इच्छा मृत्यु पर लॉ कमीशन की सहमति, केंद्र सरकार लाएगी बिल

इच्छा मृत्यु पर लॉ कमीशन की सहमति, केंद्र सरकार लाएगी बिल

अरुणा शानबाग का फाइल फोटो।

नई दिल्ली:

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि लॉ कमीशन ने कुछ सुरक्षा उपायों के साथ पेसिव एथोनेसिया ( इच्छामृत्यु) के लिए सहमति दे दी है। लॉ कमीशन की रिपोर्ट को देखने के बाद पेसिव एथोनेसिया को लेकर बिल लाया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ कर रही सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधनिक पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। शुक्रवार को मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने एक हफ्ते का समय मांगते हुए कहा कि लॉ कमीशन की रिपोर्ट को कानून मंत्रालय के पास भेज दिया गया है। एक हफ्ते के भीतर कानून मंत्रालय अपना पक्ष साफ कर देगा। इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई 12 फरवरी को तय की है।

सुरक्षा उपायों के साथ लागू करने की सिफारिश
लॉ कमीशन ने अपनी 241 पेज की रिपोर्ट में पेसिव एथोनेसिया को कुछ सुरक्षा उपाय के साथ लागू करने की सिफारिश की है। इससे पहले इच्छा मृत्यु को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि इच्छा मृत्यु को लेकर ड्राफ्ट बिल तैयार कर लिया गया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के चलते वह आगे नहीं बढ़ रहा है।

एक्सपर्ट कमेटी ने दी सहमति
केंद्र सरकार ने कहा था कि इस मामले पर उन्होंने एक एक्सपर्ट कमेटी (DGHS) बनाई थी। इस कमेटी ने ऐसे लोग जो अस्पताल में वेंटिलेटर पर हैं, उनकी इच्छामृत्यु को लेकर अपनी सहमति दी थी। बाद में दूसरी कमेटी ने भी इस पर सहमति जताई। लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में होने के चलते सरकार आगे नहीं बढ़ पाई।

सुप्रीम कोर्ट ने मांगा था सरकार से जवाब
दरअसल इच्छा मृत्यु को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से अपना रुख साफ करने को कहा था। कोर्ट में लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखे गए ऐसे लोगों का मसला उठाया गया था, जिनके ठीक होने की अब कोई उम्मीद नहीं बची है। इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि अगर किसी इंसान का दिमाग काम करना बंद कर दे, वह बस वेंटिलेटर के सहारे ही जिंदा हो और उसके बचने की कोई उम्मीद भी न हो तो ऐसे में उसे इच्छा मृत्यु दी जा सकती है या नहीं? कोर्ट ने केंद्र को इन सवालों के जवाब देने के लिए एक फरवरी तक का समय दिया था।

क्या है मामला
लगभग 42 साल से कोमा में रहीं मुंबई की नर्स अरुणा शानबॉग को इच्छा मृत्यु देने से सुप्रीम कोर्ट ने साल 2011 में मना कर दिया था। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि डॉक्टरों के पैनल की सिफारिश, परिवार की सहमति और हाई कोर्ट की इजाजत से कोमा में पहुंचे लाइलाज मरीजों को लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटाया जा सकता है।

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कौन थीं अरुणा शानबॉग
27 नवंबर 1973 को मुंबई के केईएम हॉस्पिटल के वार्ड ब्वॉय सोहनलाल वाल्मीकि ने अरुणा शानबाग के साथ बलात्कार किया था। अरुणा वहां जूनियर नर्स के रूप में कार्य कर रही थीं। उसकी आवाज दबाने के लिए वाल्मीकि ने कुत्ते के गले में बांधी जाने वाली चेन से उसका गला जोर से लपेट दिया था, जिसके बाद वह कोमा में चली गईं थीं।