहां से भाग गयी।
अस्पताल प्रशासन ने 45 वर्षीय सेठानी बाई को उसके गांव से ढूंढ निकाला लेकिन वो ना तो बच्चे को वापस लेने को तैयार हुई और ना ही नसबंदी करवाने को तैयार हुई। सेठानी बाई का कहना है कि बुढ़ापे का सहारा ढूंढ़ते ढूंढ़ते उसने 15 बच्चियों को जन्म दिया। इनमें से 6 अब इस दुनिया में नहीं हैं। तीन की शादी समाज की आर्थिक सहायता से उसने कर दी है और बाकी बच्चियां इसके साथ हैं।
महिला के मुताबिक कड़ी मेहनत के बावजूद वो इतना भी नहीं कमा पाती कि अपना और अपने बच्चों का पेट पाल सके। कई बार बच्चे भूखे सोते हैं। उसका पति मुम्बई में मेहनत मज़दूरी करता है। कर्नाटक की महिला और बाल कल्याण मंत्री उमाश्री ने इस मामले में पहल का फैसला किया है। उनके निर्देश पर बीदर ज़िला के महिला और बाल कल्याण विभाग के उप निदेशक पी एस इतगमपल्ली ने इस महिला से मुलाकात की और उसे पौष्टिक आहार दिया ताकि उसके नवजात शिशु को परेशानी न हो।
हालांकि प्रशासन की सबसे बड़ी चुनौती सेठानी बाई को समझा बुझाकर नसबंदी के लिए तैयार करना है। आंगनवाड़ी में सेठानी बाई की बड़ी शादीशुदा बेटी को नौकरी दिलवाने से लेकर एक लाख रुपये का लोन भी देने का प्रस्ताव सरकार उसे दे सकती है ताकि वो मुर्गी या पशु पालन कर के अपना और अपने बच्चों का पालन कर सके।