पढ़िए, कोड़ा के मजदूर से अरबपति बनने की कहानी

पढ़िए, कोड़ा के मजदूर से अरबपति बनने की कहानी

मधु कोड़ा (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

झारखंड के आदिवासी इलाके पाताहातू (पश्चिमी सिंहभूम) में जन्मे मधु कोड़ा का आरंभिक जीवन काफी गरीबी में बीता। उनके राजनैतिक जीवन की शुरुआत ऑल झारखंड स्टूडेंड यूनियन के एक कार्यकर्ता के रूप में हुई थी। इससे पहले वो एक ठेका मजदूर थे। फिर मजदूर यूनियन के नेता बने। बाद में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भी सदस्य बने। राजनीति में उन्हें आरंभिक सफलता 2000 के झारखंड विधानसभा के चुनावों में मिली। इसमें वे भाजपा उम्मीदवार के रूप में जगन्नाथपुर विधानसभा सीट से चुने गए।

झारखंड के पहले सीएम बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनने वाली सरकार में कोड़ा पंचायती राज मंत्री बने। वे 2003 में अर्जुन मुंडा की सरकार बनने के बाद भी इसी पद पर काबिज रहे। 2005 के विधानसभा चुनावों में उन्हें भाजपा द्वारा उम्मीदवार बनाने से मना कर दिया गया। इसके बाद वे एक निर्दलीय के रूप में उसी विधानसभा सीट से चुने गए। खंडित जनादेश के कारण उन्होंने भाजपा के नेतृत्व में बनी अर्जुन मुंडा की सरकार का बाहर से समर्थन किया।

सितंबर 2006 में कोड़ा और अन्य तीन निर्दलीय विधायकों ने मुंडा की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे सरकार अल्पमत में आ गई। बाद में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार कर अपनी सरकार बनाई, जिसमें झामुमो, राजद, यूनाइटेड गोअन्स डेमोक्रैटिक पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, फॉरवर्ड ब्लॉक, तीन निर्दलीय विधायक शामिल थे। कांग्रेस ने उन्हें बाहर से समर्थन दिया।

पिता दरोगा बनाना चाहते थे
मधु का जन्म आदिवासी इलाके पाताहातु में हुआ, जो झारखंड की सोना उगलने वाली जमीन का एक गरीब पिछड़ा गांव है। उनके पिता रसिक एक खानमजदूर थे। अपनी एक एकड़ जमीन पर खेती करते थे और हड़िया (देसी दारू) बनाते थे। उनका सपना था कि मधु दरोगा बन जाए, लेकिन बेटे का आइडिया अलग था। उसने चाइबासा में स्कूलिंग की, पत्राचार कोर्स से ग्रेजुएशन किया और आरएसएस तथा ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन से गुजरते हुए बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी का सानिध्य हासिल किया।

उन्होंने सियासत में कदम रखा और चुनाव जीते, तब भी जब बीजेपी ने टिकट नहीं दिया। तीन निर्दलीयों- कमलेश सिंह, एनोस एक्का और हरिनारायण राय के साथ मिलकर उन्होंने सरकारें बनाईं और गिराईं। साल 2000 में जगन्नाथपुर सीट जीतकर उन्होंने मरांडी सरकार में पंचायत मंत्री के तौर पर जगह बनाई। 2005 में वह वहीं से निर्दलीय के तौर पर जीते और खान मंत्रालय के बदले अर्जुन मुंडा की सरकार को समर्थन दिया। 2006 में कोड़ा और तीन निर्दलीयों ने मुंडा सरकार को गिरा दिया और कोड़ा खुद चीफ मिनिस्टर पद पर जा बैठे। वे भारत के किसी भी प्रांत के पहले निर्दलीय मुख्यमंत्री रहे।

कोड़ा के मातहत फैला अरबों का साम्राज्य
विनोद सिन्हा और संजय चौधरी से कोड़ा की दोस्ती भी इसी दौरान परवान चढ़ी। विनोद सिन्हा एक जमाने में घर-घर जाकर दूध बेचते थे। चौधरी खैनी का कारोबार करते थे। सिन्हा का नाम ट्रैक्टर स्कैम में भी आया। कोड़ा की संगत में दोनों करोड़ों-अरबों का हिसाब रखने लगे। देखते ही देखते उनके मातहत एक विशाल बिजनेस साम्राज्य फैलने लगा। देश-विदेश में बड़ी-बड़ी डील उनके नाम पर होने लगीं। मधु कोड़ा, विनोद सिन्हा और संजय चौधरी ने मिलकर अपने व्यवसाय को अनैतिक तरीके से आगे बढ़ाया। एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट के मुताबिक इस तिकड़ी ने अंडरहैंड डील से कमाए पैसों के जरिए थाइलैंड में होटल खरीदे, लाइबेरिया में खदानें और दुबई में कंपनियां स्थापित कीं। इंडोनेशिया, लाओस और मलेशिया तक इनका जाल फैला है।

पत्नी ने छोड़ दिया
2004 में शादी होने के चार महीने बाद पत्नी गीता उन्हें छोड़कर चली गई थीं। गीता भी विधायक रह चुकी हैं। शादी के चार माह बाद वो झारखंड कैडर के एक आदिवासी आईपीएस के भाई के साथ कोड़ा को छोड़कर चली गई थीं।

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कोड़ा का किस्सा कभी सामने नहीं आता, यदि दुर्गा उरांव ने हाई कोर्ट में पीआईएल दायर नहीं की होती। उरांव ने कोड़ा के खिलाफ मामला बनाया और अदालत से जांच का रास्ता खुलवा लिया। मधु कोड़ा को चार हजार करोड़ रुपए से अधिक के विभिन्न घोटालों में 30 नवंबर, 2009 को गिरफ्तार किया गया था। कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले के मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने शुक्रवार को कोड़ा और आठ अन्य लोगों के खिलाफ औपचारिक तौर पर भ्रष्टाचार, आपराधिक साजिश और धोखाधड़ी के आरोप तय कर दिए।