असल में इस वक्त ये गंभीर सवाल खड़ा हो गया है कि धोखाधड़ी, रिश्वतखोरी और आपराधिक मामलों के मुकदमों का सामना कर रहे और विवादों में रहे केतन देसाई क्या दुनिया की जानी मानी वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन यानी WMA के प्रेसिडेंट बन पाएंगे?
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया यानी MCI के पूर्व अध्यक्ष देसाई 2010 में भ्रष्टाचार और आपराधिक साज़िश के आरोपों में गिरफ्तार हुए और अभी भी वह सारे मुकदमों में बरी नहीं हुए हैं। लेकिन उन्हें अगले साल अक्टूबर 2016 में WMA के प्रेसीडेंट का कार्यभार संभालना है।
WMA की हैसियत मेडिकल जगत में वही है, जो क्रिकेट की दुनिया में आईसीसी की है। आज दुनिया के सौ से अधिक देश इसके सदस्य हैं और लाखों डॉक्टर इससे जुड़े हैं, लेकिन WMA के भीतर आज इस बात पर सवाल उठ रहे हैं कि मुकदमों को झेल रहे एक डॉक्टर को कैसे इस संस्था के सर्वोच्च पद पर बिठाया जा सकता है।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के बाद तो इस मामले पर WMA के भीतर हलचल बढ़ गई है। एनडीटीवी इंडिया की ओर से भेजे गये सवालों के जवाब में WMA ने कहा, "हमने रॉयटर्स में छपी ख़बर को देखा है, जिसे हम काफी गंभीरता से ले रहे हैं। इससे कई सवाल खड़े होते हैं जिस पर हमें IMA से चर्चा करनी होगी और वही हम करेंगे।"
लेकिन एनडीटीवी इंडिया की ओर से भेजे गये सवालों के जवाब में डॉ. केतन देसाई का कहना है कि वो बेकसूर हैं और उनके खिलाफ साज़िश होती रही है।
अपने लिखित जवाब में देसाई ने कहा, "2010 में एक बार फिर से स्वार्थी तत्वों ने मेरे खिलाफ घूसखोरी और आय से अधिक संपत्ति के झूठे आरोप लगाए। अख़बारों में दो करोड़ रुपये के साथ मेरे रंगे हाथों पकड़े जाने की जो ख़बर छपी, वह पूरी तरह से ग़लत है। मेरे और मेरे परिवार के पास कुल 53 हज़ार रुपये मिले। इसकी गहन जांच हुई और जांच में सामने आया कि मेरे और मेरे परिवार के पास हर पैसे का हिसाब था।"
देसाई ने अपने जवाब में यह भी कहा कि आईएमए के सामने गलत तथ्य भेजे जाने की बात भी गलत है। आईएमए के ऑनरेरी सेक्रेटरी जनरल डॉ के के अग्रवाल भी डॉ. देसाई का बचाव कर रहे हैं। डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि आईएमए को इस बात का पूरा भरोसा है कि डॉ. देसाई के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता।
उनका कहना है कि, "डॉ. देसाई के खिलाफ जो जांच हुई है, उसमें साल 1990 से लेकर 2010 तक के 20 सालों में उनके खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुया है यानी उनका रिकॉर्ड साफ है। जब हमें ये पता चला कि इनके सारे आय से अधिक संपत्ति के मामले खत्म हो गए हैं तो हमने WMA को लिखा कि उन्हें प्रेसीडेंट पद के लिए दोबारा लिया जा सकता है। इसके बाद हमारा पत्राचार WMA के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने पूछा कि क्या उनके खिलाफ कोई केस लंबित है? फिर हमने सीबीआई तो लिखा।"
तो आखिर WMA से ये ग़लती कैसे हो गई। एनडीटीवी इंडिया के सवाल के जवाब में WMA का कहना है कि, डॉ. देसाई का चुनाव आईएमए की ओर से भेजी गई सूचना के आधार पर किया गया।
असल में सीबीआई की ओर से दी गई जिस चिट्ठी के बारे में डॉ. अग्रवाल कर रहे हैं इसमें दो मामलों के बाकी रहने का भी ज़िक्र है। पहला रिश्वतखोरी का मामला जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगाया हुआ है और दूसरा धोखाधड़ी और आपराधिक साज़िश का मामला, जिस पर अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं। यानी इन दोनों ही मामलों में डॉ. केतन देसाई के ऊपर एफआईआर अभी बाकी है।
WMA प्रेसीडेंट की हैसियत काफी मायने रखती है, लेकिन ये तो साफ है कि इन पद के लिए पूरे तथ्य या तो पेश नहीं किए गए या फिर आईएमए से कागज़ादों को समझने में गलती हुई। सवाल ये भी उठाया जा रहा है कि क्या डॉ देसाई ने अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लॉबिंग की।
अपने जवाब में देसाई कहते हैं, "WMA कोई राजनीति संस्था नहीं है। ये एक एनजीओ है, जिसमें 110 देशों की मेडिकल एसोसिएशन के सदस्य होते हैं। कोई राजनीतिक ताकत या जोड़तोड़ इन सदस्यों को प्रभावित नहीं कर सकती। यह कहना सच का मज़ाक उड़ाना होगा कि 110 देशों के सदस्यों को अपनी राजनीतिक ताकत इस्तेमाल कर मैं बिल्कुल निर्विरोध चुना गया।" सवाल यह है कि WMA के प्रेसीडेंट के पद के लिए केतन देसाई का नाम ही क्यों?
एनडीटीवी इंडिया के इस सवाल के जवाब में डॉ. अग्रवाल कहते हैं, ''हमारा एक ही आदमी WMA प्रेसीडेंट बन सकता है। डॉ. देसाई प्रेसीडेंट चुने जा चुके हैं। अब हम अपने हक़ क्यों छोड़ें? अगर हम इसे छोड़ेंगे तो हमारी बारी फिर 30 साल के बाद आएगी। मैं WMA में जाकर ये तो नहीं कह सकता कि इनकी जगह पर किसी और को प्रेसीडेंट बना दो।''