यह ख़बर 14 मई, 2011 को प्रकाशित हुई थी

कर्नाटक विधानसभा में होगा शक्ति परीक्षण?

खास बातें

  • सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में कर्नाटक के राज्यपाल एचआर भारद्वाज ने संकेत दिया कि वह विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराने को कह सकते हैं।
New Delhi:

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में कर्नाटक के राज्यपाल एचआर भारद्वाज ने संकेत दिया कि वह विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराने को कह सकते हैं। राज्य विधानसभा अध्यक्ष के 11 भाजपा और पांच निर्दलीय विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने के निर्णय को उच्चतम न्यायालय द्वारा रद्द कर दिए जाने के दूसरे दिन भारद्वाज ने शनिवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात के बाद यह संकेत दिया। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के निर्णय से उनके तब के उस रुख की पुष्टि हुई है कि शक्ति परीक्षण सदन में ही होना चाहिए। भारद्वाज ने कहा कि उन्होंने तब ही कहा था कि विधानसभा का शक्ति परीक्षण सदन में ही होना चाहिए, लेकिन भाजपा सरकार ने इसके विपरीत काम किया। शक्ति परीक्षण कराए जाने के सवाल का सीधा जवाब देने से बचते हुए उन्होंने हालांकि कहा, अभी से इस बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगी। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद उभरे घटनाक्रम के बीच राज्यपाल ने प्रधानमंत्री से अपनी भेंट को मात्र शिष्टाचार मुलाकात बताया और दावा किया कि दोनों के बीच इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई। अदालत के निर्णय को बहुत महत्वपूर्ण बताते हुए भारद्वाज ने कहा, शीर्ष अदालत ने यथास्थिति बहाल कर दी है और वह निर्णय का अच्छी तरह अध्ययन करने के बाद राज्य सरकार से विचार-विमर्श करेंगे। उन्होंने कहा कि बेंगलुरु पंहुचने के बाद वह राज्य सरकार को लिखेंगे। राज्यपाल ने कहा, उच्चतम न्यायालय ने बहुत स्पष्ट रूप से कह दिया है कि स्पीकर और मुख्यमंत्री ने अपने विधायकों के बारे में संविधान और प्रक्रियात्मक मानदंडों का उल्लंघन किया है। कर्नाटक में सत्तारूढ़ भाजपा को बड़ा झटका देते हुए उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को राज्य विधानसभा अध्यक्ष के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें उन्होंने पिछले साल अविश्वास प्रस्ताव से पहले 16 विधायकों को अयोग्य करार दिया था, जिसके चलते राज्य की बीएस येदियुरप्पा सरकार बच गई थी। अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि विधानसभा अध्यक्ष केजी बोपैया ने 11 बागी भाजपा विधायकों और पांच निर्दलीय विधायकों को अयोग्य करार देते समय मूलभूत संवैधानिक मूल्यों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनुकरण नहीं किया।


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