मनरेगा के अमल में खामियां, फिर भला कैसे मिलेगा फायदा?

मनरेगा के अमल में खामियां, फिर भला कैसे मिलेगा फायदा?

नई दिल्ली:

इस बार के बजट में ग्रामीण विकास योजनाओं के लिए एक लाख करोड़ से ज्यादा की रकम दी गई है। लेकिन सवाल उठ रहा है कि इतनी बड़ी रकम के बावजूद अगर मनरेगा जैसी योजनाओं के अमल में गड़बड़ी है, तो क्या फायदा होगा।

रांची जिले के गेतलसुद गांव में कर्मा उरांव को मनरेगा के तहत 3 लाख 68 हजार रुपये में कुआं खुदवाने का काम मिला, लेकिन एक महीने काम करने के बाद भी उन्हें अब तक सिर्फ 162 रुपये मिले हैं। कर्मा उरांव कहते हैं, "ये मेरे ही नाम से कुआं मिला है ब्लॉक के द्वारा...पेमेंट में बहुत दिक्कत है। वहां जाते हैं तो सब लोग बोलते हैं आज देंगे, कल देंगे, लेकिन पैसा नहीं भेजते।" उनके साथ काम करने वाले गरीब वर्कर भी पैसा समय पर ना मिलने से परेशान हैं।

ऐसी शिकायतें झारखंड तक सीमित नहीं है। जब वित्त मंत्री ने मनरेगा के लिए 38,500 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, तो ये सवाल उठ रहा है कि इसका समय पर और सही इस्तेमाल कैसे हो। ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह भी मानते हैं कि लीकेज और लेट पेमेन्ट एक समस्या है। लेकिन कहते हैं कि पहले 27 फीसदी पेमेन्ट पर समय पर होता था, लेकिन अब वह बढ़कर 45 फीसदी हो गया है।

हालांकि मनरेगा को ज़्यादा फंड मुहैया करने के फैसले का पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार ने स्वागत किया है। पवार ने कहा, "यह अच्छी बात है कि उन्होंने मनरेगा के लिए अच्छी राशि आवंटित की है। पहले पीएम ने इस स्कीम पर सवाल उठाया था।"

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मनरेगा के लिए 38,500 करोड़ आवंटित करने के पीछे मंशा उस सोच को कम करने की है कि सरकार इस योजना को लेकर गंभीर नहीं है। ये पैसा गरीब जरूरतमंदों तक पहुंचे इसके लिए जरूरी होगा कि योजना को लागू करने में आ रही अड़चनों को दूर करने के लिए जल्द पहल की जाए।